इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल विवाद, सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिना इथेनॉल वाले पेट्रोल का विकल्प दिए 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री को उपभोक्त अधिकारों के खिलाफ होने का दावा करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने से सोमवार को इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता अक्षय मल्होत्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत की गुहार ठुकरा दी।

पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता फरासत ने नीति आयोग की 2021 की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उस रिपोर्ट में इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल मानकों का पालन न करने वाले पुराने वाहनों के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की गई है।

अधिवक्ता मल्होत्रा की इस याचिका में दावा किया गया था कि यह उन लाखों वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिनके वाहन इथेनॉल मिश्रण के अनुकूल नहीं हैं। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल प्रसिद्धि पाने के लिए इस मामले में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि इस याचिका के पीछे एक बड़ा गुट काम रहा है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सरकार ने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद यह नीति तैयार की है। उन्होंने कहा कि इस इथेनॉल नीति से गन्ना किसानों को लाभ हो रहा है। उन्होंने कहा कि क्या देश के बाहर के लोग यह तय करेंगे कि भारत को किस तरह के ईंधन का इस्तेमाल करना चाहिए?

शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका में दावा किया गया था कि इथेनॉल युक्त पेट्रोल के प्रति बिना जन जागरूकता किए लोगों को इसे खरीदने के लिए मजबूर करना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के खिलाफ है।

याचिका में यह सुनिश्चित करने की गुहार लगाई गई है कि सभी ईंधन स्टेशनों पर इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल उपलब्ध हो। पेट्रोल पंपों और ईंधन डिस्पेंसर पर इथेनॉल की मात्रा स्पष्ट रूप से अंकित की जाए। ऐसा करने से उपभोक्ताओं को पता चलेगा कि वे क्या खरीद रहे हैं। ईंधन भरवाते समय उपभोक्ताओं को सूचित किया जाना चाहिए कि उनके वाहन इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल के अनुकूल हैं या नहीं। यह भी मांग की गई थी कि उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के लिए उपभोक्ता संरक्षण नियमों को लागू करे।