कश्मीर में मौलवी फारूक की हत्या के 33 साल बाद दो आरोपी अरेस्ट

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 33 वर्ष पहले मौलवी मोहम्मद फारूक की हत्या में शामिल दो आरोपियों को मंगलवार को गिरफ्तार किया। मौलवी फारूक की 21 मई 1990 को अज्ञात बंदूकधारियों ने श्रीनगर स्थित उनके आवास में हत्या कर दी थी।

पुलिस ने मंगलवार को बताया कि मौलवी फारूक की हत्या करने वाले हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी जावेद अहमद भट उर्फ ​​अजमल खान और जहूर अहमद भट उर्फ ​​बिलाल करीब 33 साल से फरार थे। जम्मू-कश्मीर पुलिस की विशेष जांच एजेंसी (एसआईए) ने दोनों आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया है। केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दोनों को भगोड़ा अपराधी घोषित किया हुआ था।

अपराध जांच विभाग के विशेष पुलिस महानिदेशक आरआर स्वैन ने दोनों अपराधियों की गिरफ्तारी की घोषणा करते हुए बताया कि मामले में आरोपी हिज्बुल के पांच लोगों के समूह कमांडर अब्दुल्ला बांगरू और उसके सहयोगी रहमान शिगन दोनों मुठभेड़ में मारे गए थे। स्वैन ने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा कि अयूब डार इस मामले में गिरफ्तार एकमात्र व्यक्ति था जिसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और जबकि अफजल और बिलाल फरार चल रहे थे।

उन्होंने कहा कि दोनों अंडर ग्राउंड (भूमिगत) हो गए थे और इन वर्षों के दौरान दोनों नेपाल और पाकिस्तान सहित कई अन्य जगहों पर छिपे हुए थे। दोनों कुछ साल पहले कश्मीर वापस लौटे थे। उन्होंने बताया कि वे पुलिस से बचने के लिए लगातार नाम और अपना स्थान बदलते रहते थे। डीजीपी ने बताया कि दोनों को गिरफ्तार कर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को पूछताछ के लिए सौंप दिया गया है।

गौरतलब है कि नरमपंथी हुर्रियत कांफ्रेंस धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारूक के पिता मौलवी मोहम्मद फारूक की 21 मई 1990 को हथियारबंद लोगों ने उनके निगीन आवास में घुसकर हत्या कर दी थी। पुलिस ने बताया कि मौलवी फारूक की हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने उन पर शांतिप्रिय और भारतीय एजेंट होने का आरोप लगाते हुए हत्या कर दी थी।

मौलवी फारूक की हत्या के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने श्रीनगर के नगीन पुलिस थाने में मामला दर्ज किया। इसके बाद सरकार ने 11 जून 1990 को जांच सीबीआई को सौंप दी गई। पुलिस ने एक बयान में बताया कि मीरवाइज की हत्या से पहले हिज्बुल मुजाहिदीन के सभी पांचों आतंकवादी 1990 में हथियारों के प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान गए थे।

पुलिस ने बताया कि श्रीनगर में वापस आने पर अब्दुल्ला बांगरू को अप्रैल 1990 में पाकिस्तान में अपने आईएसआई आकाओं से मीरवाइज की हत्या करने के निर्देश मिले थे। उन्होंने बताया कि कई वर्षों तक चली जांच के दौरान यह पता चला कि तत्कालीन हिजबुल्ला कमांडर अब्दुल्ला बांगरू के निर्देश पर जहूर भट ने मौलवी फारूक को गोली मारी थी जो कि गिरफ्तारी से बचने के लिए छिप रहा था।