हरियाणा का चौटाला परिवार राजस्थान में फिर तलाश रहा है सियासी धरातल

सीकर। हरियाणा का चौटाला परिवार राजस्थान में एक बार फिर सियासी धरातल तलाशने लगा है और इसके लिए उनकी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जजपा) प्रदेश में सक्रिय हो गई हैं।

राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार की जजपा को सत्ता पावर का हिस्सा बनाने के लिए हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत सिंह चौटाला और उनके भाई दिग्विजय सिंह चौटाला उन क्षेत्रों में सक्रिय हुए हैं जहां जजपा के लिए संभावना है। इसमें एक बार फिर सीकर को केंद्र बनाया गया है और 25 सितंबर को जजपा एक बड़ी रैली का आयोजन करेगी। इसके पूर्व 90 के दशक में किसान नेता चौधरी देवीलाल ने सीकर को देश की सियासत का प्रमुख केंद्र बना दिया था।

पंजाब में चुनाव में न होने के कारण तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभाध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ वर्ष 1984 में सीकर लोकसभा से चुनाव लड़ने आए थे और अपनी वाकपटुता से ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी और फिर से लोकसभाध्यक्ष बने थे। जाखड़ की चुनाव लड़ने की शैली से यहां हर कोई मोहित हो गया, लेकिन एक सियासी घटनाक्रम के बीच में हरियाणा के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल ने अपने साले जाखड़ को उन्हीं की कर्मस्थली सीकर में चुनौती देते हुए उनके सामने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। चुनाव दंगल में रिश्ते में जीजा-साले के आमने सामने खड़े होने से सीकर संसदीय क्षेत्र हाॅट सीट में शुमार हो गया।

इस चुनावी दंगल में चौधरी देवीलाल ने डॉ.जाखड़ को हरा दिया। किसानों के मसीहा बन चुके चौधरी देवीलाल उस समय सीकर के अलावा हरियाणा के रोहतक लोकसभा से भी निर्वाचित हुए थे लेकिन उन्होंने वहां से इस्तीफा देकर सीकर का प्रतिनिधित्व किया और देश के उप प्रधानमंत्री बने।

देवी लाल के पौत्र और जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.अजय सिंह चौटाला ने भी दांतारामगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़कर कांग्रेस के दिग्गज चौधरी नारायण सिंह को हराया था। उस दशक में शेखावाटी इलाके में पड़ोसी राज्य हरियाणा और पंजाब की राजनीति पूरी तरह हावी हो गई थी। हालांकि यह दौर लंबा नहीं चला और मात्र 30 माह में ही हरियाणा राजनीति विदा हो गई लेकिन डॉ.जाखड़ के सक्रिय रहने से पंजाब के नेताओं का आना-जाना जारी रहा। डॉ जाखड़ फिर चुनाव जीते और देश के कृषि मंत्री भी बने। तब ताऊ का कुनबा अपने राज्य में वापस जा चुका था।

तीन दशक बाद चौटाला परिवार एक बार फिर राजस्थान आया है। इस बार वो किसी को चुनौती देने नहीं बल्कि चुनाव लड़कर सत्ता में भागीदारी बढ़ाना चाहता है। हरियाणा में भाजपा के साथ गठबंधन के बाद यह परिवार अपनी पार्टी को राजस्थान में स्थापित करना चाहते हैं पर यहां बड़ा सवाल यह है, भाजपा हरियाणा की तर्ज पर यहां गठबंधन करेगी या फिर चौटाला खानदान को अपने दम पर चुनाव लड़ना पड़ेगा।

राजनीति टीकाकारों का मत है कि गठबंधन होने पर ही जजपा की मौजूदगी मुकाबला देगी। क्योंकि उनके पास ताऊ जैसी शोहरत नहीं है। चौटाला परिवार 25 सितम्बर को सीकर में ताऊ की 110वीं जयंती किसान विजय सम्मान दिवस के रूप में मनाकर उनकी यादों को जिंदा कर अपनी सियासत में प्राण वायु फूंकने का प्रयास कर रहा है। ताऊ की जयंती जलसा को ऐतिहासिक बनाने के लिए हरियाणा से भारी तादाद में जेजेपी कार्यकर्त्ता आजकल इलाके में सक्रिय है।

बहरहाल चौटाला परिवार के दोनों भाई दुष्यंत और दिग्विजय पूरी शिद्दत के साथ राजस्थान में अपने परिवार के अतीत में फिर से जान डालने में लगे है। दुष्यंत सिंह के अनुसार उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में 25-30 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी।