LK आडवाणी ने हिन्दुत्व को राजनीति की मुख्यधारा में स्थापित किया

नई दिल्ली। देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकरण के लिए नामित भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश में दूसरा लौह पुरुष कहा गया जिन्होंने रथयात्राओं के माध्यम से अयोध्या में श्रीरामजन्म भूमि आंदोलन को देश के घर-घर तक पहुंचाया और भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में हिन्दुत्व को एक बड़ा एजेंडा बना दिया।

अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के 11 दिन बाद आज जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्स पर 96 वर्षीय आडवाणी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़े जाने की घोषणा की तो भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ ही अन्य राजनीतिक दलों एवं जनसामान्य ने इसका स्वागत किया। मोदी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि लालकृष्ण आडवाणी हमारे समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक हैं और भारत के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनका जीवन जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर हमारे उपप्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने तक का है। उन्होंने हमारे गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। उनके संसदीय हस्तक्षेप हमेशा अनुकरणीय और समृद्ध अंतर्दृष्टि से भरे रहे हैं।

मोदी ने आडवाणी से टेलीफोन पर बात की और उन्हें भारत मिलने की बधाई दी। इस घोषणा से गद्गद आडवाणी ने बाद में एक बयान जारी करके कहा कि मैं अत्यंत विनम्रता और कृतज्ञता के साथ भारत रत्न स्वीकार करता हूं जो आज मुझे प्रदान किया गया है। यह न केवल एक व्यक्ति के रूप में मेरे लिए सम्मान की बात है, बल्कि उन आदर्शों और सिद्धांतों के लिए भी सम्मान है जिनकी मैंने अपनी पूरी क्षमता से जीवन भर सेवा करने का प्रयास किया। भाजपा के इस दिग्गज नेता ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद भी ज्ञापित किया और कामना की कि हमारा महान देश महानता और गौरव के शिखर पर प्रगति करे।

आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा पर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न देने का निर्णय लिया गया, ये एक सुखद अनुभव देता है। पिछले वर्षों में भाजपा ने बहुत उतार चढ़ाव देखे, लेकिन आडवाणी जी ऐसे नेता रहे, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में पार्टी को सींचा और खड़ा किया। मैं आडवाणी जी को हार्दिक बधाई देता हूं।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हम सबके प्रेरणास्रोत एवं देश के वरिष्ठ नेता, श्रद्धेय लाल कृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न दिये जाने के निर्णय से बड़े हर्ष और आनंद की अनुभूति हुई है। वे राजनीति में शुचिता, समर्पण और दृढ़ संकल्प के प्रतीक हैं। आडवाणीजी ने अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में अनेक भूमिकाओं में, देश के विकास और राष्ट्रनिर्माण में जो महत्वपूर्ण योगदान किया है, वह अविस्मरणीय और प्रेरणास्पद है। भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने में भी उनकी महती भूमिका रही है। एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उन्होंने अपनी विद्वता, संसदीय एवं प्रशासनिक क्षमता से देश और लोकतंत्र को मज़बूत किया है। उन्हें भारत रत्न का सम्मान मिलना हर भारतवासी के लिए हर्ष का विषय है। मैं इस निर्णय के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद देता हूं एवं आडवाणीजी का अभिनंदन करता हूं।

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि देश के वरिष्ठतम नेता और हमारे मार्गदर्शक आदरणीय लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न की घोषणा अत्यंत सुखद और आनंददाई है। आज़ादी के बाद देश के पुनर्निर्माण में आडवाणी जी की अहम भूमिका रही है। आडवाणी जी राजनीति में शुचिता के जीवंत उदाहरण है। आडवाणी जी को भारत रत्न घोषित करने के लिए मैं प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद देता हूं तथा आडवाणी जी के स्वस्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करता हूं।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारे वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री आदरणीय लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा से अत्यंत प्रसन्नता हुई। आडवाणी जी आजीवन निःस्वार्थ भाव से देश और देशवासियों की सेवा में समर्पित रहे हैं। आडवाणी ने उप प्रधानमंत्री जैसे विभिन्न संवैधानिक दायित्वों पर रहते हुए उन्होंने अपने दृढ़ नेतृत्व से देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता के लिए अभूतपूर्व कार्य किए। आडवाणी को भारतीय राजनीति में प्रामाणिकता के मानक तय करने वाले राजनेता के रूप में जाना जाता है। अपने लम्बे सार्वजनिक जीवन में आडवाणी ने देश, संस्कृति और जनता से जुड़े मुद्दों के लिए अथक संघर्ष किया। भाजपा और उसकी विचारधारा के प्रति उनके विराट योगदान को शब्दों में समाहित नहीं किया जा सकता।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उमा भारती, बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार, कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित अनेक नेताओं ने आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किये जाने का स्वागत किया है और उन्हें बधाई दी है।

आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में हुआ था। उनका परिवार कराची के पारसी इलाके जमशेद क्वार्टर्स में रहा करता था। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई वहां के मशहूर सेंट पैट्रिक स्कूल में हुई थी। 14 साल की उम्र में ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। उनके परिश्रम एवं निष्ठा को देखते हुए उन्हें कराची की शाखा का प्रमुख बनाया गया था। जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तो उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। यहां पर उन्होंने गर्वनमेंट लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक किया।

विभाजन के एक महीने बाद सितंबर 1947 में आडवाणी कराची से दिल्ली के लिए आ गए। वह उन गिने चुने शरणार्थियों में शामिल थे जो ब्रिटिश ओवरसीज़ कॉरपोरेशन के विमान से दिल्ली पहुंचे थे। आडवाणी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राजस्थान से की थी। वह सन 1957 के चुनाव के बाद दीनदयाल उपाध्याय के अनुरोध पर आडवाणी दिल्ली आए थे। तब उनको नवनिर्वाचित सांसद अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लगाया गया ताकि वह अंग्रेज़ी बोलने वाले दिल्ली के अभिजात वर्ग के बीच अपनी पैठ बना सकें। आडवाणी तब वाजपेयी के 30 राजेंद्र प्रसाद रोड स्थित उनके निवास पर उनके साथ रहते थे।

वर्ष सन 1960 में ऑर्गनाइज़र के संपादक के आर मलकानी अपने प्रकाशन के लिए उनसे फ़िल्म समीक्षा लिखवाने लगे। आडवाणी नेत्र के उपनाम से फ़िल्म समीक्षाएं करने लगे। बाद में आडवाणी को पत्रकारों के कोटे से आरके पुरम में रहने के लिए एक फ़्लैट भी मिल गया। आडवाणी अपने स्कूटर से आरएसएस के झंडेवालान मुख्यालय जाया करते थे। सन 1970 में आडवाणी राज्यसभा के सदस्य बने। सन 1973 में उनके नेतृत्व में जनसंघ में हुए विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया गया। एक समय में प्रजा परिषद के नेता और जनसंघ के अध्यक्ष रहे बलराज मधोक को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

आपातकाल में इंदिरा गांधी की सरकार ने विपक्ष के तमाम नेताओं के साथ आडवाणी को भी गिरफ्तार किया था। बाद में वह जनसंघ के कोटे से मोरारजी देसाई सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बने। वर्ष 1980 में वह अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी के गठन में भी केन्द्रीय भूमिका में रहे। सन 1984 के आम चुनाव में भाजपा के बुरी तरह से पराजित होने के बाद सन 1986 में उन्हें पार्टी में जान फूंकने और उसकी मुख्य विचारधारा को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी दी गई। आडवाणी ने अयोध्या में बाबरी ढांचे का ताला खुलने के बाद श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन को भाजपा का राजनीतिक एजेंडा बनाया और देश भर में राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू किया।

सन 1990 आते आते वो कांग्रेस पार्टी को बराबर के स्तर पर चुनौती देने की स्थिति में हो गए। उन्होंने भाजपा में गांधीवादी समाजवाद को अपनाने की बहस को रोकने में सफलता पाई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दुत्व के एजेंडा को राजनीति की मुख्यधारा में ले आए।

वर्ष 1990 में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा ने राम मंदिर के मुद्दे को भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु में ला दिया। वर्ष 1989 में भाजपा ने श्रीराम जन्मभूमि के शिलान्यास के बाद देश भर में उत्पन्न राजनीतिक वातावरण में 60 से अधिक सीटें हासिल कीं और उसने केन्द्र में जनता दल की वीपी सिंह सरकार को समर्थन दिया। समाजवादी विचार की वीपी सिंह सरकार ने देश में हिन्दुत्व के उभार को रोकने के लिए सरकारी शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा कर दी। भारतीय समाज और खासकर हिंदुओं की एकता के लिए संघर्षरत आरएसएस ने इस घोषणा को हिंदू समाज में विभाजन के खतरे के रूप में लिया।

इसे देखकर आरएसएस ने 26 अगस्त 1990 को एक बैठक बुलाई जिसमें बैठक में अयोध्या आंदोलन को गति देने की रणनीति पर चर्चा हुई। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने भी हिंदू एकता की कोशिशों को धार देना शुरू किया। आरएसएस के समर्थन से आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथयात्रा निकालने की घोषणा कर दी।

साेमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा ने देशभर में रामलहर पैदा कर दी थह और इसकी राजनीतिक चुनौती को भांप 23 अक्तूबर 1990 को जब लालू प्रसाद यादव ने बिहार में समस्तीपुर में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून की धारा 3 के तहत गिरफ़्तार करवा लिया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व ने तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण सूचित किया कि उनकी पार्टी विश्वनाथ प्रताप सिंह की गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले रही है।

दो वर्ष बाद वर्ष 1992 में जब अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराया गया तो आडवाणी वहां मौजूद थे। बाद में उन्हें झांसी के निकट माताटीला बांध के गेस्ट हाउस में नज़रबंद रखा गया। इस दौरान उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में दो लेख लिखे थे जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि 6 दिसंबर, 1992 उनके जीवन का सबसे दुखद दिन था। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा था कि उनका दुख इस बात के लिए था कि संघ परिवार भीड़ को नियंत्रित करने में सफल नहीं हो पाया जिसकी वजह से उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ी।

वर्ष 1995 में आडवाणी के जीवन में एक ओर मोड़ आया जब जैन डायरी केस में उनका नाम हवाला के माध्यम से धन लेने के मामले में घसीटा गया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष आडवाणी ने संसद की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और दोषमुक्त होने तक चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया। देश में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे आडवाणी ने मुंबई की एक जनसभा में ऐलान किया कि 1996 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री होंगे। इस पर आरएसएस ने नाखुशी जाहिर की थी लेकिन आडवाणी अपनी बात पर कायम रहे। वर्ष 1996 के चुनाव में 160 से अधिक सीटें जीत कर भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में आई और वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्र की सरकार बनाई जो बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण मात्र 13 दिन चल पाई।

सन 1998 में जब भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार बनी तो लाल कृष्ण आडवाणी को पहले गृह मंत्री और फिर वर्ष 2002 में उप प्रधानमंत्री बनाया गया। वह देश के इतिहास के 7वें उप-प्रधानमंत्री बने। इस दौरान वाजपेयी की बस से लाहौर की यात्रा, कारगिल युद्ध और जनरल परवेज मुशर्रफ की यात्रा में आडवाणी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

अपने राजनीतिक करियर में आडवाणी भाजपा के सबसे अधिक बार अध्यक्ष रहे, उन्होंने 1986-1990, 1993-1998 और 2004-2005 के समय में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को संभाला। आडवाणी के नेतृत्व में देश के बड़े हिस्से पर भाजपा की पकड़ मजबूत हुई। इसी का नतीजा था कि भाजपा की अगुवाई वाला राजग 1998 में सत्ता पर काबिज हुआ। 1999 के आम चुनाव में एक बार फिर राजग ने जीत हासिल की।

आडवाणी ने अप्रैल 2004 को भारत उदय यात्रा निकाली। लेकिन अगले माह हुए 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की पराजय हुई। इसके बाद आडवाणी लोकसभा में विपक्ष के नेता बने। सन 2005 के बाद से आडवाणी नागपुर से आने वाले उन संकेतों को पढ़ने में विफल रहे जिसमें बार बार कहा जा रहा था कि अब उनके सक्रिय राजनीति से हटने का समय आ गया है। इसी बीच उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा की। इसी यात्रा में आडवाणी के राजनीतिक करियर में सबसे बड़ा विवाद उस समय उठ खड़ा हुआ जब उन्होंने कराची में मोहम्मद अली जिन्ना की मज़ार पर जाकर जिन्ना की तारीफ़ कर दी। उनकी अपनी समझ थी कि उन्होंने एक मास्टर स्ट्रोक खेला है, लेकिन उलटे उसने उनके राजनीतिक जीवन को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। भारत लौटने पर आरएसएस के दवाब में उन्हें भाजपा के अध्यक्ष पद को छोड़ना पड़ा।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी को भाजपा की ओर से पीएम इन वेटिंग के रूप में पेश किया गया लेकिन उस चुनाव में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पुन: सत्तारूढ़ हुआ और इसके बाद लोकसभा में आडवाणी की जगह सुषमा स्वराज को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। वर्ष 2013 के नवंबर में जब गोवा के पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी को भाजपा की प्रचार अभियान समिति का प्रमुख अथवा पार्टी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया गया, उस समय बहुत दुखी थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पूर्ण बहुमत पाने के बाद संसद के केन्द्रीय कक्ष में माेदी को संसदीय दल का नेता चुने जाते वक्त अआडवाणी की एक टिप्पणी से मोदी रो पड़े थे। उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेजे जाना भी बहुत से लोगों को नागवार गुजरा।

विपक्षी नेताओं तक ने इस पर सवाल उठाया। इसके बाद आडवाणी हाशिये पर ही रहे। दस साल उन्हें किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया। यहां तक कि पांच अगस्त 2020 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास एवं 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम में दिखावे का निमंत्रण दिया गया लेकिन आने से मना कर दिया गया। एक ऐसे नेता के लिए जिसने हज़ारों मील रथ पर चल कर भारतीय जनता पार्टी को लोगों के लिए प्रासंगिक बनाया, कांग्रेस की छद्म धर्मनिरपेक्षता काे उजागर किया और हिन्दुत्व को राजनीति की मुख्यधारा में स्थापित किया। उनका राजनीतिक मुख्यधारा में इस तरह दरकिनार किया जाना बहुत से लोगों को अच्छा नहीं लगा था।

आडवाणी को हमेशा किताबें पढ़ने एवं अच्छी चॉकलेट्स का शौक रहा। एलविन टॉफ़लर की फ़्यूचर शॉक, थर्ड वेव और पॉवर शिफ़्ट उनकी पसंदीदा किताबें हैं। उनको इतिहास और राजनीति पर लिखी स्टेनली वॉलपर्ट की किताबें भी बहुत पसंद हैं। आडवाणी फ़िल्में देखना भी खूब पसंद रहा है। सत्यजीत राय की फ़िल्में, हॉलीवुड की फ़िल्में द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई, माई फ़ेयर लेडी और द साउंड ऑफ़ म्यूज़िक उनकी पसंदीदा फ़िल्में हैं। हिंदी फ़िल्मों में आमिर ख़ां की तारे ज़मीन पर और शाहरुख़ ख़ान की चक दे इंडिया को उन्होंने बहुत पसंद किया। उन्हें संगीत का भी बहुत शौक रहा है। लता मंगेश्कर का ज्योति कलश छलके गीत उन्हें सबसे अधिक पसंद है। इसके अलावा वो मेहदी हसन, जगजीत सिंह और मलिका पुखराज की ग़ज़ले सुनने के भी शौकीन रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने के ऐलान ने उन सब लोगों को और भाजपा के करोड़ों कार्यकर्ताओं खासकर राज्यों में आडवाणी द्वारा खड़े किए गए उम्रदराज़ नेेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई है और वे इसे आडवाणी की कड़ी तपस्या और दशकों की मेहनत का यथोचित सम्मान मान रहे हैं।