मुंबई। मुंबई की एक विशेष अदालत ने 2013 में बधिरों के एक स्कूल में नाबालिग बधिर छात्रों का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में एक सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य और एक शिक्षक को पांच वर्ष की कठोर कैद और 25,000 रुपए का जुर्माना सुनाया है।
अदालत का यह फैसला हाल ही में आया है, जिसमें अपराध की गंभीरता और अपराध की आवृत्ति को ध्यान में रखा गया। जज ने कहा कि परिस्थितियों को देखते हुए इस मामले में कोई रियायत उचित नहीं है।
पीड़ित उस स्कूल के छात्र थे जो शुरुआत में निष्कासन के डर से चुप रहे,लेकिन बाद में हिम्मत जुटाकर वे पुलिस के पास पहुंचे। इस मामले ने दिव्यांग छात्रों के समक्ष पेश होने वाली दिक्कतों को उजागर किया है। ऐसे छात्र अक्सर शोषण के शिकार होते हैं।
अदालत की टिप्पणी में जोर दिया गया है कि स्कूल पवित्र संस्थान हैं जहां बच्चे शिक्षकों पर भरोसा करते हैं, और ऐसे विश्वासघात के आजीवन आघातकारी परिणाम हो सकते हैं। अदालत ने यह भी नोट किया कि पीड़ितों की शुरुआती अनिच्छा घटनाओं का खुलासा करने में इसलिए थी क्योंकि उन्हें डर था कि उनकी बात पर विश्वास नहीं किया जाएगा।



