अगले मुख्य न्यायाधीश के लिए न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की अनुशंसा

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने वरिष्ठता की स्थापित परंपरा का पालन करते हुए अगले मुख्य न्यायाधीश के लिए न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की औपचारिक रूप से अनुशंसा की है।

न्यायमूर्ति गवई ने इस सप्ताह की शुरुआत में केंद्रीय कानून मंत्रालय को लिखे एक पत्र में यह अनुशंसा की है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत वर्तमान में न्यायमूर्ति गवई के बाद उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत नवंबर 2025 में गवई की सेवानिवृत्ति के बाद भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे।

केंद्र सरकार ने हाल ही में अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की है। इस प्रक्रिया के तहत वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के पद छोड़ने से लगभग एक महीने पहले अगले नए मुख्य न्यायाधीश के नाम की घोषणा की परंपरा है।

उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति गवई 24 मई 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए थे और 14 मई 2025 को उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वह 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने छह वर्षों से अधिक के कार्यकाल के दौरान वह लगभग 700 पीठों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने लगभग 300 निर्णय दिये हैं, जिनमें कानून के शासन और मौलिक एवं मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले संविधान पीठ के कई फैसले शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 मई 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और वर्तमान में वह उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। वह 9 फ़रवरी, 2027 को सेवानिवृत्त होंगे।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म हरियाणा के हिसार में हुआ और उन्होंने वहीं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से 1981 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और और रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से 1984 में एलएलबी की डिग्री हासिल की। इसी साल उन्होंने हिसार जिला न्यायालय में वकालत शुरू किया, लेकिन अगले साल ही वह चंडीगढ़ स्थित पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय चले गए।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत 7 जुलाई 2000 को हरियाणा के महाधिवक्ता नियुक्त हुए और राज्य के सबसे युवा महाधिवक्ता होने का इतिहास रच दिया। 9 जनवरी 2004 को उनकी नियुक्ति पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में हुई। उन्होंने 2007 से 2011 के बीच लगातार दो कार्यकालों तक राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के शासी निकाय के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। वह उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त होने से पहले हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर भी रहे।