आखिर अकबर-बाबर कब तक बने रहेंगे महान?

आ गया झूठा महिमामंडन बंद होने का समय
जयपुर। वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और सम्राट अशोक की बजाय अकबर या बाबर महान कैसे हो सकते हैं? स्वाधीनता के 75 साल बीत जाने के बाद भी मुगल आंक्राताओं को महामंडित करना शर्मनाक है। अकबर-बाबर को महान और उनकी नीतियों को दूरदर्शी बताने वाले पाठ छात्रों को आज पढ़ाए जा रहे हैं। यह तुष्टीकरण की नीति का प्रमाण है। स्वाधीतना के बाद से ही कट्टर, मतांध शासकों एवं मज़हबी आक्रांताओं पर गर्व करने वाला झूठा विमर्श देश में स्थापित किया गया, लेकिन अब समय करवट ले रहा है। झूठें विमर्श की परतें उधड़ने लगी है। भारत का स्व अब जाग रहा है। लोग मुखर हो रहे हैं। साहस के साथ सच सामने आ रहा है।

अभी कुछ समय पहले राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि अकबर महान नहीं, वह आक्रांता था, जो मीना बाजार लगाकर सुंदर महिलाओं व लड़कियों को उठाकर ले जाता था और उनके साथ दुष्कर्म करता था। इसलिए अकबर महान नहीं हो सकता। दुष्कर्मी कभी महान नहीं हो सकता। ऐसे बलात्कारियों को पढ़ाए जाने की कोई जरूरत नहीं। मदन दिलावर यह बात कहने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं। इनसे पहले भी इतिहास की सही जानकारी रखने वाले इतिहासविद् यह बात प्रमाणों के साथ कह चुके हैं। शोध में यह तथ्य सामने भी आ चुके हैं।

आक्रांताओं ने हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक परम्पराओं को लक्ष्य बनाया था। ऐसे में कई परम्पराएं और रीतियां बदल गई। जयपुर के हवामहल से भाजपा विधायक बालमुकुंद आचार्य कहते हैं- “अकबर नहीं महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज महान है, जिन्होंने मातृभूमि को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। जितने भी बाहरी शासक भारत में आए थे, उन्होंने देश को लूटने का काम किया।

इन लोगों की वजह से ही हमारे देश में कई परंपराओं में बदलाव हुए। इनके आने से पहले भारत में सूर्य को साक्षी मानकर शादी के फेरे हुआ करते थे, लेकिन भारत में मुगलों के आक्रमण के बाद से दिन में शादी और फेरे की रीति दिन में बंद हो गई, क्योंकि तब मुगल हमारी बहन- बेटियों को उठाकर ले जाते थे। इसलिए उनसे छिपकर रात में फेरे की नई रीत शुरू हुई थी।

बालमुकुंद आचार्य ने स्कूलों के पाठ्यक्रम से भी मुगल शासकों के अध्याय हटाने की बात कही। ऐसे में इनको पढ़ाया जाना उचित नहीं। हमें अपनी संस्कृति और पूर्वजों के इतिहास के बारे में सीखना चाहिए। अपना अनुभव साझा करते हुए आगे वे बताते हैं कि जब मैं दिल्ली जाता हूं तो अकबर रोड का नाम सुनकर मुझे पीड़ा होती है क्योंकि जिस अकबर ने हमारा देश पर आक्रमण किया हमने उसी के नाम पर सड़क का नामकरण कर दिया।

मुगलों के नाम से ना तो किसी सड़क और नहीं किसी शहर का नाम होना चाहिए, बल्कि मैं देश के और सभी राज्यों के शिक्षा मंत्री से भी या निवेदन करता हूं कि वह मुगलों को हटाकर हमारा देश के वीरों को पाठ्यक्रम में जोड़े, ताकि युवा पीढ़ी देश का सही इतिहास जान सके। एक लंबे समय से इतिहास संरक्षण पर काम कर रही भारतीय इतिहास संकलन योजना के क्षेत्रीय संगठन सचिव छगनलाल बोहरा कहते है।

यह देश का दुर्भाग्य था कि स्वतंत्रता के बाद सत्ता पर काबिज होने वालों ने गुलामी के चिन्हों को मिटाने के बजाय, अपनी सेकुलर मानसिकता के चलते उन्हें और अधिक महिमामंडित किया। देश के प्रथम पांच शिक्षा मंत्री मुस्लिम थे, उन्होंने इतिहास और संस्कृति के पाठ्यक्रमों का इस्लामीकरण कर भारतीय जनमानस को भ्रमित किया। सेकुलर सरकारों ने तुष्टीकरण की नीति के तहत देश से गुलामी के चिन्हों को हटाने के बजाय राजधानी की सडकों के नाम आक्रातांओं के नाम पर रखे। देश में एक हीन और गुलाम मानसिकता का वातावरण बनाया।

बोहरा बताते है कि भारतीय इतिहास संकलन योजना ने आरम्भ से ही इस स्थिति का विरोध कर राष्ट्रीय गौरव की दृष्टि से इतिहास, संस्कृति और भारतीय जीवन मूल्यों को पुनर्स्थापित करने हेतु प्रयास किया है। देश में आक्रांतांओं के नाम पर नगर, गांव, सडकों, भवनों का जो इस्लामीकरण किया गया हैं उसे अविलम्ब सुधारा जाना चाहिए।

अब प्रश्न यह उठता है कि मुगलों का महिमामंडन एवं गुणगान करने वाले क्या नहीं जानते कि मुहम्मद बिन क़ासिम, गजनी, गोरी, खिलजी, तैमूर, नादिर, अब्दाली की तरह मुग़ल भी विदेशी आक्रांता थे। उन्होंने सदैव भारत से अलग अपनी पृथक पहचान को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत भी किया। उनका हृदय भारत से अधिक, जहां से वे आए थे, वहां के लिए धड़कता था। उन्होंने भारत से लूटे गए धन का बड़ा हिस्सा समरकंद, खुरासान, दमिश्क, बगदाद, मक्का, मदीना जैसे शहरों एवं वहां के विभिन्न घरानों एवं इस्लामिक खलीफा पर लुटाया। बावजूद इसके कतिपयों दृवारा क्यों इनको महान बताया जाता रहा है।

कौन नहीं जानता आक्रांता औरंगजेब को? जिसने हमारे सभी हिंदू मंदिरों एवं शिक्षा-केंद्रों को नष्ट करने के आदेश दिए थे। इस आदेश को काशी-मथुरा समेत उसकी सल्तनत के सभी 21 सूबों में लागू किया गया था। औरंगजेब के इस आदेश का जिक्र उसके दरबारी लेखक मुहम्मद साफी मुस्तइद्दखां ने अपनी किताब ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में भी किया है।

इतिहासकारों की मानें तो कि इस आदेश के बाद गुजरात का सोमनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवदेव मंदिर, अहमदाबाद का चिंतामणि मंदिर, बीजापुर का मंदिर, वडनगर का हथेश्वर मंदिर, उदयपुर में झीलों के किनारे बने 3 मंदिर, उज्जैन के आसपास के मंदिर, चितौड़ के 63 मंदिर, सवाई माधोपुर में मलारना मंदिर, मथुरा में राजा मानसिंह द्वारा 1590 में निर्माण कराए गए गोविंद देव मंदिर समेत देश भर के सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर ध्वस्त करा दिए गए। ऐसे में अब भी यह प्रश्न शेष है कि आखिर आक्रांत कब तक महान बने रहेंगे?