मालेगांव विस्फोट मामले में अदालती फैसले का संघ ने किया स्वागत

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने गुरुवार को मुंबई की एक विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत के मालेगांव विस्फोट मामले के सभी सात आरोपियों को बरी करने के फैसले का स्वागत किया है।

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इस फैसले को सत्य की जीत बताया और कहा कि इस फैसले ने हिंदू समुदाय को आतंकवाद से जोड़ने के निराधार प्रयासों को उजागर कर दिया है।

आंबेकर ने एक बयान में कहा कि कुछ लोगों ने व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे को उठाया था और पूरे हिंदू समुदाय और हिंदू धर्म को आतंकवाद से जोड़ने का प्रयास किया था। अदालत के फैसले ने हालांकि अब सच्चाई स्पष्ट कर दी है।

गौरतलब है कि उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में हुए बम विस्फोट में छह लोगों के मारे जाने और 100 से अधिक लोगों के घायल होने के लगभग 17 साल बाद विशेष अदालत ने ठोस और विश्वसनीय सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए आज सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया।

आंबेकर ने कहा कि फैसले से साबित होता है कि सभी आरोप निराधार थे। उन्होंने कहा कि अदालत लंबी सुनवाई और सबूतों की गहन जांच के बाद इस नतीजे पर पहुंची है।

एनआईए के मामलों की सुनवाई करने वाले विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने जांच और अभियोजन दोनों में कई खामियों की ओर इशारा करते हुए अभियुक्तों को संदेह का लाभ दे दिया।

यह विस्फोट 29 सितंबर 2008 को मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक के कारण हुआ था। इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 अन्य घायल हो गए थे।

बरी किए गए सात लोगों में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल हैं।

अपने फैसले में अदालत ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और केवल धारणा के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती। अदालत ने सरकार को विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए और 101 घायलों को 50-50 हजार रुपए सहायता राशि देने का निर्देश भी दिया है।

हिंदू आतंकवाद के झूठे षड्यंत्र का भंडाफोड़ : रमेश शिंदे

मालेगांव बम विस्फोट प्रकरण में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की विशेष अदालत द्वारा सभी आरोपियों को निर्दोष मुक्त किए जाने के बाद, तथाकथित ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ के नाम पर रचा गया घिनौना कांग्रेसी षड्यंत्र आखिरकार उजागर हो गया है। केवल ‘हिंदू’ होने के कारण, राष्ट्रभक्त साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित, मेजर उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और अजय राहिरकर जैसे अनेक निर्दोषों को वर्षों तक जेल में डाला गया। उनका अमानवीय मानसिक और शारीरिक शोषण किया गया।

यह केवल उनके विरुद्ध नहीं, बल्कि संपूर्ण हिंदू समाज को बदनाम करने की एक गहरी साजिश थी। इसलिए अब इस प्रकरण को यहीं समाप्त नहीं किया जा सकता; हिंदुओं को आतंकवादी ठहराने की साजिश रचनेवालों को कठोर दंड मिलना ही चाहिए, ऐसी मांग हिंदू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद की है।

शिंदे ने आगे कहा कि मालेगांव प्रकरण में हिंदू आतंकवाद शब्द का प्रयोग करने वाले तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने बाद में यह स्वीकार किया था कि वह एक भूल थी। परंतु उन्होंने यह शब्द किसके कहने पर इस्तेमाल किया था? हिंदुओं को बदनाम करने के पीछे किसका षड्यंत्र था? उन सूत्रधारों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमरीका के राजदूत के समक्ष कहा था कि भारत में हिंदू आतंकवाद, पाकिस्तान के इस्लामिक आतंकवाद से बड़ी समस्या है। यह बात विकीलीक्स के माध्यम से सामने आई थी। हिंदू समाज को बदनाम करने वाले, निर्दोष राष्ट्रभक्तों को फँसानेवाले, और जांच के नाम पर अत्याचार करने वाले सभी दोषियों को ढूंढकर उन्हें कठोरतम दंड देना ही सच्चा न्याय होगा।