सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए मामले में सलीम खान की जमानत बरकरार रखी

नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा ‘अल-हिंद’ संगठन से संबंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपी सलीम खान को जमानत देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ का तर्क है कि चूंकि अल-हिंद का यूएपीए के तहत प्रतिबंधित संगठन के रूप में नाम नहीं है इसलिए इसकी बैठकों में भाग लेना ही अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं माना जाएगा।

न्यायालय का कहना है कि आरोपी सलीम खान को जमानत देते हुए उच्च न्यायालय ने पाया कि आरोप-पत्र में लगाए गए आरोप अल-हिंद नामक एक संगठन से संबंधित हैं जो निश्चित रूप से यूएपीए की अनुसूची के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं है। इसलिए यह कहना कि वह उक्त संगठन अल-हिंद और दूसरी बैठकों में भाग ले रहा था कोई अपराध नहीं माना जाएगा।

मामला जनवरी 2020 का है जब सीसीबी पुलिस ने मीको लेआउट सब-डिवीजन के सुद्दागुंटेपल्या पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 153ए, 121ए, 120बी, 122, 123, 124ए, 125 और यूएपीए की धारा 13, 18 और 20 के तहत 17 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाद में एनआईए को जांच सौंप दी गई।

उच्च न्यायालय ने मोहम्मद सलीम खान को जमानत देते हुए एक अन्य अभियुक्त मोहम्मद जैद को जमानत देने से इनकार कर दिया था। जिस पर डार्क वेब के जरिए आईएसआईएस के संचालकों से संबंध रखने का आरोप था।

मोहम्मद सलीम खान के बारे में हाईकोर्ट ने कहा कि अल-हिंद की बैठकों में केवल उपस्थिति, प्रशिक्षण सामग्री खरीदना या सह-सदस्यों को आश्रय प्रदान करना यूएपीए की धारा 2(के) या धारा 2(एम) के तहत अपराध नहीं है।
शीर्ष अदालत को उच्च न्यायालय के विस्तृत आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। उसने मोहम्मद सलीम खान को जमानत देने के साथ-साथ मोहम्मद जैद को जमानत देने से इनकार करने का भी समर्थन किया।

शीर्ष अदालत ने निचली अदालत को कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश दिया और मुकदमे को पूरा करने के लिए दो साल की समय-सीमा तय की। पीठ का इस बात पर बल था कि अभियुक्तों को अनिश्चित काल तक विचाराधीन कैदियों के रूप में नहीं छोड़ा जा सकता।