नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की रिट याचिका पर होने वाली सुनवाई से स्वयं को बुधवार को अलग कर लिया।
न्यायमूर्ति वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश के पद पर रहने के दौरान राष्ट्रीय राजधानी के अपने सरकारी आवास से कथित तौर पर नगदी मिलने के मामले में आंतरिक जांच प्रक्रिया और उनके स्थानांतरण तथा न्यायाधीश के पद से हटाने के फैसले की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की है।
मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई से अपने आप को अलग करते हुए कहा कि चूँकि वह उनके स्थानांतरण (दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में) के निर्णय का हिस्सा थे, इसलिए उनके लिए इस मामले में सुनवाई करना उचित नहीं होगा।
न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से दायर एक याचिका पर विचार करने के लिए सहमति व्यक्त करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह मामले की सुनवाई के लिए एक पीठ का गठन करेंगे।
मुख्य न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा तत्काल सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख करने पर अदालत ने सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी, सिद्धार्थ लूथरा और सिद्धार्थ अग्रवाल भी न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से पेश हुए। वकील ने कहा कि इस मामले में कुछ संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं।
न्यायमूर्ति वर्मा पर नकदी बरामदगी के मामले में एक आंतरिक जांच रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है। शीर्ष अदालत की इस आंतरिक रिपोर्ट में उनके खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई और उन्हें हटाने की सिफारिश भी शामिल है।
न्यायमूर्ति वर्मा को इस वर्ष मार्च में उनके आवास पर कथित तौर पर नकदी मिलने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट से उनके मूल न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्होंने एक रिट याचिका में आंतरिक प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया से इनकार किये जाने का दावा किया।
उन्होंने न्यायाधीशों की समिति द्वारा जांच शुरू करने से पहले औपचारिक शिकायत न होने का मुद्दा भी उठाया। न्यायमूर्ति वर्मा ने तर्क दिया कि 22 मार्च 2025 को उनके खिलाफ आरोपों का खुलासा करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति वेबसाइट पर अपलोड करने (शीर्ष न्यायालय के) से मीडिया में तीव्र अटकलें लगाई गईं, जिससे उनकी प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन हुआ।
न्यायमूर्ति वर्मा ने यह भी तर्क दिया कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित न्यायाधीशों की समिति ने उन्हें आरोपों का खंडन करने या गवाहों से जिरह करने का अवसर नहीं दिया।