सुप्रीम कोर्ट ने PFI सदस्यों की जमानत पर मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलटा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के आठ संदिग्ध कार्यकर्ताओं को जमानत पर छोड़ने के मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को बुधवार को पलट दिया। शीर्ष अदालत ने सभी आठ आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत को तत्परता से इस मामले को निटपने को कहा है।

इन आठों व्यक्तियों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज है। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा किये जाने के उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया। इन आरोपियों पर देशभर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की साजिश रचने का आरोप है और यह मामला विशेष अदालत के विचाराधीन है।

उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध केंद्रीय जांच एजेंसी की याचिका पर सुनवायी की। मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इन सभी आरोपियों की जमानत की अर्जी मंजूर कर ली थी और उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने प्रतिवादियों की जमानत को रद्द करते हुए उन्हें तुरंत राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई कर रही तमिलनाडु की विशेष अदालत को आज के अपने आदेश की किसी टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना कानून के अनुसार इस मामले का शीघ्र निपटान करने का भी निर्देश दिया।

पीठ ने इन आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए कहा कि इनके खिलाफ प्रथम दृष्टया आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लिए धन इकट्ठा करने के आरोप सत्य प्रतीत होते हैं। मद्रास उच्च न्यायाल ने गत 19 अक्टूबर, 2023 को इन आरोपियों की जमानत की अर्जी मंजूर की थी।

उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एसएस सुंदर और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की पीठ ने जमानत अर्जी स्वीकार करते हुए इन आरोपियों के किसी आतंकवादी गतिविधि या आतंकवाद के लिए धन जुटाने जैसे कृत्य में लिप्त होने की बात को मानने से इनकार किया था।

एनआईए ने आरोप पत्र में इस प्रतिबंधित संगठन के कार्यकर्ताओं के पास से एक तथाकथित विज़न डॉक्यूमेंट (उद्देश्य पत्र) जब्त किए जाने की बात कही है जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कुछ नेताओं को चिह्नित किए जाने का उल्लेख है। इसके आधार पर एनआईए का आरोप है कि इन आठों आरोपियों ने आरएसएस और कुछ हिंदू संगठन के नेताओं की हत्या करने की सूची बनाई थी।

उच्च न्यायालय ने जांच एजेंसी की इन दलीलों को खारिज कर दिया था कहा था कि इन आरोपियों को तथाकथित विज़न दस्तावेज से जोड़ने के कोई सबूत नहीं पेश किए गए हैं। इस आधार पर उच्च न्यायालय की पीठ ने 13 मुख्य आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का फैसला सुनाया था।

शीर्ष अदालत ने आज के निर्णय में कहा है कि अपराधों की गंभीरता, आरोपियों के पिछले आपराधिक रिकार्ड, आरोपियों की हिरायत की अवधि अभी बमुश्किल डेढ़ साल ही होने तथा जांच एजेंसी द्वारा जुटाए गए सबूतों तथा यह देखते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार नहीं रखा जा सकता।

शीर्ष अदालत ने माना कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार आरोपियों या संगठनों की नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के प्रावधान देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के व्यापक हित में किए गए हैं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय सुरक्षा हमेशा सर्वोपरि है और किसी भी आतंकवादी कृत्य से जुड़ा कोई भी हिंसक या अहिंसक कृत्य प्रतिबंधित किया जा सकता है।

एनआईए की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने बहस की और अभियुक्तों की पैरवी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल गुप्ता, रेबेका जॉन और श्याम दीवान खड़े थे।