राजस्थान हाईकोर्ट का छात्र संघ के चुनाव तत्काल कराने के आदेश देने से इन्कार

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने छात्रसंघ चुनाव बहाली के मामले में तत्काल चुनाव कराने का आदेश देने से इन्कार कर दिया है। अदालत ने फैसले में स्पष्ट किया कि छात्रसंघ चुनाव एक संवैधानिक अधिकार हैं, लेकिन यह अधिकार शिक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता।

अदालत ने इस संतुलन को आवश्यक बताते हुए विश्वविद्यालय को आदेश दिया हैं कि वह छात्रों के चुनावों के लिए एक स्पष्ट, पारदर्शी और प्रभावी नीति निर्धारित करे, जिससे शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित न हों।

राजस्थान उच्च न्यायालय के इस फैसले से छात्रसंघ चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले युवाओं को झटका लगा हैं वही राजस्थान सरकार को इस फैसले से बड़ी राहत मिली हैं। उच्च न्यायालय ने इस मामले में दाखिल सभी याचिकाओं का निस्तारण करते हुए चुनाव आयोग और राज्य सरकार दोनों को महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।

14 नवंबर को न्यायाधीश समीर जैन की एकलपीठ ने इस मामले में सुनवाई पूरी करके निर्णय सुरक्षित रखा था, जिस पर अब फैसला सुनाया गया है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति समीर जैन के जोधपुर होने और शीतकालीन अवकाश से पूर्व अंतिम कार्यदिवस के चलते राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश न्यायमूर्ति उमाशंकर व्यास की एकलपीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया।

न्यायालय ने कहा कि इस चरण पर चुनाव व्यावहारिक नहीं है। हालांकि, अदालत ने भविष्य में छात्रसंघ चुनावों को लेकर विस्तृत आदेश दिए हैं।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि छात्रसंघ चुनाव छात्रों में नेतृत्व क्षमता, लोकतांत्रिक सोच और सामाजिक उत्तरदायित्व विकसित करते हैं, लेकिन शैक्षणिक संस्थानों का प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा और अकादमिक अनुशासन बनाए रखना है। कुछ छात्रों की ओर से दायर याचिकाओं के आधार पर पूरे राज्य के लिए तत्काल चुनाव का आदेश देना उचित नहीं होगा।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विश्वविद्यालयों और राज्य सरकार को आदेश दिए कि भविष्य में छात्रसंघ चुनावों को लेकर एक पारदर्शी और समयबद्ध नीति बनाई जाए। उच्च न्यायालय ने कहा कि हर वर्ष मार्च में चुनाव कैलेंडर घोषित किया जाना चाहिए। चुनाव प्रक्रिया के कारण कक्षाएं, परीक्षाएं, शोध कार्य और सेमेस्टर प्रणाली बाधित नहीं होनी चाहिए।