अजमेर। विकसित भारत 2047 की संकल्पना को सुदृढ आधार प्रदान के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को देश भर में लागू किया गया। इसके पांच साल पूरे होने पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राजस्थान (उच्च शिक्षा) की ओर से सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया।
नीति से परिवर्तन तक : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के पांच वर्ष और भविष्य विषय पर आधारित इस व्याख्यान में मुख्य वक्ता महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. सुरेश कुमार अग्रवाल व विशिष्ट अतिथि एबीआरएसएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) नारायण लाल गुप्ता रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य एवं एबीआरएसएम के प्रदेशाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल ने की। स्थानीय इकाई सचिव डॉ. संजय तोमर ने अतिथियों का स्वागत किया।
मुख्य वक्ता प्रो. अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमसे अत्यधिक अपेक्षाएं रखती है। अतः यदि आज इसके क्रियान्वयन में जो समस्याएं उत्पन्न हो रही है, उसके मूल में भारतीयों को गुलाम बनाने के लिए तैयार की गई मैकाले की शिक्षा व्यवस्था से उत्पन्न हमारी मानसिक कुण्ठा है, जिसने दीर्घकाल तक हमें मानसिक रूप से हीन बनाए रखा। ऐसी ही हीनता और मानसिक कुण्ठा के निवारण के लिए भारतीय ज्ञान परम्परा का सशक्त आधार प्रदान किया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सच्चे अर्थों में विकसित भारत के लिए पूर्ण रोडमैप प्रदान करती है। यह परिवर्तन हमारी कल्पनाओं से बाहर है, लेकिन भारत के सशक्त, सुदृढ और आत्मविश्वास से परिपूर्ण भविष्य के लिए हमें अपनी पूरी सामर्थ्य से आगे बढ़ना अनिवार्य है।
प्रो. अग्रवाल ने कहा कि कौशल संवर्धन के साथ व्यावसायिक शिक्षा पर जोर, बहुवैषयिक अध्ययन, मल्टीपल एंट्री मल्टीपल एग्जिट, सतत मूल्यांकन प्रक्रिया, शैक्षिक व्यावहारिकता के ऐसे प्रावधान हैं जो कौशल संवर्धन और रोजगार के समान अवसर पैदा करेंगे। मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षण, स्थानीय भाषाओं पर बल, शिक्षा के साथ संस्कारों को सुनिश्चित करेंगे।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCrF) ग्रेडिंग सिस्टम में एकरूपता और भारतीय ज्ञान परम्परा विकसित बौद्धिक कौशल के साथ भारतीयता के आत्मविश्वास को स्थापित करेगी। डिजिटलीकरण, तकनीकी सशक्तीकरण, सर्वजनात्मकता एवं उत्पादकता जैसे नवाचारों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए कुलगुरु ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रभावी क्रियान्वयन को अनिवार्य बताया।
एकेडमिक क्रेडिट बैंक, वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन जैसे प्रावधानों के साथ यह शिक्षा नीति युवा पीढ़ी के सुनिश्चित भविष्य की आधारशिला होगी। अतः हमें इस शिक्षा नीति की उपलब्धियों, समसामयिक चुनौतियों एवं भावी योजनाओं पर बहुआयामी विचार-विमर्श करते रहना होगा।
विषय प्रवर्तन करते हुए एबीआरएसएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में वैश्विक स्तर पर जो परिवर्तन हो रहे हैं, उनकी गति तेज़ है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उस तेज गति से सामंजस्य स्थापित कर विकसित भारत की ओर कदम बढ़ाने का अतुल्य दस्तावेज है। निश्चित रूप से इस शिक्षा नीति को लागू करने से लेकर क्रियान्वयन की यात्रा एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के कई सोपान होंगे, जिनमें शिक्षक की सक्रिय सहभागिता, उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए दृढ इच्छाशक्ति और शिक्षा नीति को लागू करने हेतु जारी किए गए विभिन्न दस्तावेजों की जानकारी अत्यन्त आवश्यक है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल ने कहा कि वर्ष 2030 तक भारत में सर्वसमावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन-पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढावा दिए जाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू की गई। यह शिक्षा नीति अपने कई युगानुकुल प्रावधानों के कारण इस देश के स्वर्णिम भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।
यह नीति मात्र एक औपचारिक दस्तावेज नहीं है अपितु भारत को शैक्षणिक रूप से आत्मनिर्भर, बहु-विषयी एवं वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक सशक्त आधारशिला है। प्रो. बहरवाल इस बात पर भी बल दिया कि नीति के क्रियान्वयन के दौरान उत्पन्न हो रही व्यावहारिक कठिनाइयों को सुविचारित संवाद, संस्थागत सहयोग तथा दूरदर्शी दृष्टिकोण के माध्यम से समाधान करते हुए दूर किया जा सकता है।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के संकाय सदस्यों के साथ एबीआरएसएम के पदाधिकारी एवं सदस्यों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनूप कुमार आत्रेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन इकाई सह सचिव डॉ. उमेश दत्त ने किया।