सूरत की कोर्ट ने राहुल गांधी को सुनाई दो वर्ष की कैद, जमानत मंजूर

सूरत। गुजरात में सूरत की एक स्थानीय अदालत ने ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुरुवार को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई, हालांकि इस मामले में तुरंत उनकी जमानत मंजूर हो गई।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा की अदालत ने आज गांधी को दोषी करार देते हुए उन्हें दो साल की सजा सुनाई। अदालत के फैसले के बाद हालांकि उन्हें फैसले पर अमल के लिए 30 दिन की मोहलत दी और उनकी जमानत भी मंजूर कर ली।

इस दौरान राहुल गांधी अदालत में मौजूद रहे। वह 30 दिन के अंदर निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं। अदालत ने गांधी की 10 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत मंजूर की है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता पूर्णेश मोदी ने गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था। मोदी गुजरात की सूरत पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक हैं।

अदालत से सजा का एलान होने के बाद गांधी ने ट्विटर पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा कि मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन।

दूसरी तरफ राहुल गांधी के खिलाफ इस मामले में मानहानि का मामला दायर करने वाले मोदी ने कहा कि हम अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं। यह न्यायिक प्रक्रिया है और यह एक अहम फैसला है।

…तो राहुल की लोकसभा सदस्यता पर आज तलवार न टंगी होती

मानहानि के एक मामले में गुजरात की एक अदालत के कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को गुरुवार को दोषी ठहराने और दो साल के कारावास की सज़ा सुनाने से उनकी लोकसभा सदस्यता पर तलवार टंगी हुई है, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ वकील के अनुसार ऐसा नहीं हाेता यदि 2013 में उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय को उलटने के लिए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से लाए गए अध्यादेश को फाड़ नहीं दिया
होता।

एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि चूंकि राहुल गांधी को दो वर्ष की सज़ा सुनाई है और लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8(3) के अनुसार दो वर्ष की सज़ा की अवधि का उल्लेख है, इसलिए केरल के वायनाड से सांसद को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

कुमार ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2013 में लिलि थॉमस बनाम भारत सरकार केस में सांसद/विधायक को राहत देने हुए उक्त कानून में तत्कालीन लागू धारा 8 (4) को असंवैधानिक घोषित कर कानून से खारिज कर दिया था जिसके तहत तीन माह की अवधि के लिए मौजूदा सांसद/विधायक की दोषसिद्धि एवं दंडादेश स्वत: स्थगित हो जाया करता था।

उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार एक अध्यादेश लाकर उक्त निर्णय को पलटना चाहती थी और केंद्रीय कैबिनेट ने इस सम्बन्ध में अध्यादेश को मंजूरी भी दे दी थी लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उस प्रस्तावित अध्यादेश की प्रति को कम्पलीट नॉनसेंस करार करते हुए फाड़ दिया था।

इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उक्त अध्यादेश पर एतराज जताया था और उस समय के केंद्रीय कानून मंत्री को अपने पास बुलाकर इस पर स्पष्टीकरण मांगा था। अक्टूबर 2013 में मनमोहन सिंह सरकार ने उस प्रस्तावित अध्यादेश को वापस लेने का निर्णय ले लिया। अगर राहुल गांधी उस प्रस्तावित अध्यादेश को न फाड़ते और वह कानून बन जाता, तो अब उन्हें ऊपरी अदालत में जाकर विशेष तौर पर अपनी दोषसिद्धि को स्टे न करवाना पड़ता।

आज गुजरात में सूरत जिले की मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को चार वर्ष पूर्व 2019 में बेंगलूरु में दिए गए एक बयान कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है? से जुड़े मानहानि मामले में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 499/500 के तहत दोषी करार करते हुए उन्हें दो वर्ष के कारावास और 15 हजार रुपए के जुर्माने का फैसला सुनाया है। इसी के साथ अदालत ने राहुल गांधी को 30 दिनों के लिए ज़मानत भी मंजूर कर दी है ताकि वह उच्च अदालत में इस निर्णय के विरूद्ध अपील दायर कर सकें।

सूरत की अदालत का दिया दंडादेश दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी ), 1973 की धारा 389 के अंतर्गत इसके आगामी 30 दिनों तक के लिए स्थगित कर दिया गया है ताकि वह ऊपरी अदालत में इसको चुनौती देते हुए अपील दायर कर सकें।

एडवोकेट कुमार ने बताया कि केवल अपीलेट सूरत सेशंस कोर्ट में उक्त 30 दिन की अवधि में क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अर्थात सूरत के सीजेएम अदालत के दंडादेश के विरूद्ध स्थगन आदेश (स्टे) प्राप्त करना ही राहुल के लिए पर्याप्त नहीं होगा बल्कि अगर उन्हें अपनी लोकसभा सदस्यता बचाए रखनी है है, तो जैसा सुप्रीम कोर्ट के सितम्बर 2018 के लोक प्रहरी बनाम भारत सरकार निर्णय में उल्लेख है, उन्हें अपनी दोषसिद्धि के आदेश का भी अपीलेट सेशंस कोर्ट से स्थगन करवाना होगा, जो राहत प्रदान करना या न करना उस अदालत/जज के विवेक पर निर्भर करता है।

उच्चतम न्यायालय के निर्णयों अनुसार ऐसे मामलों में सजा के आदेश /दंडादेश को तो अपीलेट कोर्ट (सेशंस कोर्ट या हाई कोर्ट) तत्काल स्टे कर सकती है परन्तु दोषसिद्धि को कुछ विशेष या उपयुक्त परिस्थितियों में ही अपीलेट कोर्ट द्वारा लिखित कारणों को स्पष्ट कर ही स्थगित किया जाना चाहिए न ही रूटीन (आम) मामलों जैसे।

वरिष्ठ वकील हेमंत ने इसी वर्ष जनवरी 2023 में मौजूदा 17वीं लोकसभा में लक्षद्वीप लोकसभा सीट से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सांसद मोहम्मद फैज़ल पीपी के मामले का हवाला देते हुए बताया कि उन्हें जब सेशंस कोर्ट से हत्या के प्रयास में 10 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गयी तो उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया जिसके बाद उनकी सीट रिक्त घोषित कर उस पर भारतीय चुनाव आयोग ने उपचुनाव का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया था हालांकि बाद में केरल उच्च न्यायालय से सांसद मोहम्मद फैज़ल को उनकी दोषसिद्धि के विरूद्ध स्टे प्राप्त होने पर ही उन्हें राहत प्राप्त हुई एवं चुनाव आयोग ने उपचुनाव के कार्यक्रम को रद्द किया था।