पिण्डवाड़ा-आबू : कांग्रेस पाट पाएगी हजारों का अंतर!

पिंडवाडा विधानसभा सीट्

सबगुरु न्यूज-सिरोही (परीक्षित मिश्रा)। सिरोही की तीन सीटों में से एक अनुसूचित जानजाति के लिए आरक्षित है। ये है उदयपुर और गुजरात की सीमा से सटी पिण्डवाड़ा-आबू विधानसभा सीट।

ये वो सीट है जहां से किसी तरह की लहर नहीं होने के बावजूद पिण्डवाड़ा-आबू के भाजपा प्रत्याशी समाराम गरासिया 27 हजार वोटों से जीते थे। ये एक बहुत बड़ा अंतर है, कांग्रेस द्वारा इसे पाट पाना कितना संभव होगा ये वक्त बताएगा।
इस विधानसभा के चुनाव को मॉनीटर करने वाले भाजपा जिला कोषाध्यक्ष का दावा है कि यहां पर भाजपा की जड़ें जम चुकी हैं। सिर्फ 32 कस्बों और गांवों से 12 हजार से ज्यादा की लीड मिल जाती है। इसमें दूरस्थ ग्रामीण इलाकों को भी जोड़ दिया जाए तो ये लीड फिर से बढ़ जाती है। यूं समाराम पर यहां के लोग विकास नहीं करवा पाने के आरोप लगाते हैं। लेकिन, तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो इस क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी लीलाराम गरासिया भी आबूरोड के प्रधान हैं। पिण्डवाड़ा आबू क्षेत्र के कई इलाके इनकी पंचायत समिति में भी पड़ते हैं। इसके बावजूद लीलाराम गरासिया यहां चल रहे टीएसपी, माउण्ट आबू ईको सेंसेटिव जोन जैसे कई प्रमुख मुद्दों को वो कांग्रेस की सरकार रहते हुए हल नहीं करवा पाए।
इस विधानसभा के सिरोही विधानसभा से सटे नया सानवाड़ा से लेकर रेवदर विधानसभा से सटे किंवरली तक हाइवे के दाहिनी तरफ के हिस्से के शहरी और ग्रामीण इलाकों में भाजपा का दबदबा है। कांग्रेस को इस इलाके से कितने वोट मिल पाते हैं ये महत्वपूर्ण है। यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी लीलाराम गरासिया सिरोही में राज्यसभा सांसद नीरज डांगी का करीबी माना जाता है। ऐसे में देखना ये है कि यहां से वो कितना प्रभाव डाल पाते हैं। इस इलाके में भाजपा और आरएसएस का सशक्त काडर है तो अशोक गहलोत के द्वारा तबाह कर दिया गया कांग्रेस का काडर भी।
इन दोनो बड़े संगठनों के बीच इस बार सबसे धमाकेदार दावेदारी पेश की है। भारत आदिवासी पार्टी ने। भारत आदिवासी पार्टी ने इस क्षेत्र में बीटीपी की जगह ली है। इसका उम्मीदवार है मेघराम गरासिया। इस विधानसभा सीट पर फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा चुनौति इसी पार्टी के केंडीडेट से है। ये पार्टी जीतने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन, एक बड़ा वोट का शेयर इसके ले जाने की संभावना दोनों ही पार्टी के रणनीतिकारों को है। पिछले चुनाव पर नजर डालें तो बीटीपी, बीएसपी, शिवसेना और अन्य मिलाकर करीब बीस हजार वोट ले गए। इनमें से अधिकांश कांग्रेस के मूल वोट बैंक में सेंधमारी करने वाले हैं।नोटा ने तो यहां कमाल किया। इस जिले में सबसे ज्यादा 4702 वोट तो नोटा को ही गए। अब ये वोट किस पार्टी की ओर गिरते हैं तो ये भी यहां पर जीत का भविष्य तय करेगा। लेकिन, 2018 की स्थिति को देखा जाए तो अभी तक भाजपा के इतने बड़े अंतर को पाटने की स्थिति में कोई आ सके।