भुवनेश्वर। उड़ीसा हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश बरकरार रखा है जिसमें एक पुरुष के डीएनए परीक्षण की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति बीपी राउत्रे की एकल पीठ ने कहा कि बच्चे के डीएनए परीक्षण का निर्देश देना एक महिला के मातृत्व का अपमान होगा जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 में वर्णित कानून के खिलाफ है।
न्यायमूर्ति ने सिविल विविध याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह ध्यान में रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति को डीएनए परीक्षण के लिए मजबूर करने से उसकी निजता का अधिकार प्रभावित होता है।
यह मुक़दमा एक संयुक्त परिवार की संपत्ति के बंटवारे के मुकदमे को लेकर शुरू हुआ जिसमें प्रतिद्वंदी पक्ष के माता-पिता का पता लगाने के लिए डीएनए परीक्षण की मांग की गई थी। कुचिंडा के दीवानी मामलों के न्यायाधीश (वरिष्ठ खंड)ने इस मांग को ठुकरा दिया था।
न्यायमूर्ति राउत्रे ने अपने फैसले में कहा कि यह समझ से परे है कि बंटवारे के मामले में डीएनए परीक्षण कैसे प्रासंगिक होगा जहां पक्षों की स्थिति को संयुक्त परिवार के सदस्यों के रूप में देखना आवश्यक है जिससे उनके संबंधित हिस्से निर्धारित किए जा सकें।
यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति को दूसरे का पुत्र मानने के लिए केवल रक्त संबंध की पहचान आवश्यक नहीं है बल्कि समाज में उसकी ऐसी पहचान महत्वपूर्ण है।
एकल पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवादी की उम्र अब 58 वर्ष है इसलिए निचली अदालत ने सही कहा है कि इस उम्र में डीएनए परीक्षण का निर्देश देने से कोई सार्थक परिणाम नहीं प्राप्त होगा।