अजमेर। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के पृथ्वीराज चौहान ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक शोध केन्द्र की ओर से आज आतंकवाद, राष्ट्रवाद और धर्म : समकालीन भारत की चुनौतियां विषयक प्रबुद्धजन गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी के मुख्य अतिथि राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं इतिहास के प्रखर जानकार ओंकार सिंह लखावत ने इस अवसर पर कहा कि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी आत्मा संस्कृति और अध्यात्म में निहित है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद की अवधारणा भारतीय परंपरा में सदियों से विद्यमान रही है, जिसे हम प्राचीन ऋषि-मुनियों की तपोभूमि से लेकर सम्राट अशोक, महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान तक के योगदान में देखते हैं।
लखावत ने यह भी कहा कि भारत में राष्ट्रवाद कभी भी आक्रामक नहीं रहा, वह समन्वय और सहिष्णुता का संदेश देता है। आतंकवाद इसके विपरीत है, जो धर्म का अपवित्र प्रयोग कर मानवता को बांटने का काम करता है। उन्होंने कहा कि भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति को तोड़ने का प्रयास ही आतंकवाद का आधार है, और इसका उत्तर हमें अपने सांस्कृतिक गर्व और ऐतिहासिक चेतना से देना होगा।
वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं मुख्य वक्ता हनुमान सिंह राठौड़ ने विषय की ऐतिहासिक, सामाजिक और वैचारिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए कहा कि राष्ट्रवाद की भारतीय परिभाषा पाश्चात्य सोच से भिन्न है। यहां राष्ट्र केवल भू-खंड नहीं, अपितु एक जीवंत सांस्कृतिक सत्ता है।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद को केवल एक सुरक्षा चुनौती मानना भूल होगी। यह हमारी सामाजिक चेतना, धार्मिक सहिष्णुता और राष्ट्रीय एकता पर आघात है। धर्म के नाम पर कट्टरता फैलाना और युवाओं को भ्रमित करना आतंकवाद की रणनीति का हिस्सा है।
राठौड़ ने जोर देकर कहा कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे राष्ट्र के नागरिकों में विवेक, मानवता और तर्क का भाव पैदा किया जा सकता है। उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि धर्म को समझें, राष्ट्र को जानें और आतंकवाद की जड़ें पहचानें।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने कहा कि समकालीन भारत अनेक अंतर्विरोधों के दौर से गुजर रहा है, जहां धर्म और राष्ट्रवाद के सही अर्थ को समझने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का कार्य केवल शिक्षा देना नहीं, बल्कि समाज को दिशा देना भी है। ऐसे विमर्श न केवल विद्यार्थियों की बौद्धिक दृष्टि को विकसित करते हैं, बल्कि उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा भी देते हैं।
गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने विषय के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आतंकवाद कोई नई अवधारणा नहीं है, बल्कि यह समय-समय पर अलग-अलग रूपों में समाज के समक्ष चुनौती बनकर सामने आया है। उन्होंने बताया कि प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक काल तक, हमने राष्ट्र और धर्म के नाम पर अनेक संघर्ष देखे हैं, लेकिन भारत की आत्मा कभी विभाजित नहीं हुई। उन्होंने जोर देकर कहा कि धर्म का मूल उद्देश्य मानव कल्याण है, न कि हिंसा और विघटन। अतः राष्ट्रवाद का आधार प्रेम, सेवा और समर्पण होना चाहिए, न कि घृणा और अलगाव।
कार्यक्रम के संयोजक एवं शोध केन्द्र के मानद निदेशक प्रो. अरविंद पारिक ने कहा कि यह गोष्ठी समय की मांग है। आतंकवाद, राष्ट्रवाद और धर्म जैसे विषयों पर खुला संवाद आवश्यक है, ताकि समाज में भ्रम की स्थिति न बने और युवाओं को सकारात्मक दिशा मिले। उन्होंने आने वाले समय में और भी ऐसे विमर्श आयोजित करने की योजना की जानकारी दी।
यह गोष्ठी विचारों का एक ऐसा मंच सिद्ध हुई, जहां राष्ट्र, धर्म और मानवता को जोड़ने का संदेश दिया गया और यह संकेत भी कि शिक्षा और संवाद ही वे साधन हैं जिनसे समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। विश्वविद्यालय परिवार के शिक्षकगण, अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं शहर के प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राजू शर्मा ने एवं धन्यवाद प्रो. शिवदयाल सिंह ने ज्ञापित किया।