कोर्ट प्रबंधक की नियुक्ति के नियम बनाने का सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्टाें को निर्देश

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को देश के सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे न्यायालय प्रबंधकों की भर्ती तथा सेवा शर्तों से संबंधन में तीन महीने के भीतर नियम बनाएं या उनमें संशोधन करें और मंजूरी के लिए राज्य सरकार के पास जमा कराएं। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने यह आदेश पारित किया।

पीठ ने सचिन कुमार गुप्ता और अन्य, कोर्ट मैनेजर वेलफेयर एसोसिएशन और एक रिट याचिका पर अपने फैसले में यह भी कहा कि उन्हें (न्यायालय प्रबंधकों) क्लास-दो राजपत्रित अधिकारी के रूप में मान्यता दी जाए। साथ ही, 2018 के असम नियमों को आदर्श माना जाए। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय और राज्य सरकारें अपनी विशिष्ट जरूरतों के हिसाब से उचित संशोधन या बदलाव करने के लिए स्वतंत्र होंगी।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि भले ही द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने चार फरवरी 2022 की अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी और इस अदालत ने वर्तमान कार्यवाही में दो अगस्त 2018 के फैसले में विशेष रूप से न्यायालय प्रबंधकों की सेवा शर्तों, कर्तव्यों आदि को निर्धारित करने के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया था, लेकिन विभिन्न उच्च न्यायालयों और विभिन्न राज्य सरकारों ने अभी तक उक्त निर्देश का पालन नहीं किया है।

पीठ ने कहा कि हमारा यह मानना ​​है कि चूंकि यह न्यायालय लगातार यह मानता रहा है कि पूरे देश में सभी न्यायाधीशों की सेवा शर्तें एक समान होनी चाहिए, इसलिए यह भी आवश्यक है कि न्याय प्रशासन की दक्षता बढ़ाने के लिए न्यायालयों को न्यायालय प्रबंधकों की सेवाएं प्रदान करने के लिए इस न्यायालय द्वारा अनुमोदित प्रणाली भी पूरे देश में काफी हद तक एक समान होनी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले कहा था कि प्रत्येक न्यायिक जिले में न्यायालय प्रशासन के निष्पादन में सहायता प्रदान करने के लिए पेशेवर रूप से योग्य न्यायालय प्रबंधकों, जिसमें एमबीए डिग्री वाले अभ्यार्थियों को प्राथमिकता के आधार पर भी नियुक्त किया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि न्यायालय प्रबंधन की दक्षता बढ़ाने और प्रशासनिक कार्यों में जिला न्यायाधीशों की सहायता करने के लिए 13वें वित्त आयोग द्वारा न्यायालय प्रबंधकों का पद सृजित करने का प्रस्ताव किया गया था, ताकि न्यायाधीश अपना समय न्यायनिर्णयन के अपने मूल कार्यों में लगा सकें।

शीर्ष अदालत ने हालांकि, पाया कि अधिकांश उच्च न्यायालयों ने कोई नियम नहीं बनाए और न्यायालय प्रबंधकों को केवल अनुबंध के आधार पर या तदर्थ आधार पर नियुक्त किया था। कुछ राज्यों ने तो पदों को समाप्त भी कर दिया।