महंगाई राहत शिविर के नाम पर आमजन क्यों हो परेशान?

नसीराबाद। राज्य सरकार महंगाई राहत शिविर के नाम पर आमजन को क्यों परेशान कर रही है जबकि इस तरह के शिविर की कोई आवश्यकता ही नहीं है। गजब बात यह है कि प्रदेश भर में महंगाई राहत शिविर के नाम पर राज्य सरकार करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है।

शिविर में रजिस्ट्रेशन के नाम पर उपभोक्ताओं को गारंटी कार्ड के रूप में मुख्यमंत्री गहलोत की तस्वीर वाला कार्ड वितरित किया जा रहा है, जो निश्चित रूप से चुनावी हथकंडा ही नजर आता है। रजिस्ट्रेशन करवाकर उपरोक्त सुविधाओं का लाभ लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। जनाधार से जुड़े होने के कारण सभी उपभोक्ताओं का डाटा राज्य सरकार के पास दर्ज है।

डाटा के आधार पर अभी तक खाद्य सुरक्षा योजना और उससे संबंधित अन्य योजनाओं के लाभ उपभोक्ताओं को मिलते आ रहे हैं, सवाल लाजमी है कि सरकार को इस तरह के महंगाई राहत शिविर की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? राज्य सरकार की 10 योजनाओं का लाभ इस पंजीकरण के माध्यम से दिया जा रहा है।

देखने वाली बात यह है कि राज्य सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा योजना के लिए ना तो नए नाम जोड़े जा रहे हैं और ना ही किसी प्रकार से परिवार के अन्य सदस्यों का नाम खाद्य सुरक्षा योजना में जोड़ा जा रहा है तो फिर अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना के लिए रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता कहां पड़ रही है?

जिन लोगों को खाद्य सुरक्षा का गेहूं मिल रहा है यदि उन्हें अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना का लाभ देना है तो उसके लिए क्यों पंजीयन करवाया जा रहा है? यदि राज्य सरकार महंगाई राहत शिविर के माध्यम से उपभोक्ताओं को राहत ही देना चाहती है तो उन्हें खाद्य सुरक्षा योजना का दायरा बढ़ाते हुए जिन लोगों को इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है या 2 साल पूर्व आवेदन करने वालों को इस योजना में शामिल कर उन्हें राहत प्रदान की जानी चाहिए।

यहां तक कि पिछले चार साल से खाद्य सुरक्षा योजना लाभ प्राप्त कर रहे परिवार में नए सदस्य आए हैं, जो बच्चे पैदा हुए हैं उनके नाम भी इस योजना में नहीं जोड़े जा रहे हैं। ऐसे में किस प्रकार उनको राहत प्रदान की जा रही है, यह समझ से परे है।

इसी प्रकार अन्य योजनाओं के बारे में भी कहा जा सकता है कि जब मुख्यमंत्री चिरंजीवी बीमा योजना और चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना का लाभ उपभोक्ताओं को सीधे ही मिल रहा है, घरेलू बिजली कनेक्शन में 50 यूनिट फ्री दिए जा यह हैं तो 100 यूनिट भी फ्री किए जा सकते हैं। इसके लिए पंजीयन करवाने की कहां आवश्यकता पड़ रही है।

सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में भी लोगों को सुरक्षा पेंशन योजना मिल रही है। प्रतिमाह उनके खातों में पेंशन की राशि हस्तांतरित की जा रही है। ऐसे में उपरोक्त योजनाओं में पंजीयन का कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा। राज्य सरकार राहत शिविर के नाम पर करोड़ों रुपए अनावश्यक रूप से खर्च कर जनता पर कर्ज का बोझ लाद रही है।

यह कहना गलत ना होगा कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुनावी वर्ष होने के कारण उपरोक्त योजनाओं को आवश्यक रूप से लागू कर रहे हैं और आम जनता के मन में खुद के प्रति एक ऐसी भावना पैदा कर रहे हैं, जिससे आने वाले चुनाव में जनता उन्हें ही चुने।

जिन उपभोक्ताओं को पंजीयन के बाद मुख्यमंत्री गारंटी कार्ड व अन्य पत्रक प्रदान किए जाते हैं तो क्या ये पत्रक दिखाने मात्र से ही सभी सुविधाएं मिल जाएंगी, क्या उन्हें ऑनलाइन कार्ड का फॉर्म नहीं भरना पड़ेगा। यदि नहीं तो फिर इन पत्रकों की क्या आवश्यकता है।

उपरोक्त 10 योजनाओं के पंजीयन के लिए उपभोक्ता सुबह 7 बजे से शिविर स्थल पर जमा होने शुरू हो जाते हैं। शिविर में टोकन/कूपन के हासिल करने के बाद कई बार आलम यह होता है कि सरवर बहुत धीमा चलता है, कई बार तो ही ठप हो जाता है जिससे उपभोक्ताओं को भरी गर्मी में सुबह से शाम तक अपनी बारी का इंतजार करते हुए परेशान होना पड़ता है।

ऐसे में सवाल यह है कि जब राज्य सरकार के पास सभी उपभोक्ताओं के डाटा दर्ज हैं तो फिर इस तरह के शिविर आयोजन कर नाहक परेशानी में डालना बेमानी सरीखा ही है। इससे सरकारी धनराशि का भी दुरुपयोग होता है। अतः मुख्यमंत्री को इस पर पुनर्विचार कर इन शिविरों के स्थान पर अन्य लोगों को योजनाओं का लाभ देने की कोशिश करनी चाहिए।

अमित कुमार चौकडीवाल

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