माला में जिस तरह एक एक मोती पिरोया जाता है ठीक उसी तरह सुमित्रा गुप्ता ने पुस्तक में विचारों और अनुभवों को अभिव्यक्त किया।
भक्ति भाव, ईश्वर, संसार, मुक्ति सरीखे विषयों को लेकर वाद विवाद करने वाले विद्वजनों के लिए ये पुस्तक निसंदेह उनके सभी सवालों का जवाब देने वाली साबित हो सकती है।
मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारों और अन्य ऐसे स्थलों जहां भगवान की मौजूदगी का अहसास होता है ठीक उसकी तरह इस पुस्तक को पढऩे के दौरान ईश्वर के करीब होने की अनूभुति होती है।
हर शब्द और अध्याय ईश्वर भक्ति को और अधिक पुष्ट करता जाता है। ईश्वर भक्ति और ईश्वर में विश्वास को लेखिका ने बड़े ही सहज भाव से लिखा है। भाषा आम आदमी की सी और लेकिन शब्दों की गहराई अनंत सागर सी है।
~विजय सिंह मौर्य