इस्लामाबाद। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष परवेज इलाही को लाहौर की भ्रष्टाचार रोधी अदालत से जमानत मिली लेकिन उनके वरिष्ठ सहयोगी शाह महमूद कुरैशी, असद उमर और असद कैसर को इस्लामाबाद की एक सत्र अदालत ने 9 मई की हिंसा में उनके खिलाफ दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
हालांकि इलाही मंगलवार को जेल से रिहा नहीं हो सके क्योंकि उनकी रिहाई का आदेश जेल प्रशासन तक नहीं पहुंचा। उनकी रिहाई के इंतजार में संघीय जांच एजेंसी की एक टीम एक धनशोधन मामले में उन्हें गिरफ्तार करने के लिए जेल के बाहर तैनात थी लेकिन इलाही की रिहाई नहीं होने से उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ा।
एफआईए ने इलाही पर एक प्रतिनिधि के माध्यम से धनशोधन का आरोप लगाया है और उनके बेटे मूनिस इलाही और तीन अन्य लोगों के साथ उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है। पीटीआई ने इलाही के खिलाफ दर्ज मामले की निंदा करते हुए कहा कि किसी भी मामले में जमानत मिलने के बाद उनके नेताओं को फिर से गिरफ्तार करना वर्तमान फासीवादी सरकार का एक निर्धारित पैटर्न रहा है।
सुनवाई के दौरान, न्यायाधीश अली रजा ने इलाही को 10 लाख रुपए का मुचलका भरने का निर्देश दिया और कहा कि उनकी जमानत लाहौर उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित अभियोजन पक्ष के आवेदन के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगी।
सत्र अदालत ने 12 जून को इलाही की भ्रष्टाचार विरोधी प्रतिष्ठान (एसीई) की रिमांड खारिज करने और अवैध नियुक्तियों के मामले में बरी करने से संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्णय को रद्द कर दिया था। हालांकि इलाही ने लाहौर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आदेश को निलंबित करा लिया। उच्च न्यायालय इस मामले में 27 जून को सुनवाई करेगा।
मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अली रजा ने कहा कि ये नियुक्तियां 2021 में हुई थीं और एसीई को इस मामले की रिपोर्ट करने में दो वर्षों से ज्यादा समय लगा। न्यायधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता कभी भी जांच से जुड़ा नहीं था और कार्यवाही एकतरफा थी। हालांकि, उन्होंने कहा कि घोषित परिणामों में कथित जालसाजी के 12 मामलों का खुलासा हुआ है।
पीटीआई उपाध्यक्ष कुरैशी और पूर्व महासचिव असद उमर और पीटीआई नेता असद कैसर को 9 मई की हिंसा के बाद दर्ज कई मामलों में अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी गई। एडीएसजे ताहिर अब्बास सिपरा ने कैसर की पांच और कुरैशी और असद उमर की तीन-तीन जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया। ये मामले विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज प्राथमिकियों पर आधारित हैं, जिनमें उन पर हिंसा को उकसाने का आरोप लगाया गया था।
न्यायाधीश ने कहा कि यह अचानक उकसावा का मामला नहीं था। फैसले के अनुसार पीटीआई नेताओं के ट्वीट और सोशल मीडिया पोस्ट ने आग में घी डालने का काम किया और वे जमानत के हकदार नहीं हैं। न्यायधीश ने कहा कि इस समय उनको जमानत देने से जांच प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।