उदयपुर/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ‘उदयपुर फाइल्स’ से संबंधित याचिकाओं के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि वह इस विवाद से जुड़े मामलों पर 28 जुलाई को विचार करे।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उसने उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल तेली की हत्या पर बनी इस हिंदी फिल्म के प्रदर्शन पर कोई रोक नहीं लगाई है। पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करेंगे कि वह सोमवार (28 जुलाई) को इस मामले पर सुनवाई करे और एक संक्षिप्त, तर्कसंगत आदेश पारित करे।
अदालत ने यह निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि संबंधित दोनों पक्षों के मामलों को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अरशद मदनी और अन्य द्वारा केंद्र सरकार के उस फैसले को चुनौती देने पर विचार करेगा, जिसमें छह अतिरिक्त कट (संपादन) लगाने के बाद फिल्म के प्रदर्शन को मंजूरी दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा फिल्म की जांच करने के फैसले के बाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ फिल्म निर्माताओं की याचिका की अब कोई उपयोगिता नहीं बची है। पीठ ने मदनी की ओर से हाईकोर्ट द्वारा मामले की जांच किए जाने तक फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की गुहार को अस्वीकार कर दिया है। पीठ ने मदनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि आप पहले उच्च न्यायालय जाइये। दूसरा पक्ष केंद्र सरकार के आदेश से संतुष्ट है।
फिल्म निर्माता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि इस अदालत ने हर बार फिल्म के प्रदर्शन के पक्ष में आदेश दिया है। इसका ज्वलंत उदाहरण ‘केरल स्टोरीज़’ है। इस पर सिब्बल ने कहा कि अदालत द्वारा फिल्म के प्रदर्शन की इजाजत देना उचित नहीं होगा। इस पर अधिवक्ता भाटिया ने कहा कि कोई भी ऐसी फिल्म नहीं हो सकती जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। उन्होंने कहा कि विशेष समिति के सुझाव के अनुसार फिल्म में आंशिक बदलाव किए गए हैं।
इस बीच, एक हस्तक्षेपकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि ‘कश्मीर फाइल्स’ के बाद कोई हिंसा नहीं हुई है। उन्होंने पूछा कि क्या ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरल स्टोरी’ या 26/11 के बाद मुसलमानों के खिलाफ कोई घटना हुई है।
अधिवक्ता ने कहा कहा कि क्या किसी मुसलमान को निशाना बनाया गया? क्या कश्मीरी मुसलमानों को नुकसान पहुंचाया गया? यह बदनामी का सिद्धांत एक कल्पना मात्र है। पीठ ने कहा कि ये विचारों को उकसाने वाला तर्क हैं, लेकिन जब कोई मामला उचित कानूनी प्रक्रिया से गुजरता है तो ऐसी चिंताओं का समाधान किया जा सकता है।
अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि यह मामला अलग है। हमने फिल्म देखी है। हम इसकी विषयवस्तु को चुनौती दे रहे हैं, न कि केवल फिल्माये गये दृश्य को। पिछले मामलों में अदालत ने फिल्म के प्रोमो पर विचार किया था। यहाँ, हमारा सवाल फिल्म के मूल तत्व को ही चुनौती दे रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि अमीश देवगन मामले में शीर्ष अदालत के फैसले में इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है और अब यह विचारणीय विषय है कि फिल्म में अभद्र भाषा क्या है। उन्होंने कहा कि अदालत के इतिहास में किसी भी फिल्म को रिलीज़ होने के बाद कभी प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ‘उदयपुर फाइल्स’ के प्रमाणन पर पुनर्विचार के लिए 14 जुलाई को एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने फिल्म की विषय-वस्तु की समीक्षा की और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा पहले ही लागू किए गए 55 कटों (संपादन) के अलावा छह अतिरिक्त बदलावों की सिफारिश की। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को केंद्र सरकार को सिनेमैटोग्राफ अधिनियम की धारा 6 के तहत अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करके फिल्म की जाँच करने का आदेश दिया था।
उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल तेली की हत्या पर आधारित इस फिल्म पर मुसलमानों को बदनाम करने के आरोप में प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी द्वारा दायर एक याचिका सहित तीन याचिकाएँ उच्च न्यायालय में दायर की गईं।
यह फिल्म 11 जुलाई को प्रदर्शित होने होने वाली थी। उससे पहले मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ (दिल्ली उच्च न्यायालय) ने याचिकाकर्ताओं को केंद्र सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखने को कहा और तब तक फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी।