मुख्यमंत्री भजनलाल और मुख्य सचिव के दावों के विपरीत जमीनी हकीकत

माउण्ट आबू नगर पालिका

सबगुरु न्यूज-सिरोही/माउण्ट आबू। समाचार पत्रों के मुख्यपृष्ठ पर खबर पढ़ी होगी कि मुख्यमंत्री ने जयपुर के थाने का निरीक्षण किया। ये खबर भी पढ़ी होगी कि शिक्षा मंत्री ने जोधपुर की स्कूल का दौरा कर गुणवत्ता परखी। और तो और ये खबर भी आई थी कि मुख्य सचिव सुधांशु पंत ने जयपुर में कलेक्ट्रेट में दौरा किया और वहां अनुपस्थित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की।

मुख्यमंत्री ने अपने भरतपुर के दौरे के दौरान कार्मिकों को ये हिदायत दी थी कि कार्यालयों पर समय पर पहुंचे। लेकिन, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के दावों के अनुसार पिछले बीस सालों में राजस्थान में सरकारी कार्यालय में बदहाल हुए हालातों में कोई परिवर्तन हुआ है तो जमीनी हालात देखकर ये लगता तो नहीं है।

मॉनीटरिंग के अभाव में चार महीने बाद भी राजस्थान में सरकार बदलने पर सुशासन मिलने और समयबद्धता होने का कोई निशान नहीं मिल रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है राजस्थान की माउण्ट आबू नगर पालिका। वैसे यहां पर बायोमिट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लगा दिया है। लेकिन, मूवमेंट रजिस्टर को फॉलो नहीं करने से थम्ब इम्प्रेशन देने के बाद फील्ड और उपखण्ड अधिकारी कार्यालय जाने के नाम पर अधिकारी और कर्मचारी कहां जाते हैं न आमजन को पता रहता है न ही पार्षदों को।
-खुद भाजपा नेता परेशान
सरकार बदलने के बाद भी माउण्ट आबू नगर पालिका के हालात में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अधिकारियों और कार्मिकों में समयबद्धता के प्रति समर्पण होने का दावा तो खुद भाजपा के जनप्रतिनिधि और पदाधिकारी भी नहीं कर रहे हैं। यहां के दस हजार लोगों के माध्यम से सालाना आने वाले बीस लाख से ज्यादा पर्यटकों को सुविधा मुहैया करवाने के लिए यहां दो प्रमुख कार्यालय हैं। उपखण्ड अधिकारी कार्यालय और नगर पालिका।

यहां कांग्रेस को बोर्ड है और प्रदेश में भाजपा की सरकार। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद खुद भाजपा के पदाधिकारियों का ये आरोप है कि उपखण्ड अधिकारी उपखण्ड अधिकारी और नगर पालिका के बीच के रास्ते में यहां के कार्मिक ऐसे गायब होते हैं कि न तो उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पहुंचते हैं और न ही नगर पलिका में दिखते हैं।

हालात ये हो चुके हैं कि हालात सुधरने की आशा में सत्ता परिवर्तन करने वाले भाजपा और कांग्रेस के जनहितों के प्रति ईमानदार नेता तो अब ये महसूस करने लगे हैं कि यहां पर भाजपा और कांग्रेस के अलावा तीसरे विकल्प की महती आवश्यकता महसूस होने लगी है।

इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच प्रदेश में वोट का अंतर डेढ़ प्रतिशत से भी कम रहने का एक कारण कार्यकर्ताओं के बीच निरंतर फैलती ये निराशा भी है। अव्यवस्था से निराश हो चुके भाजपा और कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों तक का ये कहना है कि मॉनीटरिंग नाम की कोई चीज नहीं होने से हालात जस के तस हैं, इनमें कोई सुधार नहीं है।

-लिम्बड़ी कोठी के लिए बैठाए जाते थे अधिकारी
प्रदेश के भाजपा के प्रमुख नेता और पंचायतराज मंत्री किरोडीलाल मीणा ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया था कि माउण्ट आबू की लिम्बडी कोठी में भी पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र का संबंध है। उस दौरान तो ये आरोप भी लगते रहे कि पिछले पांच सालों में यहां पर आयुक्त की नियुक्तियां भी लिम्बड़ी कोठी के निर्माण और उसके प्रति समर्पण के लिए ही होती  थी।

इसलिए जहां जिले की शेष नगर पालिकाओं में निरंतर अधिशासी अधिकारी बदलते रहे माउण्ट आबू नगर पालिका में सिर्फ तीन अधिशासी अधिकारी रहे। तीनों ही लिम्बड़ी कोठी के अलावा आमजन के प्रति बिल्कुल समर्पित नहीं रहे। दो आयुक्तों पर तो कार्यालय की बजाय घर से नगर पालिका चलाने का आरोप पूरे कार्यकाल में लगता रहा। वर्तमान में जो आयुक्त तैनात हैं वो लिम्बड़ी कोठी समर्पण काल के ही है। कार्यालय में नहीं मिलने और जनप्रतिनिधियों और आमजन के फोन नहीं उठाने के लिए प्रसिद्ध हैं।

लेकिन, लिम्बड़ी कोठी के प्रति समर्पण की वजह से पूर्व सरकार ने इन सब पर ध्यान नहीं दिया। अभी भी हालात सुधरे नहीं। कांग्रेस के काल मे लगाए कए यहां के आयुक्त को माउण्ट आबू के साथ आबूरोड का भी अतिरिक्त प्रभार दिया हुआ है। ऐसे में उन पर ये आरोप लग रहा है कि वो माउण्ट आबू, आबूरोड और उपखण्ड अधिकारी कार्यालय के बीच में ही रहते हैं कार्यालय में कम ही दिखते हैं।