नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को भारत की नागरिकता हासिल करने से पहले 1980 में वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के आरोप से संबंधित मामले में मंगलवार को नोटिस जारी किया।
यह नोटिस मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर जारी किया गया है। इस फैसले में मजिस्ट्रेट अदालत ने कथित जाली दस्तावेज़ों की मदद से वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए सोनिया गांधी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने से इनकार कर दिया गया था।
राउज एवेन्यू अदालत में पुनरीक्षण याचिका दायर कर सोनिया गांधी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि सोनिया गांधी ने जाली दस्तावेज़ों की मदद से 1980 की वोटर लिस्ट में अपना नाम शामिल करवाया था। उन्होंने 1982 में अपना नाम हटवा लिया था और फिर 1983 में भारत की नागरिकता मिलने के बाद उन्होंने एक बार फिर वोटर लिस्ट में नाम शामिल करवाया।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली की एक मजिस्ट्रेट अदालत में भी सोनिया गांधी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग के साथ याचिका दायर की थी, लेकिन तब अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने इसे यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि किसी व्यक्ति की नागरिकता से जुड़े मामले पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और किसी व्यक्ति को वोटर लिस्ट में शामिल करने या उससे बाहर करने की योग्यता तय करने का अधिकार केन्द्रीय चुनाव आयोग के पास है।
चौरसिया ने कहा था कि इस मामले में जांच करने से उन क्षेत्रों में बेवजह दखल होगा जो खास तौर पर संवैधानिक अधिकारियों को सौंपे गए हैं। याचिकाकर्ता ने इस फैसले की वैधता को चुनौती देते हुए एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता के वकील पवन नारंग ने अदालत से कहा कि श्रीमती गांधी का नाम नागरिकता मिलने से पहले मतदाता सूची में था, जिसका अर्थ है कि जाली दस्तावेजों का प्रयोग हुआ है।
उन्होंने कहा कि पुलिस ने याचिकाकर्ता की अपील के बावजूद मामले में कोई शिकायत दर्ज नहीं की है। वह पुलिस से आरोप पत्र दायर करने की मांग नहीं करते हैं, लेकिन इस दिशा में जांच की जा सकती है। अदालत ने सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। मामले में अगली सुनवाई छह जनवरी 2026 को होगी।



