संस्कृत के अनुपम और विपुल साहित्य को देखकर दुनिया के वैज्ञानिक भी चकित

संस्कृत भारती के जनपद सम्मेलन में हुआ संस्कृत समागम
अजमेर। संस्कृत भारती चित्तौड़ प्रांत की ओर से भगवानगंज स्थित स्थानीय शहीद अविनाश महेश्वरी आदर्श विद्या निकेतन में आयोजित सात दिवसीय आवासीय ‘भाषा बोधन वर्ग’ का दीक्षांत समारोह एवं संस्कृत भारती अजमेर का जनपद सम्मेलन रविवार को आयोजित किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण कर किया गया। कार्यक्रम कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में अतिथि नृसिंह मंदिर होली धड़ा के महंत श्याम सुंदर शरण देवाचार्य, देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त गौरव सोनी, पूर्व संयुक्त निदेशक बीमा विभाग राधेश्याम निर्माण, प्रांत अध्यक्ष कृष्ण कुमार गौड़, प्रांत मंत्री परमानंद शर्मा तथा समापन कार्यक्रम में राजस्थान क्षेत्र संयोजक तग सिंह राजपुरोहित समाजसेवी एवं प्रमुख व्यवसायी आनंद अरोड़ा रहे।

अतिथि परिचय एवं स्वागत के बाद प्रांत मंत्री परमानंद ने बताया कि सात दिवसीय यह शिविर पूरी तरह आवासीय था। इस शिविर में 12 जिलों से 250 से अधिक संस्कृतानुरागी महिला एवं पुरुष शिविरार्थियों, शिक्षक एवं प्रबन्धकों ने भाग लिया। शिविर का वातावरण पूर्णतया संस्कृतमय रहा। सभी शिक्षक, शिक्षार्थी एवं प्रबंधकों द्वारा संस्कृत में ही वार्तालाप व्यवहार किया गया।

योग्य एवं कुशल शिक्षकों द्वारा युक्ति प्रयुक्ति पूर्वक अत्यंत सरल रूप से संस्कृत बोलने का अभ्यास एवं प्रशिक्षण कराया गया। वर्ग में संस्कृत संध्या का भी आयोजन किया गया इसके अंतर्गत संस्कृत में भजन, गीत, नाटक, एकांकी एवं कथा आदि कार्यक्रम शिविरार्थियो द्वारा प्रस्तुत किए गए।

गौरव सोनी ने संस्कृत के संबंध में अपने विचार व अनुभव साझा करते हुए बताया कि संस्कृत और संस्कृत के मंत्रों में अदभुत शक्ति है जिसके माध्यम से प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर असंभव कार्यों को भी संभव किया जा सकता है।

महंत श्यामसुंदर शरण देवाचार्य ने कहा कि संस्कृत देववाणी है और जो संस्कृत बोलता है, वह देव तुल्य हो जाता है। जिस प्रकार एक ही भाषा भाषी आपस में मिलकर बात करते समय एक दूसरे से बड़े प्रसन्न होते हैं, इस प्रकार संस्कृत भाषा देव भाषा है। संस्कृत बोलने वाले से देवता भी प्रसन्न रहते हैं। संस्कृत भाषा से ही कई भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। दूसरे शब्दों में इसे भारतीय भाषाओं की जननी माना गया है।

उन्होंने कहा कि देश-विदेश के कई बड़े विद्वान संस्कृत के अनुपम और विपुल साहित्य को देखकर चकित रह गए हैं। कई विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक रीति से इसका अध्ययन किया और गहरी गवेषणा की है। समस्त भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी यदि कोई भाषा है तो वह संस्कृत ही है।

प्रान्त अध्यक्ष कृष्ण कुमार गौड ने संस्कृत शिक्षण में कुशल शिक्षकों की योगदान की सराहना करते हुए कहा कि भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन एवं विकास के सोपानों की संपूर्ण व्याख्या संस्कृत वाङ्गमय में उपलब्ध है।

समापन कार्यक्रम के मुख्य वक्ता तग सिंह राजपुरोहित ने भीषण अकाल के समय भी निरन्तर हल चलाने वाले किसान की कथा उदाहरण देते हुए आह्वान किया कि हमें अपने संस्कृत अभ्यास को नित्य निरंतर बनाए रखते हुए और प्रकृष्टता से संस्कृत का प्रचार प्रसार करना चाहिए।

महानगर अध्यक्ष विष्णु शरण शर्मा ने बताया कि संस्कृत भारती संस्कृत भाषा को जन भाषा बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। इस प्रकार के शिविरों के माध्यम से संस्कृत के कुशल प्रशिक्षक तैयार किए जा रहे हैं। अजमेर के संस्कृतानुरागी नागरिक भी समापन कार्यक्रम में सहभागी रहे। इस अवसर पर प्रशिक्षणार्थियों ने संस्कृत गीत, कविता, मंत्र, श्लोक, नाटिका एवं नृत्य आदि की प्रस्तुति से सभी को अभिभूत कर दिया।

कार्यक्रम के अंत में प्रांत सचिव भूपेंद्र सिंह चौहान ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. आशुतोष पारीक ने किया। इस अवसर पर महानगर मंत्री वरुण कुमार सेन, सहमंत्री हिम्मत सिंह चौहान, महानगर प्रचार प्रमुख शिखा शर्मा, प्रांत कोष प्रमुख महेश कुमार शर्मा, प्रांत प्रचार प्रमुख यज्ञ आमेटा, संपर्क प्रमुख तरुण मित्तल, महाविद्यालय विद्यार्थी प्रमुख ललित नामा, विद्वत परिषद प्रमुख पवन शर्मा, भीलवाड़ा विभाग संयोजक परमेश्वर प्रसाद कुमावत, शाहपुरा जिला सहमंत्री जगदीश साहू, बृजेश कुमार बारां, अजमेर सह जिलामंत्री देवराज कुमावत, उदयपुर विभाग संयोजक डॉ. दुष्यंत नागदा, हिमांशु शर्मा, चैन शंकर दशोरा आदि उपस्थित रहे।