आश्विन अमावस्या के दिन, जिसे लक्ष्मी पूजन का दिन कहा जाता है, मंदिरों, दुकानों और घर-घर में श्री लक्ष्मी पूजन किया जाता है। यह दिन दीपावली का एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सामान्यतः अमावस्या को अशुभ माना जाता है, परंतु दीपावली की यह अमावस्या शरद पूर्णिमा (कोजागिरी पूर्णिमा) की तरह ही कल्याणकारी और समृद्धि देने वाली होती है। इस दिन लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ अलक्ष्मी निवारण भी किया जाता है। आइए जानते हैं लक्ष्मी पूजन की विधि और उसका शास्त्रीय महत्व।
इतिहास – लक्ष्मी पूजन के दिन भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी के साथ मिलकर सभी देवताओं को बलि के कारागार से मुक्त किया। इसके बाद वे सभी देवता क्षीरसागर में जाकर विश्राम करने लगे—यही घटना इस दिन की पौराणिक पृष्ठभूमि मानी जाती है।
त्योहार मनाने की विधि – सुबह शुभ स्नान करके देवपूजा की जाती है। दोपहर में पार्वण श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। प्रदोष काल (संध्या समय) में पत्तों और फूलों से सजे मंडप में श्री लक्ष्मी, श्री विष्णु और कुबेर जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी पूजन करते समय एक चौकी पर अक्षतों (चावल) से अष्टदल कमल या स्वस्तिक बनाकर उस पर लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। कहीं-कहीं कलश पर तांबा रखकर उस पर लक्ष्मी जी की मूर्ति रखी जाती है और उसके पास ही कुबेर की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
लक्ष्मी जी को गाय के दूध से बने खोये में लौंग, इलायची और चीनी मिलाकर नैवेद्य अर्पित किया जाता है। धनिया, गुड़, लाहे और बतासे अर्पित किए जाते हैं और बाद में उन्हें परिवारजनों में बांटा जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और रात में जागरण किया जाता है। यदि सभी पूजन सामग्री उपलब्ध न हो, तो जो सामग्री घर में हो, उससे ही श्रद्धा भाव से पूजा करनी चाहिए।
लक्ष्मी कहां निवास करती हैं? – पौराणिक मान्यता है कि आश्विन अमावस्या की रात को लक्ष्मी जी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और ऐसा स्थान खोजती हैं जहां स्वच्छता, सौंदर्य और सात्विकता हो। जहां घर में धर्मनिष्ठ, कर्तव्यपरायण, संयमी, क्षमाशील पुरुष और पतिव्रता, गुणवती स्त्रियाँ रहती हैं, वहां लक्ष्मी जी स्थायी रूप से निवास करती हैं।
लक्ष्मी पूजन का महत्व – सामान्यतः अमावस्या अशुभ मानी जाती है, परंतु यह अमावस्या शुभ और आनंदमयी होती है। यह दिन हर कार्य के लिए नहीं, बल्कि आनंद, समृद्धि और पुण्य के लिए शुभ माना गया है।
श्री लक्ष्मी जी से की जाने वाली प्रार्थना – लक्ष्मी पूजन के समय अपने हिसाब-किताब की किताब लक्ष्मी जी के सामने रखकर प्रार्थना की जाती है:
हे लक्ष्मी माता, आपके आशीर्वाद से प्राप्त धन का हमने ईश्वर कार्यों में सदुपयोग किया है। यह लेखा-जोखा आपके समक्ष प्रस्तुत है। यदि हमने धन का दुरुपयोग किया हो तो हमें क्षमा करें। कृपया हमारे खर्च और प्रयासों को भगवान के समक्ष अनुशंसा करें ताकि वे उन्हें स्वीकार करें। आने वाला वर्ष भी मंगलमय हो।
लक्ष्मी पूजन की रात को कचरा (केर) क्यों निकाला जाता है? – इसे अलक्ष्मी निवारण कहा जाता है। इस दिन नई झाड़ू (केरसुणी) खरीदी जाती है, जिसे लक्ष्मी कहा जाता है। मध्यरात्रि में उस झाड़ू से घर झाड़कर कचरा बाहर निकाल दिया जाता है। यह अलक्ष्मी यानी दरिद्रता को घर से बाहर निकालने का प्रतीक है। अन्य समयों में रात में घर नहीं बुहारते, लेकिन इस रात यह विशेष विधि के रूप में किया जाता है।
अक्षतों से अष्टदल कमल या स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है? – लक्ष्मी पूजन के समय अक्षतों (चावल) से अष्टदल कमल या स्वस्तिक बनाना अनिवार्य माना गया है, क्योंकि अक्षतों में लक्ष्मी तत्व अन्य पदार्थों की तुलना में अधिक मात्रा में आकर्षित होता है। स्वस्तिक प्रतीक में निर्गुण तत्व जागृत करने की शक्ति होती है, इसलिए लक्ष्मी के आसन के रूप में इसे बनाया जाता है।
लक्ष्मी चंचला है — ऐसा क्यों कहा जाता है? – जब व्यक्ति श्रद्धा से लक्ष्मी की उपासना करता है, तो उसे धन और समृद्धि प्राप्त होती है। परंतु जब उसकी भक्ति कम हो जाती है या उसमें अहंकार उत्पन्न होता है, तब लक्ष्मी उससे दूर चली जाती है। लोग अपनी भूल मानने के बजाय कहते हैं — लक्ष्मी चंचला है। यदि लक्ष्मी सच में चंचला होतीं, तो वे श्री विष्णु के चरण बहुत पहले ही छोड़ चुकी होती।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’आपकी विनम्र
श्रीमती कृतिका खत्री
सनातन संस्था, दिल्ली
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