मनरेगा के स्थान पर विकसित भारत जी राम जी विधेयक का प्रस्ताव

नई दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के स्थान पर नया कानून लाने के लिए प्रस्तावित विधेयक सोमवार को लोक सभा में पेश नहीं किया गया।

विकसित भारत- रोजगार गारंटी एवं आजीविका मिशन- ग्रामीण (विकसित भारत जी राम जी) विधेयक 2025 को लोक सभा की आज की पूरक कार्यसूची में शामिल किया गया था। राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस विधेयक को कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान को सदन में पेश करना था लेकिन इसे पेश नहीं किया गया।

पूरक कार्यसूची में विकसित भारत जी राम जी विधेयक तथा शिक्षा और परमाणु कानून में संशोधन सहित कुल चार विधेयक दर्ज थे जिनमें से तीन पेश कर दिए गए। वर्ष 2005 में पारित मनरेगा में ग्रामीण क्षेत्र में हर परिवार को प्रति वर्ष न्यूनतम 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी है। यह कानून तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक था। इसको प्रतिस्थापित करने के लिए लाए जा रहे नए विधेयक को शुक्रवार को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी।

इस विधेयक में 100 के स्थान पर न्यूनतम 125 दिन के रोजगार की गारंटी देने का प्रस्ताव है तथा खेती-बाड़ी में श्रमिकों की कमी की समस्या को ध्यान में रखते हुए बुवाई-कटाई के सीजन में इस योजना के तहत कामों को वर्ष में 60 दिन तक स्थगित रखा जा सकता है। यह फैसला राज्य सरकारों के हाथ में होगा कि किस समय इसे स्थगित रखना है।

इसमें योजना को केंद्रीय क्षेत्र की जगह केंद्र प्रायोजित योजना बनाने का प्रावधान है और राज्यों को अंशदान करना होगा। इसमें केंद्र तथा राज्य का अंशदान 60:40 के अनुपात में होगा। पूर्वोत्तर और हिमालय क्षेत्र के राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 90 प्रतिशत धन केंद्र देगा। जिन केंद्र शासित प्रदेशों में विधायिका नहीं है वहां पूरा खर्च केंद्र उठाएगा। मनरेगा के तहत अब भी राज्य सरकारें कार्यों में प्रयुक्त सामग्री के खर्च में 25 प्रतिशत और प्रशासनिक में 50 प्रतिशत का योगदान कर रही हैं।

इस विधेयक के बारे में सरकार की ओर से जारी प्रश्नोत्तरी में कहा गया है कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रों- जल सुरक्षा, बुनियादी ग्रामीण अवसंरचना, आजीविका संबंधी अवसंरचना के विकास के कामों तथा अति वृष्टि या अनावृष्टि जैसी मौसम संबंधी आपादाओं के आजीविका पर प्रभाव को दूर करने के लिए विशेष कार्यों को संपादित किया जाएगा।

सरकार का दावा है कि प्रस्तावित विधेयक में मनरेगा से बेहतर प्रावधान हैं। इसमें मनरेगा की बुनियादी कमियों को दूर किया गया है और रोजगार नियोजन, पारदर्शिता तथा जवाबदेही की व्यवस्थाओं को मजबूत किया गया है। इस कानून के तहत स्थानीय बुनियादी ढांचों के विकास की योजना पंचायतें निर्धारित कर सकेंगी और इन कामों को राष्ट्रीय भू-स्थानिक विशेषताओं और पीएम गति शक्ति के सिद्धांतों के साथ समन्वित किया जाएगा।

विधेयक में यह प्रावधान है कि यदि जरूत मंदों को 125 दिन का काम नहीं मिला तो राज्य सरकारों को उन्हें बेरोजगारी भत्ता देना अनिवार्य होगा। सरकार का कहना है कि 2005 में मनरेगा के लागू होने के बाद दो दशक में ग्रामीण क्षेत्र में परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया है। इसे देखते हुए मनरेगा का मॉडल पुराना पड़ गया है।

मनरेगा में पिछले कई वर्षों में बड़े सुधार किए गए पर उनसे इसकी बुनियादी कमियां दूर नहीं हुईं। इस योजना में पैसे की हेराफेरी बनी रही और इसमें किया गया खर्च, इसके माध्यम से सृजित ग्रामीण परिसम्पत्तियों से मेल नहीं खाता। इस संबंध में पश्चिम बंगाल के कई जिलों में काम नहीं हुआ और पैसे का दुरुपयोग किया गया। इसी तरह 23 राज्यों में खर्च और काम में ताल मेल नहीं दिखाई दिया।