एआइसीसी के पूर्व सदस्य संयम लोढ़ा के सवालों में घिर रहे हैं सिरोही विधायक संयम लोढ़ा!

सिरोही नगर परिषद के द्वारा निर्माण सामग्री जब्त किए जाने के बाद भी शनिवार रात को शुरू किया गया केबिन निर्माण कार्य।

सिरोही।  तारीख थी 16 जनवरी 2018। जगह थी नगर परिषद के बाहर उत्तरी किनारे पर लगा कांग्रेस पार्षदों के धरनास्थल। तत्कालीन एआईसीसी के सदस्य संयम लोढ़ा ने अपने करीब आठ मिनट के भाषण में तत्कालीन भाजपा सरकार के साथ सिरोही विधायक की सरपरस्ती में सिरोही नगर परिषद में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कठघरे में खड़ा किया था।

उन्होंने एक मुद्दे पर कहा था कि ‘सिरोही नगर परिषद में कॉमर्शियल लैंड पर नगर परिषद में  पैसा भरे बिना निर्माण किया जा रहा है, ये पैसा किसकी जेब में जा रहा है।’ आज फिर एआईसीसी के पूर्व सदस्य संयम लोढ़ा ने अपने बयान से अब वर्तमान निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

शाह जी की बाड़ी के मोड़ पर बिना अनुमति और बिना कन्वर्जन के छुट्टी के दिन रातों रात बना दिया गया शराब की दुकान का केबिन के मामले में अब एआईसीसी के 2018 में सदस्य रहे संयम लोढ़ा विधायक संयम लोढ़ा से यही सवाल पूछ रहे हैं कि इसके पैसे नगर परिषद में नहीं गए तो फिर किसकी जेब में गए? अन्यथा कोई ऐसी हिमाकत कर कैसे गया?

इतनी बड़ी हिमाकत बिना सरपरस्ती के असम्भव

मुख्य मार्ग पर ये अवैध निर्माण जिस तरह से किया गया उससे ये स्पष्ट यही कि ये किसी राजनीतिक या प्रशासनिक सरपरस्ती के नहीं किया जा सकता है। इस केबिन के अवैध निर्माण की शिकायत वार्डवासियों ने शनिवार को नगर परिषद में की। उसी दिन आयुक्त के कहने पर यहाँ पड़ी निर्माण सामग्री को सफाई निरीक्षक ने जब्त कर लिया। लेकिन, निर्माणकर्ता की बेखौफ हिमाकत का आलम ये है कि उसी दिन रात को फिर से निर्माण सामग्री मंगवाई। शनिवार की रात को फिर से पतरों का केबिन निर्माण कर दिया।

सिरोही कि शाहजी की बाड़ी में शराब की दुकान खोलने के विरोध में जिला कलेक्टर को ज्ञापन देते वार्ड पार्षद अनिल सगरवंशी।

जमीन नगर परिषद में ही अस्पष्ट

जिस जमीन पर पतरे से कथित रूप से शराब की दुकान का निर्माण किया गया है। वो जगह नगर परिषद में ही विवादित है। इसके सीमांकन और रजिस्ट्री में दी डिटेल के बारे में नगर परिषद द्वारा जमीन मालिक से पूछे सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला है। ऐसे में फीस भरकर इसका व्यावसायिक भू रूपांतरण भी नहीं हो पाया है। व्यावसायिक भू उपयोग नहीं होने से व्यावसायिक निर्माण भी नहीं हो सकता। एक बारगी तो ये मान भी लिया जाए कि ये अस्थाई निर्माण है। लेकिन अस्थाई निर्माण सीमेंट और वेल्डिंग बेस पर नहीं माना जाता।

हटा दी थी ये साइट

शाह जी की बड़ी की ये साइट शुरू से ही विवादित रही। यहां पर दो तरफ दो प्रमुख मंदिर होने की वजह से इसका विरोध होता रहा। इस कारण बीच में 3-4 साल ये साइट आवंटित ही नहीं की गई। अब फिर से ये साइट आवंटित कर दी गई। इसका विरोध करते हुए स्थानीय लोगों, स्थानीय पार्षद अनिल सगरवंशी, भाजपा के हितेंद्र ओझा आदि ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन भी दिया था।

नगर परिषद ने भूखंड मालिक को इसके लिए नोटिस भी भेजा था। लेकिन, हिमाकत ऐसी कि सबकुछ ताक में रखकर यहाँ पर निर्माण कर दिया गया। ऐसे में एआईसीसी के पूर्व सदस्य संयम लोढ़ा का वो प्रश्न यक्ष प्रश्न हो जाता है कि आखिर बिना कन्वर्जन राशि और निर्माण अनुमति के निर्माण करने पर ये पैसा जा किसकी जेब में रहा है।