भावनगर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कहा कि उनकी सरकार भारत को दुनिया की एक बड़ी समुद्री शक्ति बनाने के लिए नियम कानून में सुधारों के साथ-साथ पोत निर्माण क्षेत्र को आर्थिक मदद करने, शिपयार्ड को आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने तथा डिजाइन और क्वालिटी सुधारने के लिए सहायता सुलभ कराने की तीन बड़ी योजनाओं पर काम कर रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इन तीन योजनाओं पर आने वाले वर्षों में सत्तर हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाएंगे और इससे इस क्षेत्र को बड़ी मदद मिलेगी। वह यहां समुद्री क्षेत्र के विकास पर केंद्रित कार्यक्रम ‘समुद्र से समृद्धि’ को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और केंद्रीय जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनावाल भी मौजूद थे।
मोदी ने शिप (जहाज) से चिप (सेमीकंडक्टर चिप) को देश में ही बनाने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर बदल देते हुए कहा कि विगत में जहाजरानी क्षेत्र में पिछड़ने से आज भारत को विदेशी शिपिंग कंपनियों को सालाना 75 अरब डालर (छह लाख करोड़ रुपए का) भुगतान करना पड़ रहा है जो देश के करीब रक्षा बजट के लगभग है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के समुद्री क्षेत्र की मजबूती के लिए कल भी एक बहुत ऐतिहासिक निर्णय हुआ है। हमने देश की पॉलिसी में एक बड़ा बदलाव किया है। अब सरकार ने बड़े जहाजों को इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में मान्यता दी है। इससे अब बड़े जहाज बनाने वाली कंपनियों को बैंकों से कर्ज मिलने में आसानी होगी, उन्हें ब्याज दर में भी छूट मिलेगी।
उन्होंने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित होना है तो आत्मनिर्भर होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। देशवासियों का एक ही संकल्प होना चाहिए, चिप हो या शिप, हमें भारत में ही बनाने होंगे। इसी सोच के साथ समुद्री क्षेत्र में देश नयी पीढ़ी के सुधार करने जा रहा है। इससे हर मेजर पोर्ट को भांति-भांति के दस्तावेज संभालने और अलग-अलग प्रक्रियाओं से मुक्ति मिलेगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वन नेशन, वन डॉक्युमेंट, और वन नेशन, वन पोर्ट प्रोसेस, (एक देश एक, दस्तावेज एक प्रक्रिया) से व्यापार-कारोबार और आसान होगा। उन्होंने जहाजरानी मंत्री सोनोवाल के संबोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि संसद के मानसून सत्र में बंदरगाह और समुद्री रास्ते से माल ढुलाई के के अंग्रेज़ों के जमाने से चले आ रहे कानूनों को बदला गया है।
समुद्री क्षेत्र में हमने मेरीटाइम सेक्टर (समुद्रीय क्षेत्र) में अनेक रिफॉर्म करने का सिलसिला शुरू किया है। हमारी सरकार ने पांच मेरीटाइम कानूनों को नए अवतार में देश के सामने रखा है। इन कानूनों से और इन कानूनों के आने से शिपिंग सेक्टर में, बंदगार संचालन में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि भारत सदियों से बड़े-बड़े जहाज बनाने का महारथी रहा है। अगली पीढ़ी के सुधारों से देश के इस भूले हुए गौरव को फिर वापस लाने में मदद करेंगे।
मोदी ने जहाज निर्माण क्षेत्र में हाल में आयी तेजी का जिक्र करते हुए कहा कि बीते दशक में देश में 40 से अधिक पोत और पनडुब्बियां, नौसेना में शामिल की गईं। इनमें एक-दो को छोड़ दें, तो ये सब भारत में ही बनाई गई हैं। विमान-वाहक आईएनएस विक्रांत भी स्वदेशी है, इसमें लगा इस्पात भी भारत में ही बना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के पास बड़े पोत बाने की कौशल और सामथ्र्या की की कमी नहीं है, जरूरत राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार के पास निश्चित रूप से यह इच्छा शक्ति है।
मोदी ने कहा कि उन्होंने 2007 में मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में शिप-बिल्डिंग इकोसिस्टम की मदद की थी। उन्होंने कहा कि अब देशभर में शिप-बिल्डिंग के लिए व्यापक कदम उठाए जा रहे हैं। यह बड़ा उद्योग है। इससे स्टील, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, पेंट्स, आईटी सिस्टम, ऐसे अनेक-अनेक उद्योगों को मदद मिलती है।
इससे छोटे और लघु उद्योगों को भी फायदा होता है। रिसर्च बताती है कि जहाज निर्माण में होने वाले हर एक रुपए के निवेश से इकॉनॉमी में लगभग दोगुना निवेश बढ़ता है और शिपयार्ड में पैदा होने वाली हर एक जॉब, हर एक रोजगार सप्लाई चेन में छह से सात नई नौकरियां बनाती है। मतलब अगर शिप-बिल्डिंग इंडस्ट्री में सौ नौकरियां बनती हैं, तो इससे जुड़े दूसरे सेक्टर्स में 600 से अधिक नौकरियों के अवसर तैयार होते हैं।
मोदी ने कहा कि आज का भारत, एक अलग मिजाज से आगे बढ़ रहा है। हम जो लक्ष्य तय करते हैं, उसे अब समय से पहले पूरा करके भी दिखाते हैं। सोलर सेक्टर में भारत अब अपने लक्ष्यों को चार-चार, पांच-पांच साल पहले हासिल कर रहा है। बंदरगाह प्रेरित विकास को लेकर भी 11 साल पहले जो लक्ष्य हमने तय किए थे, भारत उनमें जबरदस्त सफलताएं हासिल कर रहा है। हम देश में, बड़े-बड़े जहाज़ों के लिए बड़े पोर्ट्स बना रहे हैं, सागरमाला जैसी स्कीम्स से बंदरगाहों का सम्पर्क बढ़ा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते 11 साल में भारत ने अपनी बंदरगाह क्षमता दोगुनी कर ली है। 2014 से पहले भारत में शिप टर्न अराउंड टाइम औसतन 2 दिन होता था जो आज एक दिन से भी कम हो गया है। देश में नए और बड़े पोर्ट्स के निर्माण भी हो रहे हैं। हाल में ही केरल में, देश का पहला गहरे समुद्र का बंदरगाह (विझिंजम कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट) शुरु किया है। इसी तरह 75 हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से महाराष्ट्र में वाढवण पोर्ट बन रहा है जो दुनिया के शीर्ष दस बड़े बंदरगाहों में शामिल होगा।
मोदी ने कहा कि इस समय समुद्री रास्ते से होने वाले व्यापार में भारत का हिस्सा सिर्फ 10 प्रतिशत है जिसे 2047 तक तीन गुणा करना है और यह कर के दिखाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे समुद्री नाविकों की संख्या भी बढ़ रही है। एक दशक पहले यह संख्या सवा लाख से भी कम थी। लेकिन आज इनकी संख्या तीन लाख के पार पहुंच चुकी है। आज भारत दुनिया के शीर्ष-3 देशों में आ गया है। इससे भारत के नौजवानों को रोजगार के अवसर बढ़ते हैं,भारत की बढ़ती शिप इंडस्ट्री की ताकत भी बढ़ा रही है।
उन्होंने कहा कि हमारे मछुआरे, हमारे प्राचीन बंदरगाह शहर, इस धरोहर के प्रतीक हैं। इस विरासत को हमें भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाना है, दुनिया को हमारा सामर्थ्य दिखाना है। और इसलिए लोथल में हम एक शानदार मैरिटाइम म्यूजियम बना रहे हैं। और ये भी दुनिया का सबसे बड़ा मैरिटाइम म्यूजियम बनेगा। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की तरह ही ये भारत की नई पहचान बनेगा। मोदी यहां से आज लोथल देखने भी गए।
मोदी ने कहा कि भारत के समुद्र-तट, भारत की समृद्धि के प्रवेश द्वार बनेंगे। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि गुजरात का तटवर्ती क्षेत्र एक बार फिर प्रदेश के लिए वरदान बन रहा है। आज देश में समंदर के रास्ते जितना माल आता है, उसका 40 प्रतिशत गुजरात के बंदरगाहों पर आता है। उन्होंने इसी संदर्भ में कहा कि राज्य में शिप ब्रेकिंग का भी एक बड़ा इकोसिस्टम बन रहा है और अलंग का शिप ब्रेकिंग यार्ड, इसका शानदार उदाहरण है। इससे यहां बड़ी संख्या में नौजवानों को रोजगार मिल रहा है।