राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक को संसद की मंजूरी

नई दिल्ली। राज्यसभा ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक को विपक्ष के संशोधन प्रस्तावों को खारिज करते हुए सोमवार को ध्वनिम से पारित कर दिया। विधेयक के पक्ष में 131 और विपक्ष में102 मत पड़े। इसके साथ ही इस विधेयक पर संसद की मुहर लग गई क्योंकि लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।

सदन ने विधेयक को व्यापक विचार विमर्श के लिए प्रवर समिति में भेजने के द्रमुक के तिरूचि शिवा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के जॉन ब्रिटास और आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा के प्रस्तावों को ध्वनिम से खारिज कर दिया।

सदन ने विधेयक को नामंजूर करने के लिए लाए गए राष्ट्रीय राष्ट्रीय जनता दल के एडी सिंह, मार्क्सवादी इलामारम करीम, मरूमलारची द्रमुक के वाइको, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एए रहीम, आम आदमी पार्टी के राघव चढ्डा, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के ही डा़ जॉन ब्रिटास , मार्क्सवादी विनय विश्वम, द्रमुक के तिरूचि शिवा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वी शिवदासन, भारत राष्ट्र समिति के केशव राव और आम आदमी पार्टी के सुशील कुमार गुप्ता ने विधेयक के वैधानिक प्रस्ताव को भी ध्वनिमत से खारिज कर दिया। इस प्रस्ताव में कहा गया था ‘यह सभा 19 मई 2023 को राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) अध्यादेश 2023 का निरनुमोदन करती है।’

गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर छह घंटे से भी अधिक समय तक चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि यह विधेयक पूरी तरह संविधान सम्मत है और यह दिल्ली में शासन व्यवस्था को भ्रष्टाचारविहिन तथा लोकाभिमुख बनाने के लिए लाया गया है। उन्होंंने कहा कि यह विधेयक उच्चतम न्यायालय के फैसले का किसी भी पहलू से उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने कहा कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस विधेयक में सभी वही प्रावधान हैं जिनके माध्यम से 1991 से 2015 तक दिल्ली की सरकार शासन कर रही थी।

उन्होंने कहा कि यह विधेयक दिल्ली सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण करने के लिए नहीं लाया गया है बल्कि इसलिए लाया गया है क्योंकि दिल्ली में सत्ता में बैठी सरकार नियम को नहीं मान रही थी और केन्द्र सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण करने की कोशिश कर रही थी। इस अतिक्रमण को वैधानिक तरीके से रोकने के लिए यह विधेयक लाया गया है।

उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था 1991 में कांग्रेस के केन्द्र में सत्तासीन रहते हुए कांग्रेस द्वारा ही बनायी गयी थी और इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है इसलिए कांग्रेस को इस विधेयक का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में आने से पहले कभी भी केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच शक्तियों के बंटवारे को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ।

शाह ने कहा कि आम आदमी पार्टी चाहती है कि वह चुनाव तो पंचायत का लड़े और उसे अधिकार देश के प्रधानमंत्री के मिल जाएं। उन्होंने कहा कि केवल सपना आने से अधिकार नहीं मिल सकते, प्रधानमंत्री बनने के लिए संसद का चुनाव जीतना होगा क्योंकि विधायक का चुनाव लड़ने पर तो मुख्यमंत्री ही बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी को अपनी मानसिकता को बदलना पड़ेगा इसका उपचार और किसी के पास नहीं है। इससे पहले भी केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच नियुक्ति तथा तबादलों को लेकर कभी कोई झगडा नहीं हुआ।

गृह मंत्री ने कहा कि दिल्ली विशेष दर्जे का केन्द्र शासित प्रदेश है जहां दूतावास, उच्चतम न्यायालय और दूतावास हैं यहां विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष आते हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर दिल्ली को केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में सीमित अधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि संविधान बनाते समय भी मसौदा समिति ने भी इस बारे में विस्तृत विचार विमर्श किया और संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर तथा पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की एक सिफारिश का विरोध किया था।

उन्होंने कहा कि जब सबसे पहले दिल्ली सरकार 2015 में न्यायालय में गई तो उच्च न्यायालय ने मंत्रिपरिषद के अधिकार स्थापित किए थे। बाद में उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने गत 11 मई को दिल्ली सरकार को सेवाओं का अधिकार दिया तो साथ में यह भी कहा था कि संसद को दिल्ली के सभी विषय पर कानून बनाने का अधिकार है। उसी अधिकार के तहत यह विधेयक लाया गया है। विपक्ष के अदालत की अवमानना के आरोपों पर उन्होंने कहा कि अगर अदालत ने स्थगनादेश दिया हो तो अवमानना होती। अदालत ने स्थगनादेश तो दिया ही नहीं और न ही यह विधेयक अदालत के फैसले के विरूद्ध है तो फिर अवमानना कैसी। न्यायालय ने कहा है कि संसद को कानून बनाने का अधिकार है।

उच्चतम न्यायालय का अवकाश होने के बाद अध्यादेश लाये जाने के आरोपों का जवाब देते हुए शाह ने कहा कि न्यायालय में अवकाशकालीन पीठ होती है। वह भी स्थगनादेश दे सकती है। उन्होंने कहा कि अध्यादेश इसलिए लाना पड़ा क्योंकि दिल्ली सरकार ने आदेश आने से पहले ही अधिकारियों के तबादले और संवेदनशील विशेष रूप से सतर्कता विभाग की फाइलों के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी।

गृह मंत्री ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों तथा अन्य दलों के गठजोड़ पर भी तंज कसते हुए कहा कि ये सब स्वार्थ पर आधारित हैं। गृह मंत्री ने मणिपुर पर चर्चा के लिए विपक्ष को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि 8, 9 और 10 अगस्त को लाेकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पूरा होने के बाद वह 11 अगस्त को इस सदन में मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार हैं। उन्होंने विपक्ष के नेता पर आरोप लगाया कि वे मणिपुर पर चर्चा से भाग रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले दिन ही पत्र लिखकर स्पष्ट कर दिया था कि वह इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हैं।

विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के विपक्ष के प्रस्तावों में प्रवर समिति में शामिल किए जाने वाले सदस्यों में कुछ सदस्यों के नाम उनसे बिना पूछे डाले जाने पर भी सदन मेंं शोर शराबा हुआ। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विशेषाधिकार हनन का मामला है और इसकी जांच होनी चाहिए। बीजू जनता दल के सस्मित पात्रा और भारतीय जनता पार्टी के फांगयोन कोन्याक तथा अन्नाद्रमुक के एम थम्बीदुरई ने कहा कि उनके नाम उनकी अनुमति लिए बिना ही प्रस्तावों का हिस्सा बनाए गए हैं और वह इसका कड़ा विरोध करते हैं। उन्होंंने कहा कि उन्होंने इस संबंध में कहीं हस्ताक्षर नहीं किए हैं। बाद में उप सभापति हरिवंश ने कहा कि इस मामले की जांच की जाएगी।