नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंज़ूरी देने की समय-सीमा निर्धारित करने के विवाद से जुड़े राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई पूरी होने के बाद गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्य कांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की संविधान पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें 10 दिनों तक सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। राष्ट्रपति संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 200/201 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंज़ूरी देने की समय-सीमा से संबंधित प्रश्न उठाए गए थे।
राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए यह संदर्भ प्रस्तुत किया गया था, जो सर्वोच्च संवैधानिक प्रमुख को किसी भी कानूनी प्रश्न या सार्वजनिक महत्व के तथ्य पर उच्चतम न्यायालय की राय लेने की अनुमति देता है।
राष्ट्रपति ने इस संदर्भ में 14 प्रश्नों पर शीर्ष अदालत की राय मांगी। सवालों में यह भी शामिल है कि क्या देश के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायोचित है। संदर्भ में राय मांगी गई है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक के कानून बनने से पहले, किसी भी रूप में, उसकी विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना अनुमन्य है?
इसमें यह भी पूछा गया है कि क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के द्वारा दिए गए आदेशों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत किसी भी रूप में प्रतिस्थापित किया जा सकता है। राष्ट्रपति की ओर से यह भी राय मांगी गई है कि क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना भी लागू कानून है।
इसमें पूछा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर, क्या शीर्ष न्यायालय की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह निर्णय करे कि क्या उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है जिसमें संविधान की व्याख्या से संबंधित विधि के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं और इसे कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाए।
राष्ट्रपति के संदर्भ में यह भी पूछा गया था कि क्या संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने/आदेश पारित करने तक विस्तारित है जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं।
इसमें यह भी राय देने को कहा गया है कि क्या संविधान, भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत वाद के माध्यम से छोड़कर, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए शीर्ष न्यायालय के किसी अन्य अधिकार क्षेत्र को रोकता है?
राष्ट्रपति ने महसूस किया कि मौजूदा परिस्थितियों में जब राज्य सरकारें अक्सर संविधान के अनुच्छेद 32 और 131 का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाती हैं, कानूनी प्रश्नों पर शीर्ष अदालत की राय लेना समय की मांग है।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति संदर्भ के मामले में 22 जुलाई को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इन सवालों पर अपना पक्ष रखने को कहा था। शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को कहा था कि वह 29 अगस्त से 10 सितंबर के दौरान सुनवाई संबंधित पक्षों की दलीलें सुनेगी।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ (शीर्ष अदालत में) ने आठ अप्रैल, 2025 के अपने एक फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को पुनः अधिनियमित किए जाने के बाद राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने के फैसले को अवैध घोषित किया था।
शीर्ष अदालत ने तब समय-सीमा तय करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इस फैसले के बाद राष्ट्रपति ने संदर्भ के 14 प्रश्नों पर शीर्ष अदालत की राय मांगी थी।