भारत के जन के मन की भाषा है संविधान : राज्यपाल हरिभाऊ बागडे

महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में संविधान दिवस समारोह आयोजित
अजमेर। संविधान दिवस समारोह के कार्यक्रम में राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागडे ने कहा कि सनातन संस्कृति के नायकों को सम्मान देने के लिए संविधान में चित्र रूप में सम्मिलित किया गया।

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने बुधवार को महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में आयोजित संविधान दिवस समारोह में भाग लिया। इससे पूर्व उन्होंने संविधान उद्यान का अवलोकन भी किया। समारोह में महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय की गतिविधियों से सम्बन्धित न्यूज लेटर त्रिवेणी का विमोचन किया गया। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि संविधान भारत के जन के मन की भाषा है। इसलिए संविधान को लागू करते समय आत्मार्पित करने का उल्लेख किया गया है। इसका अर्थ है कि संविधान को मन और आत्मा से सुपुर्द किया गया है।

उन्होंने संविधान निर्माण की यात्रा के बारे में भी अपने विचार रखे। श्री बागडे ने कहा कि संविधान समिति के लिए बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का चुनाव नहीं किया गया था। ऎसे में बंगाल के कोटे से उन्हें संविधान समिति में भेजा गया। विभाजन के पश्चात उनका क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान में चले जाने से उनका निर्वाचन भी अमान्य हो गया। ऎसी परिस्थिति में सरदार पटेल के हस्तक्षेप से तत्कालीन मुम्बई प्रांत के मुख्यमंत्री के माध्यम से डॉ. अम्बेडकर को पुनः संविधान समिति में भेजा गया।

उन्होंने कहा कि संविधान सनातन संस्कृति के मूल्यों पर आधारित है। सनातन संस्कृति के नायकों तथा आक्रान्ताओं से संस्कृति की रक्षा करने वाले महापुरूषों को संविधान में स्थान दिया गया है। उनके चित्र संविधान की मूल प्रति में उकेरे गए है। इन पर हमें गर्व होना चाहिए। संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष का मान मर्दन करना नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। इसे विकसित राष्ट्र बनाने में राष्ट्र के सभी नागरिकों का योगदान है। युवा पीढ़ी के द्वारा किए गए अच्छे कार्य इसकी गति बढ़ाएंगे। शिक्षा में नई ऊर्जा आनी चाहिए। बौद्धिक क्षमता बढ़ने से शोध जैसे कार्य होंगे। इसका उपयोग राष्ट्र के विकास में होगा। शिक्षा और संस्कार साथ-साथ चलने चाहिए।

संविधान दिवस समारोह के मुख्य वक्ता अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि संविधान सभा के सदस्य आर्दशवादिता, समर्पण तथा समावेशिता का जीवन जीते थे। अब तक आए सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तनों में भी स्थिर शासन देने में संविधान सक्षम है। यह संविधान दुनियां को मार्ग दिखा रहा है। संविधान को लागू और पालन करने वाले व्यक्तियों पर संविधान की सफलता तय होती है।

उन्होंने कहा कि संविधानिक मूल्यों का हमारे चरित्र में प्रस्फुटन होना चाहिए। संविधान राजनैतिक विज्ञान का विषय मात्र नहीं होकर जीवन को प्रभावित करते वाला है। यह कानून की पुस्तक की जगह सनातन संस्कृति का घटक है। देश के सामने संविधान निरन्तर चली आ रही विभिन्न स्मृतियों में से आधुनिक स्मृति के रूप में प्रस्तुत किया गया।

उन्होंने कहा कि संविधान के मूल स्वरूप के 22 भागों में 28 चित्र है। यह हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग है। ये संविधान सभा की भावना को प्रकट करते हैं। राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, शिवाजी, विक्रमादित्य, गुरूकुल, महाबलिपुरम्, गंगा अवतरण, महारानी लक्ष्मी बाई के चित्र जहां उकेरे गए हैं वे उस भाग से सम्बधित रहे हैं। नागरिकता की सुयोग्यता में गुरूकुल का चित्र दिया गया है।

शिक्षा को नागरिक जीवन का आधार माना है। मौलिक अधिकारों में रामराज्य की संकल्पना के लिए राम, सीता और लक्ष्मण है। अन्तिम व्यक्ति के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का ज्ञान देने का चित्र राज्य के निति निर्देशक तत्वों के भाग में दिए गए है। केंद्र की सार्वभौमिकता के साथ राज्य की स्वायत्तता संविधान में दी गई है। विधि के शासन के लिए राम के आदर्श-कृष्ण के निष्काम कर्म की आवश्यकता है। भारत के नीति निर्देशक तत्वों को राज्य के कर्तव्य माने गए है।

उन्होंने कहा कि संविधान की उद्देशिका में हम भारत के नागरिक से जीवित पहचान दी है। नीति निर्देशक तत्व से शिक्षा का अधिकार और पंचायती राज जैसे मामले जमीन पर उतर गए है। गौ-रक्षा और समान नागरिक संहिता भी नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। राष्ट्र की एकता और अखण्ड़ता को बंधुता सुनिश्चित करती है।

संविधान सभा में चर्चा के दौरान डॉ. अम्बेडकर ने बन्धुता शब्द जुड़वाया। बन्धुता की वर्तमान में आवश्यकता है। बंधुता संविधान के मूल ढ़ाचे का अंग है। यह भावनात्मक शब्द है। बन्धु भाव का आधार हमारी प्रतिज्ञा समस्त भारतीय मेरे भाई-बहिन है। भारत हमें जोड़़ने वाला तत्व है। हमारे समान इतिहास, परम्परा, सहजीवन इस बन्धुता का आधार है। भारत इसी संविधान के मार्गदर्शन से विश्व गुरू बनेगा। समारोह में कुलगुरू सुरेश कुमार अग्रवाल ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों से अवगत कराया। कुलसचिव कैलाश चन्द्र शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।