भारत में शिक्षण सदैव रचनात्मक और व्यावहारिक रहा : अतुल कोठारी

अजमेर। आज वैश्विक मानव समुदाय के सामने उपस्थित अनेक समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान परंपरा और कर्मयोग में निहित है। भारतीय ज्ञान परंपरा समस्या उत्पन्न करने में नहीं, बल्कि समस्या के निवारण में विश्वास रखती है। इसी के चलते आज संपूर्ण विश्व भारतीय ज्ञान को अपना रहा है।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली: परंपरा से नवाचार तक विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि भारत ने वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश दिया। पारसी, यहूदी और अन्य समुदायों सहित दुनिया भर से आए लोगों का भारत ने सदैव स्वागत किया है। अतिथि देवो भव यही हमारी संस्कृति की पहचान है। यही एकत्व की परिकल्पना है, जिससे मूल्यों का सृजन हुआ, संस्कृति का निर्माण हुआ और समाज की नींव पड़ी।

कोठारी ने कहा कि वेदों और उपनिषदों से आज की आवश्यकता के अनुसार संदर्भ लेकर भारतीय ज्ञान परंपरा को वर्तमान परिदृश्य में ढालने की आवश्यकता है। हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति में 32 प्रकार की शिक्षण पद्धतियां थीं, जिनमें संगीत भी महत्वपूर्ण विषय था। पहले संगीत की धुन में पहाड़े सिखाए जाते थे। यह दर्शाता है कि भारत में शिक्षण सदैव रचनात्मक और व्यावहारिक रहा है।

उन्होंने आगे बताया कि भारतीय शिक्षा नीति में होलिस्टिक डेवलपमेंट (समग्र विकास) की अवधारणा को प्रमुखता दी गई है। शिक्षा में प्रैक्टिकलिटी (व्यावहारिकता) आवश्यक है, क्योंकि वास्तविक बदलाव तभी संभव है जब पहले व्यवहारिकता आए और उसके बाद सिद्धांत पढ़ाया जाए। शिक्षण के तरीकों में भी परिवर्तन आवश्यक है ताकि शिक्षा अधिक जीवनोन्मुख बन सके।

अनुसंधान के विषय में कोठारी ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप निरंतर अनुसंधान (रिसर्च) होता रहना चाहिए। शोध कार्य क्षेत्रीयता, प्रैक्टिकलिटी और विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार होना चाहिए। जब शोध आवश्यकता-आधारित होगा तभी उसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि भारतीय शिक्षा पद्धति को आज की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालना होगा ताकि शिक्षा केवल रोजगार नहीं, बल्कि चरित्र, समरसता और सेवा के भाव को भी विकसित करे।

कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आनंद भालेराव ने बताया कि भारत केवल एक देश नहीं है, एक जीवन दर्शन है। मन, मस्तिष्क और मूल्यों की एकता पर खड़ा राष्ट्र है। संपूर्ण विश्व ने भारत को विश्वगुरु कहा क्योंकि भारत में ज्ञान के अल पन्नों में नहीं अनुभव, प्रयोग और साधना में था।

ज्ञान का प्रथम मंत्र विद्या दादाति विनयम हैं। और दूसरा मंत्र सर्वे भवन्तु सुखिन: है। भारत की ज्ञान परंपरा में वेद उपनिषद ने हमे अध्यात्म, धैर्य और सत्य का मार्ग दिया। पाणिनि ने भाषा को विज्ञान बनाया। आर्यभट ने गणित और खगोल को नई दिशा दी।

भारतीय ज्ञान परंपरा पर बात करते हुए प्रो भालेराव ने कहा कि यहीं भारत था जहां ज्ञान का मूल उद्देश्य उपयोगिता नहीं, उन्नति था, सिर्फ बुद्धि नहीं बुद्धत्व था। उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा में ही नवाचार की शक्ति है। भारत की परंपरा स्थिर नहीं गत्यात्मक है। हमारी परंपरा का सार जो शाश्वत हैं उसे अपनाओ, जो समयानुकूल है उसे विकसित करो।

इस आयोजन में विश्वविद्यालय के विद्यार्थी, शोधार्थी और शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के साथ साथ विभिन्न विभागों के प्रमुख, वित्त अधिकारी, कुलसचिव, उप कुलसचिव उपस्थित रहें। धन्यवाद ज्ञापन हेल्थ साइंस विभाग के डीन सीसी मंडल ने किया।