पटना। बिहार की राजनीतिक विसात के मझे हुए खिलाड़ी के रूप में प्रतिष्ठित जनता दल (यू) के मुखिया नीतीश कुमार गुरुवार को दसवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
अपनी प्रशासनिक क्षमता और कार्यशैली से बिहार के ‘सुशासन बाबू’ कहे जाने वाले नीतीश कुमार को बुधवार को यहां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) विधायक दली की बैठक में सर्वसम्मति से नेता चुना गया। वह किसी भी राज्य में सर्वाधिक बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकार्ड बना चुके हैं।,
राजनीतिक थकान, सत्तारूढ दल के प्रति मतदाताओं में उदासीनता बढ़ने की भविष्यवाणियों को धता बताते हुए कुमार ने पार्टी को इस बार के विधान सभा चुनाव में जबरदस्त जीत दिलाई। चुनाव से पहले राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि लगभग दो दशकों तक सत्ता में रहने के बाद नीतीश कुमार के लिए बार की चुनावी लड़ाई कठिन होगी लेकिन उन्होंने ऐसे विश्लेषणों को गलत साबित कर दिया। पिछले दो दशक में बीच बीच में राज्य की राजनीतिक के दो ध्रुवों के बीच गठबंधन बदलने के बावजूद उनके समर्थन और लोकप्रियता पर कोई असर नहीं दिखाई दिया।
वर्ष 2020 में हुए पिछले चुनाव में जदयू महज 43 सीटों पर सिमट गई थी लेकिन इस बार पार्टी ने उसकी करीब दो गुना सीटें (85) सीटें हासिल कर सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी के करीब करीब बराबरी पर है।
इस बार राजग में भाजपा और जदयू ने बराबर-बराबर 101-101 सीटों पर सीटों पर चुनाव लड़ा और राजग ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में आगे रख कर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नितीश कुमार की छवि का फायदा मिला राजग ने 2010 के 200 से अधिक सीटों को जीतने के प्रदर्शन को दो हराया। इन चुनाओं में नीतीश कुमार ने महिला मतदाताओं के बीच एक मजबूत सदभावना अर्जित की है। बिहार की ‘दीदियों’ ने मजबूती से उनका हाथ थामे रखा।
बिहार में पटना जिले के बख्तियारपुर में एक मार्च 1951 को एक साधारण परिवार में जन्मे नीतीश कुमार के पिता स्व. कविराज राम लखन सिंह स्वतंत्रता सेनानी और वैद्य थे। कुमार बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज पटना में पढ़ाई के दौरान ही लोक नायक जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर वर्ष 1974 के छात्र आंदोलन में कूद पड़े थे।
पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वर्ष 1977 का चुनाव हुआ तब वह जनता पार्टी के टिकट पर नालंदा जिले के हरनौत विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1980 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा तब उनके परिवार वालों ने उन पर राजनीति छोड़कर नौकरी के लिए दबाव बनाना शुरु कर दिया लेकिन कुमार नहीं माने और राजनीति में डटे रहे।
इसके बाद कुमार को पहली बार 1985 के विधानसभा चुनाव में हरनौत से ही सफलता मिली और उसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में वह बाढ़
संसदीय क्षेत्र से चुनकर लोकसभा पहुंचे। कुमार 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री बने। वर्ष 1991 केमध्यावधि चुनाव में वह फिर से लोकसभा के सदस्य चुने गए।
लालू प्रसाद यादव से राजनीतिक मतभेद के कारण वर्ष 1994 में जनता दल से अलग होकर कुमार ने जार्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में समता पार्टी बनाकर 1995 का विधानसभा चुनाव लड़ा तब उनकी पार्टी मात्र सात सीट पर ही जीत हासिल कर सकी। कुमार ने इस हार से सबक लेते हुए लालू विरोधी मतों के विभाजन को रोकने के इरादे से वर्ष 1996 में भाजपा के साथ गठजोड़ कर लिया। उनका यह फार्मूला कामयाब रहा और उसका फायदा उन्हें आज तक मिल रहा है।
कुमार वर्ष 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में विजयी हुए। कुमार ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वर्ष 1998 में रेल मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री का कार्य भार संभाला। 1999 में फिर बनी वाजपेयी सरकार में वह भूतल परिवहन और कृषि मंत्री बनाए गए। वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधान सभा में उन्होंने राजग विधायक दल के नेता के रूप में मुख्यमंत्री पद की पहली बार शपथ ली, लेकिन बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण विधानसभा में शक्ति परीक्षण से पहले ही सात दिनों के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। कुमार के लिए यह बड़ा राजनीतिक झटका था।
उसके बाद वह फिर से केन्द्र की राजनीति में लौट गए और वर्ष 2000 से लेकर 2004 तक वाजपेयी सरकार में मंत्री और रेल मंत्री रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव में कुमार ने दो सीटों से चुनाव लड़ा जिसमें वह बाढ़ से चुनाव हार गए लेकिन नालंदा सीट से विजयी हुए।
उस साल केन्द्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनने के बाद कुमार ने अपने आप को पूरी तरह बिहार की राजनीति पर केन्द्रित कर लिया । फरवरी 2005 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और कोई भी दल सरकार बनाने में सफल नहीं रहा। नवम्बर 2005 में दुबारा हुए चुनाव में कुमार के नेतृत्व वाले राजग को स्पष्ट बहुमत मिल गया और वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
मुख्यमंत्री के रूप में विकास पुरुष की छवि बना चुके कुमार के नेतृत्व में जब राजग ने 2010 का विधानसभा चुनाव लड़ा तो उसे दो-तिहाई बहुमत हासिल हुआ। कुमार ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभाली। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश किए जाने की कोशिशों के विरोध में भाजपा से 17 साल पुराना अपना नाता तोड़कर एक बड़ा राजनीतिक जोखिम उठाया।
भाजपा से नाता टूटने के बाद अल्पमत में आई अपनी सरकार को उन्होंने निर्दलीय और अन्य दलों के बाहर से समर्थन के बल पर किसी तरह से बचा कर रखा। इसके बाद जब वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव हुआ तो कुमार की पार्टी जदयू को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए उन्होंने 17 मई 2014 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और अपने भरोसेमंद नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनवा दिया लेकिन छह माह के अंदर ही कुमार को लगने लगा कि उन्होंने मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर एक बड़ी राजनीतिक भूल कर दी। करीब 15 दिनों के राजनीतिक ड्रामे के बाद मांझी ने इस्तीफा दिया और 22 फरवरी 2015 को कुमार ने चौथी बारमुख्यमंत्री का पद संभाला।
बिहार में 2015 का विधानभा चुनाव कई मायनों में थोड़ा अलग और दिलचस्प था। वर्षों के सहयोगी भाजपा और जदयू इस बार फिर जुदा हो गए थे और 20 साल बाद दो पुराने दोस्त लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार साथ आ गए थे। लालू और नीतीश के इस महागठबंधन में कांग्रेस भी शामिल थी। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव चुनाव के नतीजे आने पर राष्ट्री जनता दल (राजद) 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके बाद जदयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार पांचवी बार मुख्यमंत्री बने।
इस बार कुमार की सरकार करीब 20 महीने ही चल पाई। दरअसल सरकार के कार्योंं में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का बढ़ते हस्तक्षेप की वजह से पहले से ही असहज महसूस कर रहे कुमार को राजद से नाता तोड़ने का तब बहाना मिल गया जब लालू परिवार के खिलाफ मंत्री पद और सरकारी नौकरी के बदले जमीन-फ्लैट लिखवाने का मामला भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने उजागर किया तथा रेलवे टेंडर घोटाला की जांच शुरू हुई। इसपर कुमार ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव से जनता के समक्ष स्थिति स्पष्ट करने को कहा लेकिन जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो कुमार ने 26 जुलाई 2017 को महागठबंधन से नाता तोड़ते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया।
इसके बाद तुरंत भाजपा ने कुमार को समर्थन देने की घोषणा कर दी और 24 घंटे के अंदर ही कुमार ने छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही फिर से बिहार में राजग सरकार की वापसी हो गई।
वर्ष 2020 में एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार बनीं। हालांकि अगस्त 2022 में घटनाक्रम तेजी से बदले और नीतीश ने राजग से अलग होने का फैसला कर लिया। कुमार एक बार फिर महागठबंधन में शामिल हो गए और उनके नेतृत्व में नई सरकार बनी। नीतीश महागठबंधन में गए लेकिन 17 माह में ही असहज महसूस करने लगे।
जनवरी 2024 के आते-आते स्थितियां फिर से बदलने लगीं और नीतीश फिर से राजग में वापस लौट आए। चौहत्तर साल के नीतीश कुमार अपनी राजनीति का उफान देख चुके हैं। वे मुख्यमंत्री पद की दसवीं बार जिम्मेवारी संभालने जा रहे कुमार ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में अब तक अपनी शर्तों पर ही राजनीति की है। इस बार उनका साथ ऐसी भाजपा से है जो राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है।



