पुलवामा का तौकीर अशरफ़ : सोशल मीडिया पर कश्मीरी भाषा को ज़िंदा रखने वाला नौजवान

पुलवामा। जिस दौर में अंग्रेज़ी, हिन्दी और उर्दू जैसी भाषाएं ज़्यादा प्रभावी हो चुकी हैं, ऐसे दौर में दक्षिण कश्मीर के पुलवामा ज़िले का एक नौजवान अपनी मातृभाषा कश्मीरी को बचाने और नई पीढ़ी के लिए आकर्षक बनाने की अनोखी कोशिश कर रहा है। तौकीर अशरफ़, जो कय़शुर प्राव (अर्थात झिलमिलाती रोशनी) नाम से इंस्टाग्राम पेज चलाते हैं, सोशल मीडिया के ज़रिए कश्मीरी भाषा और संस्कृति को नए रंग में पेश कर रहे हैं।

डिजिटल मिशन : कश्मीरी के नाम

उनके इंस्टाग्राम पेज पर नज़र डालते ही छोटी-छोटी लेकिन दिलचस्प वीडियो दिखती हैं, जिनमें कश्मीरी धरोहर, ऐतिहासिक स्थल, पारम्परिक पकवान और घाटी की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी दिखाई जाती है। इन वीडियोज़ की सबसे ख़ास बात है—इन पर शुद्ध कश्मीरी भाषा में तौकीर की आवाज़। आधुनिक सोशल मीडिया और पारम्परिक ज़बान का यह संगम नई पीढ़ी को अपनी भाषा से जोड़ने का एक ताज़ा तरीका है।

अपनी मातृभाषा में चुप्पी ख़तरनाक है

तौकीर मानते हैं कि यह काम शौक़ भर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक ज़िम्मेदारी है। उनके अनुसार कश्मीरी भाषा को राजनीति और सामाजिक जीवन से दूर रखना आने वाली पीढ़ियों के लिए नुकसानदेह है।

वे कहते हैं कि जब हमारे राजनीतिक प्रतिनिधि, जो हमारी ज़मीन और संस्कृति का चेहरा माने जाते हैं, संसद या दिल्ली से बातचीत में कश्मीरी की बजाय दूसरी भाषाएं बोलते हैं, तो यह हमारी मातृभाषा को हाशिए पर धकेल देता है। भाषा सिर्फ़ संवाद का साधन नहीं बल्कि पहचान और सांस्कृतिक निरंतरता की बुनियाद है।

राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

तौकीर की इस लगन को 2023 में बड़ी उपलब्धि मिली, जब उन्हें इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में जगह दी गई। यह सम्मान न सिर्फ़ उनकी व्यक्तिगत मेहनत का परिणाम था, बल्कि पूरे कश्मीर के लिए गर्व का पल भी बना। इस उपलब्धि ने उन्हें और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और साथ ही युवाओं को यह संदेश दिया कि कश्मीरी भाषा पर गर्व करना चाहिए।

युवाओं के लिए प्रेरणा

आज कश्मीर के कई घरों में बच्चों को अंग्रेज़ी या उर्दू को तरजीह दी जाती है ताकि शिक्षा और रोज़गार में मदद मिले। लेकिन इसी वजह से कश्मीरी भाषा धीरे-धीरे पिछड़ती जा रही है। तौकीर ने इस रुझान को बदलने की ठानी है। इंस्टाग्राम जैसी आधुनिक दुनिया में कश्मीरी भाषा को लेकर आए हैं और साबित कर दिया है कि यह भाषा आधुनिक भी हो सकती है और आकर्षक भी।

ज़िम्मेदारी का आह्वान

तौकीर का मानना है कि केवल व्यक्तियों ही नहीं, बल्कि संस्थाओं, नेताओं और समाज के प्रभावशाली लोगों को भी कश्मीरी भाषा को बचाने और बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए। अगर हम अपनी मातृभाषा खो देंगे, तो अपनी पहचान का एक अहम हिस्सा खो देंगे, वे चेतावनी देते हैं।

रोशनी की तरह चमकता संदेश

कय़शुर प्राव के ज़रिए तौकीर अशरफ़ ने यह दिखा दिया है कि एक अकेला नौजवान भी बदलाव की राह खोल सकता है। उनकी कोशिश केवल भाषा को बचाने की नहीं, बल्कि पहचान, गर्व और जुड़ाव को ज़िन्दा रखने की है। कश्मीर के लिए उनकी यह कहानी सिर्फ़ व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि डिजिटल दौर में कश्मीरी भाषा के पुनर्जागरण की झिलमिलाती रोशनी है।