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मंगलचंडी दुर्गा यानी प्रचंड मंगला

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मंगलचंडी दुर्गा यानी प्रचंड मंगला

सबगुरु नयूज। नकारात्मक शक्तियां जब दुनिया पर भारी पडने लगतीं हैं तब भगवती खुद संसार में माया फ़ैलाकर सभी ओर से नकारात्मक शक्ति को भ्रमित कर ठगने लगती है और दुष्ट सर्वत्र विजयी होने के चक्कर मे माया का अपमान करवाना शुरू कर देता है।

अपना अपमान देख माया तुरंत नकारात्मक शक्ति को मरवा देती हैं और अमंगलों में मंगल स्थापित कर मंगल चंडी कहलाती है। त्रिपुरासुर का वध देवी ने दुर्गा मंगलचंडी बन कर करवाया।

त्रिपुरासुर के घोर वध के समय जब भगवान् शिवजी को सारे दैत्यों ने घेर लिया और त्रिपुरासुर ने गुस्से मे आकर उनका विमान आकाश से नीचे गिरा दिया था तब ब्रह्मा ओर विष्णु का उपदेश मानकर शिवजी ने भगवती दुर्गा की स्तुति मंगलचंडी के रूप में की।

ये मंगलचण्डी दुर्गा ही थी जिन्होंने अपना रूप बदल लिया ओर शिव जी सामने प्रकट होकर बोली-हे प्रभु अब आपको कोई भय नहीं है, सर्वेश्वर श्री हरि वृष रूप आपका वाहन बनेंगे ओर मै युद्ध में शक्ति स्वरूपा होकर आपको सहायता करूंगी, इसमे सन्देह नहीं है। देवताओं को पद से हटाने वाले उस असुर त्रिपुरासुर का वध आप कर देंगे, यह कह कर भगवती अदृश्य हो गई।

मंगलचंडी शीघ्र ही शिव की शक्ति बन गई तब शिवजी ने विष्णु जी के द्वारा दिए गए शस्त्र से उस भंयकर त्रिपुरासुर का वध किया।

देवी भागवत महापुराण मे उल्लेख है कि आदि शक्ति भगवती मंगलों के मध्य मे जो प्रचण्ड मंगला है वह जगत जननी अम्बा मंगल चंण्डिका है, आगम शास्त्र में श्री नारायण ने देवी मंगल चंण्डिका के विषय मे नारद को बताया कि देवी मंगल चंडी भारी संकटों से रक्षा करती है तथा कोई भी मांगलिक कार्य किसी भी कारण से नहीं हो रहा है तो मंगलवार को देवी अम्बा का मंगलचंडी के रूप मे पूजन करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं।

सर्वप्रथम भगवान् शिव के द्वारा वे सर्व मंगला देवी मंगलचंण्डिका पूजित हुई। दूसरी बार मंगल ग्रह ने उनकी पूजा की, तीसरे राजा मंगल ने उन कल्याणमयी देवी की पूजा की। चौथी बार मंगलवार के दिन भद्र महिलाओ ने उनकी पूजा की।

पांचवी बार अपने कल्याण की कामना रखने वाले पुरूषों ने तथा इसी तरह शिव के द्वारा पूजित ये देवी सभी लोको में पूजी जाने लगे फिर सभी देवताओं, मुनियों, मानवों के द्वारा भगवती मंगल चंण्डिका का पूजन किया जाने लगा।

सौजन्य : भंवरलाल