जयपुर। अधिवक्ता परिषद जयपुर प्रांत की हाईकोर्ट इकाई की ओर से गुरुवार को एआईआर पुस्तकालय में वाणिज्यिक वादों में पूर्व-विवाद मध्यस्थता विषय पर स्टडी सर्किल का आयोजन किया गया।
गोष्ठी के अध्ययन प्रमुख नितिन जैन ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि वाणिज्यिक मामलों में पूर्व.विवाद मध्यस्थता न्यायिक प्रणाली के बोझ को कम करने और विवादों को समयबद्व ढंग से निपटाने का प्रभावी माध्यम है।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता आरके अग्रवाल ने कहा कि commercial courts act 2015 में अंतर्गत अनिवार्य प्री.लिटिगेशन मेडिएशन न्यायिक प्रक्रिया में क्रांतिकारी सुधार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पक्षकारों का समय और व्यय दोनों बचाता है। व्यापारिक संबंधों को बिगड़ने से रोकता है। न्यायालयीन भार को कम कर न्याय की गति को तेज करता है।
अग्रवाल ने यह भी बताया कि कई पक्षकार इसे केवल औपचारिकता भार मानते हैं। वर्तमान में दक्ष मध्यस्थों की कमी अभी भी एक बड़ी बाधा है। स्पष्ट नियमावली और समयबद्ध तंत्र के अभाव में प्रक्रिया लंबी हो जाती है। इसमे सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया गया कि सिविल प्रक्रिया संहिता में कुछ परिवर्तन आवश्यक हैं ताकि यह प्रावधान प्रभावी बना सके। कैस मैनेजमेंट व्यवस्था को अनिवार्य कर समयबद्ध निपटान सुनिश्चित किया जाए। अधिनियम और सीपीसी में तालमेल से पारदर्शिता और व्यवहारिकता दोनों सुनिश्चित हो सकती हैं।
कार्यक्रम का संचालन उपाध्यक्ष सोनिया शांडिल्य ने जबकि कार्यकारिणी सदस्य सुरभि अग्रवाल ने अधिवक्ता परिषद का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया। अंत में इकाई अध्यक्ष धर्मेंद्र जैन और महामंत्री धर्मेंद्र बराला ने वरिष्ठ अधिवक्ता अग्रवाल को प्रतीक चिन्ह भेंटकर उपस्थित अधिवक्ता बंधुओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। क्षेत्रीय मंत्री कमल परसवाल, प्रांत महामंत्री अभिषेक सिंह, प्रांत उपाध्यक्ष सुतिक्ष्ण भारद्वाज सहित जिला न्यायालय इकाई के अधिवक्ता भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।