लंदन। वैज्ञानिकों ने 50 लाख से अधिक लोगों के आनुवांशिक आंकड़ों के आधार पर एक शक्तिशाली जेनेटिक स्कोर विकसित किया है जो बचपन से ही मोटापे के खतरे की भविष्यवाणी कर सकता है और माता-पिता समय से कदम उठाते हुए अपने बच्चों को इस समस्या से बचा सकते हैं।
पॉलीजेनिक जोखिम स्कोर (पीआरएस), जिसे पॉलीजेनिक इंडेक्स या जेनेटिक जोखिम स्कोर के रूप में भी जाना जाता है, एक संख्या है जो किसी विशिष्ट बीमारी या लक्षण के लिए किसी व्यक्ति के जोखिम पर कई आनुवंशिक वेरिएंट के अनुमानित प्रभाव को सारांशित करती है। यह अनिवार्य रूप से यह मापता है कि किसी व्यक्ति का वंशानुगत जोखिम उसकी आनुवंशिक संरचना के आधार पर अन्य लोगों से कितना भिन्न है।
पीआरएस की गणना आमतौर पर बड़े पैमाने पर जीनोमिक अध्ययनों के आधार पर की जाती है, जिसमें रोगग्रस्त और रोगरहित समूहों की तुलना की जाती है। पीआरएस यह दर्शाते हैं कि किसी व्यक्ति का आनुवंशिक जोखिम अन्य लोगों की तुलना में कैसा है। पीआरएस कुछ बीमारियों के लिए उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जिससे पहले और अधिक लक्षित हस्तक्षेप संभव हो सकेगा।
बिटेन के कोपेनहेगन और ब्रिस्टल विश्वविद्यालयों के नेतृत्व में यह नया शोध से हुआ है। वैज्ञानिकों ने यह स्कोर आनुवांशिकी जानकारी के आधार पर गणना करके तैयार किया है और इसमें व्यक्ति के परिवार के बारे में आनुवांशिक जानकारी को शामिल किया गया है कि माता पिता, दादा दादी मोटापे से ग्रस्त थे या नहीं। इससे यह पता चलता है व्यक्ति में मोटापे का खतरा कितना अधिक या कम है। यह स्कोर शरीर के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को भी वरीयता देता है।
बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) एक संख्या है जो किसी व्यक्ति के वजन को उनकी ऊंचाई के अनुपात में मापता है, और यह बताता है कि क्या उनका वजन सामान्य, कम वजन, अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त है। यह टेस्ट पांच वर्ष की उम्र से पहले ही मोटापे के खतरे का आकलन कर सकता है,जिससे जीवनशैली में बदलाव और अन्य उपायों की मदद से बच्चों को मोटा होने से बचाया जा सकता है।
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन का अनुमान है कि वर्ष 2035 तक वैश्विक आबादी का आधे से अधिक हिस्सा अधिक मोटापे से ग्रस्त हो जाएगा। हालांकि, जीवनशैली में बदलाव, सर्जरी और दवाओं और उन्य उपायों के कारण यह बात सभी देशों पर लागू नहीं हो सकती।
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय में महामारी विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एवं इस शोध के लेखक डॉ. केटलिन वेड ने कहा कि मोटापा एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। आनुवांशिकी, वातावरण, जीवनशैली और व्यवहार समेत कई ऐसे मुद्दे हैं जो इसके लिए जिम्मदार हैं। ये कारक एक व्यक्ति के जीवन में भिन्न हो सकते हैं और हमें लगता है कि इनमें से कुछ बचपन में उत्पन्न होते हैं।