
सबगुरु न्यूज- आबूरोड। धार्मिक उन्माद में आकर बड़े नेताओं के राजनीतिक लाभ के लिए उन्मादी होने की पीड़ा सिरोही, कृष्णगंज और जावाल के बाद आबूरोड के युवा भी झेल रहे हैं। स्थानीय व्यक्ति कांतिलाल उपाध्याय द्वारा लगाई याचिका में 23 नवंबर 2022 को राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर सांतपुर के दूधेश्वर तालाब की पाल पर बने हनुमान मंदिर को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई थी।
धार्मिक उन्माद में हिंदूवादी संगठनों से जुड़े युवा बड़े नेताओं के साथ इस कार्रवाई को रोकने को कूद पड़े। विरोध में पुलिस पर पथराव भी हुआ। पुलिस ने भी लाठीचार्ज किया। बाद में थानाधिकारी ने 19 लोगों को नामजद करके 150 अन्य लोगों के खिलाफ राजकार्य में बाधा समेत अन्य गंभीर मामलों में एफआईआर दर्ज की। इन नामजद लोगों में काफी संख्या में युवा थे। अब भाजपा सत्ता में है। इन्हें आशा थी कि इनके ऊपर किया केस वापस हो जायेगा। लेकिन, मामले में कुछ ऐसे पेंच फंस गए हैं कि एफआईआर वापस नहीं हो पा रही।
-पेश हुई थी आंशिक चार्जशीट
हनुमान मंदिर को तोड़ने की कार्रवाई 23 नवंबर 2022 को हुई थी। पुलिस एफआईआर के अनुसार करीब 11 बजे के आसपास समझाइश का दौर शुरू हुआ। लेकिन ये लोग नहीं माने। हंगामा बढ़ने लगा इस बीच कुछ लोगों ने पुलिस पर पथराव किया। पुलिस ने लाठीचार्ज करके सबको खदेड़ा। हाईकोर्ट के आदेशों की पालना में मंदिर तोड़ने के बाद में मुकदमा दर्ज किया। नामजद किया गए 19 में से करीब आठ लोगों को बाद में पुलिस ने गिरफ्तार किया।
एफआईआर में पुलिस ने हाई कोर्ट का आदेश की पालना करने से रोकने की राजकार्य में बाधा की बात लिखी थी। ऐसे में इन लोगों की जमानत होना भी मुश्किल हो गया। गिरफ्तार अधिकांश युवा ताजा ताजा ग्रेजुएट थे। भविष्य अंधकारमय होने की आशंका थी। मामले को जांच भी पेंडिंग थी। जमानत के लिए ये जरूरी था कि मामले की चर्कशीट पेश होवे। ऐसे में जमानत के लिए सिर्फ गिरफ्तार युवकों की चार्जशीट न्यायालय में पेश कर दी गई।

– यही जल्दबाजी बनी समस्या
मामले में फंसे तमाम युवक जो हिंदूवादी संगठनों की छात्र इकाई व मूल इकाई से जुड़े हुए थे अपने भविष्य को लेकर परेशान थे। अपनी राजनीतिक पार्टी की सत्ता आई तो उन्हें आशा थी कि उनके केस वापस हो जायेगा। दो साल से हो गए लेकिन इनका केस वापस नहीं हुआ और उधर न्यायालय में जेल गए युवकों के खिलाफ चल रहे ट्रायल में बयान शुरू हो गए। एफआईआर वापस लेने में एक तकनीकी समस्या बताई जा रही है। वो ये कि पुलिस ने शेष रहे लोगों की अभी तक चार्जशीट पेश नहीं की है। ऐसे में एक ही केस की एक ही एफआईआर में की आधी अधूरी चार्जशीट की वजह से न तो इसे पुलिस द्वारा वापस लिया जा पा रहा है न न्यायालय में अर्जी लगाकर।
इन शेष रहे लोगों की जांच पाली के एएसपी स्तर के पुलिस अधिकारी के पास है। इस मुकदमे को वापस लेने के लिए शेष रहे लोगों के खिलाफ चार्जशीट पेश करनी होगी। चार्जशीट पेश होगी तो उनकी गिरफ्तारी भी पुलिस को करनी होगी। सत्ता में रहकर उनकी गिरफ्तारी टालने की कोशिश में अन्य विकल्प निकालने में संगठन के स्थानीय नेता रुचि नहीं दिखा पा रहे हैं।
– 150 अन्य में कोई नाम नहीं जुड़े
इस मामले में 19 लोगों को नामजद करके 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम किया था। लेकिन, आरोप ये है कि अग्रिम जांच में किसी नए नाम को नहीं जोड़ा। इस हंगामे में हिंदूवादी संगठन और उसके राजनीतिक प्रकल्प के कई बड़े चेहरे भी शामिल थे। आरोप ये लग रहा है कि ये नेता खुद बच गए और अब इनमें नामजद युवकों के लिए भी कुछ नहीं कर रहे हैं।
राजनीतिक पार्टियों और नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा में फंसकर धार्मिक व जातीय हिंसा का टूल बनने का नुकसान सिर्फ आबूरोड के हिंदूवादी संगठन के युवा झेल रहे हैं ऐसा नहीं है। इससे पहले सिरोही, कृष्णगंज, जावाल जैसी कई जगहों में धार्मिक उन्माद में उत्पात का हिस्सा बने लोग परेशान हुए हैं। जिन पार्टियों के टूल बनकर ये लोग हंगामे किए थे वो सत्ता में कई बार आई लेकिन, इनके मुकदमे वापस नहीं ले पाई। कुछ मुकदमे तो इनके संगठन की सत्ता में होने पर ही दर्ज किए गए थे।
कृष्णगंज प्रकरण में तो न्यायालय ने ही केस वापसी से मना कर दिया। फिर जिन दो पक्षों ने धार्मिक उन्माद में विवाद किया था वहीं दोनों पक्ष एक दूसरे के काम आए। हाईकोर्ट में जाकर केस वापसी के आदेश लाए। एक मामला सिरोही महाविद्यालय में हुआ था। छात्रसंघ अध्यक्ष ने जोश में आकर लॉ महाविद्यालय में हंगामा कर दिया था। सरकारें कई बार आई लेकिन इस पर कायम मुकदमा वापस नहीं हो पाया। न्यायालय में मुकदमा वापसी की अर्जी पेश करने पर लॉ महाविद्यालय के तत्कालीन प्रिंसिपल ने ही आपत्ति दर्ज करवा दी थी।
इससे सिरोही के कई इलाकों में इन संगठन से जुड़े युवाओं ने जोश में होश खोने का टूल किट नहीं बनने का सबक ले लिया है। हालात ये हो चुके हैं कि हाल में ही सिरोही में दो बार नेताओं ने कुछ प्रकरणों को विवादित बनाने की कोशिश की। लेकिन पुराने मामलों से सबक लेकर अब कोई कार्यकर्ता इनके पीछे खड़े होने को तैयार नहीं हो रहा है।


