सृष्टि का कल्याण केवल सनातन में है : मोहन भागवत

हरिद्वार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि सृष्टि का कल्याण केवल सनातन धर्म में है। भागवत आज यहां जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज के आचार्य पद पर 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में हरिहर आश्रम में एक विशाल संत समागम को संबोधित कर रहे थे। इस समारोह में देश के कई राजनेता एवं जाने-माने संत शामिल हुए।

भागवत ने कनखल स्थित हरिहर आश्रम में शुरू हुए तीन दिवसीय दिव्य आध्यात्मिक महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि कहा कि विश्व कल्याण की कामना हम कर रहे हैं जिसमें भी भय मुक्त कामना की कल्पना करते हैं। उन्होंने कहा कि सृष्टि का कल्याण केवल सनातन में है। ज्ञान भाषण से नहीं आचरण से आता है। अगर एक शब्द का भी आचरण कर लिया जाए तो दुनिया में परिवर्तन आ सकता है। भगवान श्रीराम इसलिए पुरुषोत्तम नहीं कहलाए, इसके लिए उन्होंने मर्यादाओं का पालन किया।

उन्होंने कहा कि अगर हम अपना जीवन बदले तो दुनिया में बदलाव आएगा और भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा। कल्याणकारी सनातन वर्ण का पालन करें तो दुनिया का भला होगा और हमारा भी भला होगा।

संघ प्रमुख ने कहा कि सनातन सर्वे भवंतु सुखिनः की बात करते हैं। जो रहेगा वह सनातन है। ज्ञान भाषण से नहीं आचरण से पहुंचता है। हम अपने आचरण से प्रमाण स्थापित करें। जैसे प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन में प्रमाण स्थापित कर बताया कि वह मर्यादा पुरुषोत्तम है। कहा कि सत्य, करुणा, शुचिता और तपस्या समष्टि के कल्याण के सूत्र हैं। इसे आत्मसात कर चलेंगे तो हमारा भी भला होगा और दुनिया का भी।

आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति बहुत प्राचीन संस्कृति है। जो समस्त विश्व को अपना कुटुंब मानती है आज समझती कल्याण के क्या सूत्र हो सकते हैं इस पर विचार गोष्ठी रखी गई। उन्होंने कहा कि समष्टि का अर्थ है कि सब कैसे प्रसन्न रहे तथा प्रकृति, पर्यावरण का कैसे संरक्षण हो।

संतो की ओर से आज यह सूत्र प्रतिपादित किए गए कि किस प्रकार विश्व को एकता प्रति प्रेम एवं सामान्य में कैसे दिया जा सके वह भारत के सनातन धर्म में और भारत के सनातन संस्कृति में है। भारत की सनातन संस्कृति पूरे विश्व को अपना मानती है इस प्रकार के सूत्रों पर आज चर्चा हुई और यहां तीन दिवसीय कार्यक्रम में देशभर के विद्वान राजनेता एवं संत मनीषिगण अपने-अपने विचार रखेंगे।