बांग्लादेश के हिंदू भिक्षु चिन्मय दास को राजद्रोह मामले में हाईकोर्ट ने दी जमानत

ढाका। बांग्लादेश के प्रमुख हिंदू नेता और पूर्व इस्कॉन पुजारी चिन्मय दास को राजद्रोह मामले में पांच महीने जेल में बिताने के बाद आज उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी।

न्यायमूर्ति मोहम्मद अताउर रहमान और न्यायमूर्ति मोहम्मद अली रजा की पीठ ने सम्मिलितो सनातनी जागरण जोत के प्रमुख दास द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया।

चिन्मय दास के वकील प्रहलाद देबनाथ ने द डेली स्टार को बताया कि हिंदू भिक्षु को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद जेल से रिहा किए जाने की उम्मीद है, जब तक कि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय प्रभाग उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाता।

चिन्मय के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने 23 अप्रैल को उच्च न्यायालय की बेंच से अपने मुवक्किल को जमानत देने की प्रार्थना की और कहा कि चिन्मय बीमार है और बिना किसी सुनवाई के जेल में कष्ट झेल रहा है।

चिन्मय दास को ढाका में बिना किसी सुनवाई के 25 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था, जब पिछले साल 31 अक्टूबर को बीएनपी सदस्य फिरोज खान ने उन पर हिंदू समुदाय की रैली में बंगलादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। चटगांव की एक अदालत ने उन्हें 26 नवंबर को जेल भेज दिया और बाद में 11 दिसंबर को उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया।

चटगांव में इस्कॉन द्वारा संचालित पुंडरीक धाम मंदिर के प्रमुख चिन्मय दास ने 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद से देश भर में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी।

उनकी गिरफ़्तारी की खबर के बाद ढाका, चटगांव, कमिला, खुलना, दिनाजपुर और कॉक्स बाज़ार सहित कई जिलों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे। भारत और दुनिया भर में इस्कॉन केंद्रों में विरोध प्रदर्शन हुए थे।

हिंदू भिक्षु की गिरफ़्तारी ने अंतरराष्ट्रीय हलकों में काफ़ी ध्यान आकर्षित किया है, मानवाधिकार संगठनों ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार, इस्लामी कट्टरपंथ के उदय और मोहम्मद यूनुस शासन के तहत असहमति की आवाज़ों के दमन पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

इसके अलावा चिन्मय दास की गिरफ़्तारी ने बांग्लादेश में कानूनी पेशेवरों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रियाओं की निष्पक्षता के बारे में कई चिंताएं भी जताई हैं, क्योंकि अदालतें इस्लामवादियों को खुश करने और न्यायपालिका पर सरकार की पकड़ रखती हैं।