तीर्थ नगरी अजमेर सिन्धी भाषा, सेवा, संस्कार व आध्यात्मिकता का केन्द्र : दीदी कृष्णा

साधु वासवाणी मिशन पुुुणे महाराष्ट्र से दीदी कृष्णा कुमारी का प्रवचन व सत्संग
अजमेर। साधु वासवानी मिशन पुणे दादा जश्न वासवाणी व साधु टी.एल. वासवाणी की शिष्या दीदी कृष्णा का जीवन दर्शन पर सत्संग स्थानीय सतगुरू इंटरनेशनल स्कूल के ऑडिटोरियम में हुआ।

दीदी कृष्णा ने कहा कि आप तीर्थ नगरी अजमेर में रहते हैं जहां सिन्धी भाषा, सेवा, संस्कार व आध्यात्मिकता का केन्द्र है। हर व्यक्ति का हृदय शीतलता से भरा है। यहां संत महात्माओं की दरबारें, व सिन्धी भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय होने से भाषा व सनातन संस्कार को बढावा मिल रहा है व सेवा के भी अनेक कार्य हो रहे हैं।

उन्होंने सत्संग करते हुए कहा कि सत्संग से चार बातें ले कर जाएं, पहली बात अपनी जिह्वा पर नियंत्रण रखें अर्थात बोलने में सावधानी रखें साथ ही भोजन भी शाकाहारी करें। दूसरी बात अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान करें, प्रतिदिन कोई भी सेवा का कार्य अवश्य करें। तीसरी बात प्रभु की रजा पर राजी रहें, हमेशा धन्यवाद का भाव रखें, कष्ट सभी पर आते हैं पर प्रभु पर विश्वास रखने से कष्ट सहने की शक्ति आती है। चौथी बात प्रभु से रिश्ता बनाएं।

उन्होंने श्रद्धालुओं को जोड़ते हुए कहा कि हम अपने हृदय को मंदिर बनाएं। दादा वासवानी कहते थे, मनुष्य जीवन दुर्लभ है, जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। सत्संग और सेवा से अपना जीवन सफल बनाना चाहिए, मनुष्य का एक एक क्षण अनमोल है। व्यर्थ की बातों में इसे नहीं गंवाना चाहिए। सुबह उठते ही सोचना चाहिए कि आज का दिन कैसे सकारात्मक हो? सकारात्मक कार्य करने से ही जीवन में प्रसन्नता आती है। मनुष्य को कुछ समय ध्यान में बैठ कर भगवान का ध्यान करना चाहिए। भगवान का हर पल आभार करना चाहिए।

भारत का भविष्य बच्चों में ही है। बालक और बालिकाओं को श्रेष्ठ नागरिक बनाने के लिए उन्हें बचपन से नैतिक शिक्षा देनी चाहिए। सेवा से ही मनुष्य को शांति प्राप्त होती है। साधु वासवाणी कहते थे कि केवल देने का भाव होना चाहिए। देने भाव रखने से ही आनंद की प्राप्ति होगी। साधु वासवानी मिशन के अंतर्गत 18 स्कूल भारत में चल रहे हैं और एक स्कूल लंदन में चल रहा है।

दीदी ने कहा कि दादा कहते थे कि संत की एक दृष्टि ही व्यक्ति को निहाल कर देती है, राम कृष्ण परमहंस की एक नज़र ने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बना दिया। अगर हमारा हृदय पवित्र है तो भगवान का दर्शन सुलभ है। कई जन्मों के पश्चात हम प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। प्रभु प्राप्ति के लिए सेवा और सत्संग को अपनाना चाहिए।

मन रूपी दर्पण को साफ करते रहने के लिए साधना करनी पड़ेगी, सतत अभ्यास से हम निर्मल होंगे। मनुष्य को मांसाहार से दूर रहना चाहिए। हम अपने कपड़ों की जितनी देखभाल करते हैं उससे अधिक मन की देखभाल करें। मन में लोभ, मोह, काम, क्रोध कई विकार होते हैं। अपने मन को साफ करेंगे तभी मन में शीतलता आयेगी और भगवान मन में प्रवेश करेंगे।

उन्होंने कहा कि अपने बच्चों से मातृ भाषा सिंधी में बात करें। संसार की बहुत सारी भाषाएं महत्वपूर्ण हैं पर अपनी मातृ भाषा जरूर आनी चाहिए। इससे पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय सिंधी गायिका ने काजल चंदीरामाणी व दुषिका आडवाणी ने भजन प्रस्तुत किए। स्वागत भाषण ईश्वर ठाराणी व आभार कंवल प्रकाश किशनानी ने किया। मंच का संचालन महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने किया।

कमेटी सदस्य जगदीश वच्छाणी,नरेन शाहणी भगत, अजय ठकुर, ख्याति अरोडा, हर्षिका मंघाणी ने कृष्णा दीदी व अतिथियों को शॉल पहना कर आशीर्वाद लिया। आश्रम से आई गुलशन दीदी ने नूरी ग्रंथ से वचन लिया।

कार्यक्रम में राजा ठारवाणी, प्रकाश जेठरा, हरी चन्दनानी, नरेन्द्र बसराणी, राजेश आईदासाणी, जीडी वृंदाणी, जय किशन लख्याणी, दिशा किशनानी, अनिल आसनाणी, महेश टेकचन्दाणी, दयाल शेवाणी, दीदी महेश्वरी गोस्वामी रूकमणी वतवाणी, सरस्वती मुरजाणी, रमेश टिलवाणी, हरिकिशन टेकचन्दाणी, पुरूषोतम तेजवाणी, डॉ. प्रकाश डी. नारवाणी, मुकेश आहूजा सहित सामाजिक व धार्मिक संगठनों के पदाधिकारी उपस्थित मौजूद रहे। युवा पीढी में दर्शन व प्रवचन सुनने में काफी उत्साह रहा जिसमें संत कवंरराम विद्यालय, हरी सुन्दर बालिका विद्यालय, स्वामी सर्वानन्द विद्यालय, एचकेएच स्कूल, सतगुरू इन्टरनेशनल स्कूल के स्टाफगण व विद्यार्थी उपस्थित रहे।