नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तारी और उसके बाद हिरासत को अवैध घोषित करते हुए उन्हें अविलंब रिहा करने का बुधवार को आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपने आदेश में कहा कि अभियुक्त को अपनी गिरफ्तारी का आधार जानना मौलिक, वैधानिक अधिकार है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पुरकायस्थ की ओर से दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित करते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस ने लिखित रूप से आरोपी को यह नहीं बताया था कि आखिर उसने किस आधार पर गिरफ्तार किया था पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि मामले में आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के 13 अक्टूबर 2023 के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसने पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और पुलिस हिरासत के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दी थी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने पुरकायस्थ को राहत देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) (किसी भी व्यक्ति को बिना आधार बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता) और 22(5) (हिरासत के आधार की जानकारी दी जानी चाहिए) पवित्र है और किसी भी स्थिति में इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि अदालत के मन में कोई संदेह नहीं है कि यूएपीए के प्रावधानों के तहत या किसी अन्य अपराध के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति के पास गिरफ्तारी के आधार के बारे में जानने का मौलिक और वैधानिक अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू की इस दलील को खारिज कर दिया कि कानून के तहत आरोपी अपीलकर्ता को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
पीठ ने कहा कि हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित करने के पहलू पर इस अदालत द्वारा पंकज बंसल के मामले में निर्धारित वैधानिक आदेश की व्याख्या को समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
अपीलकर्ता को यूएपीए के प्रावधानों के तहत दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताने का उद्देश्य हितकर और पवित्र है, क्योंकि यह जानकारी गिरफ्तार व्यक्ति के लिए अपने वकील से परामर्श करने का एकमात्र प्रभावी साधन होगी। पीठ ने कहा कि कोई भी अन्य व्याख्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत सुनिश्चित मौलिक अधिकार की पवित्रता को कम करने के समान होगी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत सुनिश्चित सबसे पवित्र मौलिक अधिकार है। इस मौलिक अधिकार के अतिक्रमण के किसी भी प्रयास को इस न्यायालय ने कई निर्णयों में अस्वीकार कर दिया है। पीठ ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद, 20, 21 और 22 द्वारा गारंटीकृत ऐसे मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटना होगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राथमिकी 17 अगस्त 2023 को दर्ज की गई थी, लेकिन पुलिस हिरासत आदेश पारित होने तक आवेदन के बावजूद आरोपी अपीलकर्ता को इसकी प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई थी। पीठ ने कहा आरोपी को 3 अक्टूबर 2023 को गिरफ्तार किया गया और उसे 4 अक्टूबर 2023 को सुबह 6:00 बजे से कुछ समय पहले जज के आवास पर उनके समक्ष पेश किया गया था।
पीठ ने कहा कि यह पूरी कवायद गुप्त तरीके से की गई और यह कानून की उचित प्रक्रिया को दरकिनार करने का एक ज़बरदस्त प्रयास था। पुरकायस्थ का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने रखा, जबकि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजू ने किया।
शीर्ष अदालत के आदेश के पर श्री राजू ने कहा कि चूंकि गिरफ्तारी को अवैध घोषित कर दिया गया, इसलिए यह पुलिस को गिरफ्तारी की शक्ति का आगे प्रयोग करने से नहीं रोक सकता है।इस पर पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि आपको कानून के तहत जो भी अनुमति है वह कर सकते हैं।
न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक पुरकायस्थ और इसके एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती ने आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में अक्टूबर 2023 में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी।
दिल्ली पुलिस ने उन पर चीन में रहने वाले एक व्यक्ति से लगभग 75 करोड़ रुपए प्राप्त करने का आरोप लगाया और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि देश की अखंडता और स्थिरता से समझौता किया जाए। इस मामले में 17 अगस्त 2023 को मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसमें पुरकायस्थ और अन्य के अलावा चीन के निवासी नेविल रॉय सिंघम का नाम दर्ज था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि 4 अक्टूबर 2023 को जब हिरासत संबंधी आदेश पारित किया गया था, तब याचिकाकर्ता ने प्राथमिकी की एक प्रति की मांग करते हुए एक आवेदन दायर करते समय अवैध हिरासत आदेश के बारे में कोई शिकायत नहीं की थी।