अजमेर। श्रावण मास में गुलाब बाड़ी स्थित तेजाजी की देवली में चल रही शिव महापुराण कथा के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संत उत्तमराम शास्त्री ने कहा कि किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। संसार में सभी का स्वाभिमान होता है।
महाराज ने कहा कि एक बार इंद्र और बृहस्पति दोनों भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक नग्न योगी ने रोका जो वास्तव में भगवान शिव थे, जिन्होंने इंद्र और बृहस्पति की परीक्षा लेने के लिए यह रूप धारण किया था।
इंद्र ने योगी को नहीं पहचाना और क्रोधित होकर उस पर वज्र से प्रहार किया, जिससे उसका हाथ लकवाग्रस्त हो गया। शिव ने इंद्र के वज्र को निष्क्रिय कर दिया और क्रोधित होकर अपनी तीसरी आंख खोली, जिससे इंद्र भयभीत हो गया। इस घटना के बाद, शिव की तीसरी आंख से एक बालक उत्पन्न हुआ, जिसे जालंधर कहा गया। जालंधर, समुद्र से उत्पन्न होने के कारण सिंधुपुत्र भी कहलाया।
एक प्रसिद्ध हिंदू पौराणिक कथा है जिसमें भगवान शिव (भोले नाथ) द्वारा समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को पीने का वर्णन है। इस कथा के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान विष (हलाहल) निकला, जिसे शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए पिया था। यह कथा शिव की महानता और त्याग को दर्शाती है, क्योंकि उन्होंने विष को अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।
शिव महापुराण कथा के दौरान श्रद्धालुओं ने आज रामसनेही संप्रदाय मेड़ता देवल के पीठाधीश्वर श्री रामकिशोर जी महाराज की स्वागत किया। उनके साथ उज्जैन के महेंद्र ध्यानीराम महाराज भी थे। महाराज ने कहा कि संसार में सबसे प्राचीन सनातन धर्म है। इसमें सभी वर्णों का अपना अलग-अलग रीति रिवाज है। सभी को अपने बताए पूर्वजों के मार्ग पर चलते हुए उनका अनुसरण करना चाहिए इससे परिवार समाज में संयुक्त रूप से एकता की माला में नजर आएगा।
महाराज ने कहा कि पूजा, अर्चना, उपासना पद्धति अलग हो सकती है परंतु अपने गुरु के प्रति निष्ठा रखना बहुत जरूरी है। पूरा परिवार एक ही गुरु दीक्षा लें और गुरु मंत्र का जाप करें। इस दौरान ध्यानीराम महाराज ने भजनों की प्रस्तुति लेकर माहौल को भक्तिमय कर दिया।