धनत्रयोदशी एवं धन्वंतरी जयंती का महत्व

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी इस तिथि को धनत्रयोदशी (धनतेरस) त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष यह 10 नवम्बर को है। दीपावली के साथ (आसपास) आने वाले इस त्यौहार के निमित्त नवीन स्वर्ण अलंकार खरीदने की प्रथा है । व्यापारी वर्ग अपनी तिजोरी का पूजन भी इसी दिन करते हैं। धनत्रयोदशी अर्थात देवताओं के वैद्य धन्वंतरी देवता की जयंती। इस दिन का महत्व इस लेख के माध्यम से जानेंगे।

जिसके कारण हमारे जीवन का पोषण आराम से हो रहा है उस धन की इस दिन पूजा करते हैं। यहां धन का अर्थ है शुद्ध लक्ष्मी। श्री सूक्त में वसु, जल, वायु, अग्नि एवं सूर्य इन्हें धन ही कहा गया है। जिस धन का वास्तविक अर्थ है वही वास्तविक लक्ष्मी है। अन्यथा अलक्ष्मी के कारण अनर्थ होता है।

विशेषताएं – यह दिन व्यापारी वर्ग के लिए विशेष महत्व का माना जाता है, क्योंकि धन प्राप्ति के लिए श्री लक्ष्मी देवी का पूजन किया जाता है। इस दिन ब्रह्मांड में श्री लक्ष्मी देवी का तत्व प्रक्षेपित होता हैं, जिसके कारण जीव को श्री लक्ष्मी देवी एवं नारायण इनकी कृपा प्राप्त करना संभव होता है। वह कृपा जीव के भाव पर आधारित रहती है। वर्तमान काल में साधकों को शक्ति की आवश्यकता है। इस तरह व्यावहारिक सुखों की अपेक्षा जीवित रहना एवं आयुष्य अर्थात जीवन सुरक्षित रखना महत्व का है, इसलिए साधना करने वाले जीव के लिए यह दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। साधना के लिए अनुकूलता एवं ऐश्वर्य प्राप्त होने के लिए इस दिन धन लक्ष्मी की पूजा करते हैं। वर्ष भर योग्य मार्ग से धन कमाकर वार्षिक आय का 1/6 भाग धर्म कार्य के लिए अर्पण करना चाहिए।

महत्व – इस दिन को बोलचाल की भाषा में धनतेरस भी कहा जाता है। इस दिन व्यापारी तिजोरी का पूजन करते हैं। व्यापारी वर्ष, दीपावली से दीपावली तक होता है। नवीन वर्ष के हिसाब की बहियां अर्थात बही खाता इसी दिन लाकर उनकी पूजा करके प्रयोग में लाई जाती हैं।

धनतेरस के दिन नवीन सुवर्ण खरीदने की प्रथा है। इसके कारण वर्ष भर घर में धनलक्ष्मी अर्थात पैसा रहता है। वास्तविक लक्ष्मी पूजन के समय वर्ष भर का आय-व्यय (जमा खर्च) देना होता है। उस समय धनतेरस तक बची हुई संपत्ति ईश्वर कार्य के लिए व्यय करने से सत् कार्य में धन व्यय हुआ इसलिए धनलक्ष्मी आखिर तक लक्ष्मी रूप में रहती है। धन अर्थात पैसा यह पैसा मेहनत का, कष्ट का एवं उचित रूप से कमाया हुआ एवं साल भर में थोड़ा-थोड़ा करके जमा हुआ होना चाहिए। इस पैसे का न्यूनतम 1/6 भाग ईश्वर कार्यों के लिए व्यय करना चाहिए ऐसा शास्त्र बताते हैं।

– ‘परात्पर गुरु पांडे महाराज’

पहले राजा वर्ष के अंत में अपना खजाना सत् पात्रों को दान करके खाली करते थे। तब उन्हें संतुष्टि होती थी । इस कारण जनता एवं राजा इनके संबंध ये पारिवारिक रूप के थे। राजा का खजाना जनता का है एवं राजा केवल उसको संभालने वाला है, इस कारण जनता कर देते समय आनाकानी ना करते हुए देती थी, जिससे स्वाभाविक रूप से खजाना फिर से भर जाता था। सत् कार्य के लिए धन का विनियोग अर्थात खर्च होने से आत्म बल भी बढ़ता था।

‘धन्वंतरी जयंती’

धन्वंतरी जन्म – धन्वंतरी का जन्म देवता एवं राक्षसों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से हुआ। चार भुजाओं वाले भगवान धन्वंतरी एक हाथ में अमृत कलश, दूसरे हाथ जोंक, तीसरे हाथ में शंख एवं चौथे हाथ में चक्र लेकर समुद्र मंथन से प्रकट हुए। इन चारों हाथों की वस्तुओं का प्रयोग करके अनेक व्याधियों को, रोगों को ठीक करने का काम भगवान धन्वंतरी करते हैं।

– आधुनिक वैद्य श्री राम लाड़े

वैद्य लोग इस दिन धन्वंतरी देवता का पूजन करते हैं। नीम के पत्तों के टुकडे एवं शक्कर प्रसाद के रूप में लोगों को देते हैं। इस का बहुत महत्व है। नीम की उत्पत्ति अमृत से हुई है। धन्वंतरी अमरत्व देने वाले देवता हैं, यह इससे प्रतीत होता है। नीम के पांच, छह पत्ते रोज खाए जाएं तो व्याधि होने की संभावना नहीं रहती, इतना नीम का महत्व है। इसलिए इस दिन प्रसाद के रूप में नीम का उपयोग किया जाता है।

यमदीपदान – प्राण हरण करने का कार्य यमराज के पास है । मृत्यु से कोई नहीं बच सकता, परंतु अकाल मृत्यु किसी को भी ना आए इसलिए धनतेरस के दिन यम धर्म के उद्देश्य से आटे के 13 दिए बनाकर वे घर के बाहर दक्षिण की ओर मुंह करके शाम को लगाना चाहिए ।सामान्यतः दिए का मुख दक्षिण की ओर कभी भी नहीं होता । केवल इसी दिन दिये का मुख दक्षिण की ओर करके रखना चाहिए, तत्पश्चात अगले मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए।

“मृत्युना पाशदंडाभ्यां कालेन श्यामयासह।
त्रयोदश्यांदिपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम।।

अर्थ – त्रयोदशी पर यह दीप मैं सूर्यपुत्र को अर्थात् यमदेवता को अर्पित करता हूँ। मृत्यु के पाश से वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें।

यमदीपदान सूर्यास्त के बाद अर्थात साधारणतः शाम को 6 से रात्रि 8 इस कालावधी में करना चाहिए । इससे अधिक लाभ प्राप्त होता है। इसके बाद का काल गौण होता है। गौण भाग हो तो भी उस कालावधी में यम दीपदान कर सकते हैं।

धनत्रयोदशी को श्री लक्ष्मी तत्व बड़े प्रमाण में पृथ्वी तल पर आता है। इस दिन श्री लक्ष्मी की पूजा करते समय आजकल लोग (पैसे, सिक्के, गहने) इस स्वरूप में पूजा करते हैं, जिस कारण से श्री लक्ष्मी की कृपा वास्तविक रूप में उन्हें प्राप्त नहीं होती। केवल स्थूल धन का पूजन करने वाला जीव माया के पाश में अटकता है एवं “साधना करके मोक्ष प्राप्त करना” यह मनुष्य जन्म का मूल उद्देश्य भूल जाता है। इस दिन श्री लक्ष्मी का ध्यान एवं शास्त्र सम्मत रीति से पूजा करना अपेक्षित होता है।

संदर्भ -सनातन संस्था का ग्रंथ त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत