18 अक्टूबर से यम पंचक पांच दिन तक दीपदान

मानव प्रकृति और जीवों के सहयोग से समाज के संगठन का निर्माण करता है साथ ही ऋतुओं के आधार पर कार्यों को करते हुए एक संस्कृति का निर्माण करता है। विभिन्न अवसरों पर वह प्रकृति और जीवों के सम्मान में उत्सव व पर्व मनाता है। उसका यही समाज शास्त्रीय उत्सव परिवर्तन करते करते धर्म, आध्यात्म और कई अनगिनत कथाओं को धारण करते हुए अपना रूप बदलता रहा और वर्तमान में मूल संस्कृति शनै: शनै: लोप हो गई और समाज शास्त्रीय इन उत्सव और त्योहारो ने अपना रूप बदल लिया।

दीपावली पर्व मुख्य रूप से भूमि के दोहन से खाद्यान्न उत्पादन कर उससे पूर्ति का पर्व था जिसमें प्रजा सुखी और समृद्ध रहे। भूमि को उपजाने वाली शक्ति लक्ष्मी बनकर सदा पूजी जाती रहे, लेकिन धार्मिक कथाओं ने समाज की मूल धारा ही बदल दी ओर त्योहारों की संस्कृति में नवाचार का प्रवेश करा दिया।

प्रथम दीपदान : भूमि के सम्मान में धनतेरस त्रयोदशी धन्वन्तरि दिवस

कार्तिक मास की त्रयोदशी तक खेतों से घान्य फसलों का उत्पादन निकाल कर घर ले आते हैं तथा उसको यथा स्थान पर उपभोग के लिए पहुंचा दिया जाता है। फसलों का यह उत्पादन फिर अर्थव्यवस्था को गति देकर व्यापार व उद्योग धंधों को शुरू कर देता है। यह उत्पादन आरोग्य खाद्यान वस्तुएं और नकद कारोबार को बढाकर हर तरह के आरोग्य को प्रदान करता है। अत: भूमि के सम्मान में प्रथम दीपदान धनतेरस को किया जाता है।

दूसरा दीपदान : सूर्य के सम्मान में रूप चतुर्दशी यम चतुर्दशी

दूसरा दीपदान फसलों को आरोग्य देने वाले विशाल ऊर्जा पुंज सूर्य के ही सम्मान में किया जाता है। दक्षिण दिशा में क्योंकि इस मास में सूर्य दक्षिणायन में होता है। इस आरोग्यता के कारण ही हर तरह के कारोबार शुरू हो जाते हैं और बाजारों व व्यक्तियों का रूप निखर जाता है। धरती का धन हर तरह का आरोग्य प्रदान कर सेवादार और संकट मोचन बन जाता है।

तीसरा दीपदान : घर में कर्म फल रूपी लक्ष्मी के सम्मान में पूजन

कृषि प्रधान देशो मे कृषि उत्पादन ही हर तरह के व्यापार और वाणिज्य की नीव तैयार कर नकद धन को सर्वत्र फैला देता है और सभी को अपने कर्म फल की लक्ष्मी इस माह मे खरीदारी बढने से ज्यादा आती है और बाजार भी खूब कारोबार करते है और इस कारण सभी घरवाले जिनकी सीधी ओर अप्रत्यक्ष भूमिका धन कमाने मे होती है वह घर मे दीपदान करते है और खुश हो कर आनंद मनाते है।

चोथा दीपदान : गोवर्धन पूजा पर पशुधन व सेवादारों का सम्मान

खेती में पशुधन का श्रम और उनके गोबर की खाद से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है। पशुओं को सजाया जाता है तथा जिन सेवादारों ने इस कृषि कार्यो में अपना योगदान दिया जाता है उन्हे वस्त्र व अन्न धन से सहयोग किया जाता है।

पांचवां दीपदान : यम द्वितीया भाई दूज रिश्ते नातों के सम्मान में

अपने रिश्तेदार जिन से हमारे समाज को सहयोग साहस और अपनेपन की प्राप्ति होती है उन्हें यथा संभव नवाजा जाता है। उन्हें अपने घर भोजन ग्रहण करवाकर व उनके घर जाकर कुशलक्षेम पूछ कर।
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लोप होने लगे समाजशास्त्रीय उत्सव

महादानी राजा बलि ने लोक कल्याण के लिए महान कार्य किया। इस संसार में प्राणियों को कम से कम दुख उठाने पड़ें और उस पर लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहे ऐसा वरदान बलि ने भगवान विष्णु से मांगा। जब राजा बलि का प्रताप इतना बढ़ गया कि उसने देवराज इन्द्र और सभी देवताओं को युद्ध में हरा दिया। भगवती लक्ष्मी सहित उसके अधीन थे। देवताओं को और लक्ष्मी को क़ैद मुक्त कराने में समस्त शक्तियों के प्रयास असफल रहे तब भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर राजा बलि के पास पहुंचे, वहां बलि के गुरू शुक्राचार्य ने विष्णु भगवान को पहचान लिया और बलि से कहने लगे, साक्षात विष्णु छल करने आ गए अत: यह कुछ भी मांगे तो मत देना लेकिन राजा बलि परम दानवेन्द थे उसने गुरु की आज्ञा नहीं मानी और वामन भगवान को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया।

भगवान विष्णु ने तीन पग में सम्पूर्णलोकों पर अधिकार कर बलि को पाताल में पहुंचा कर क़ैद कर लिया तथा तरह-तरह की यातनाएं दी। राजा बलि धैर्य बनाते रहे तब वामन भगवान बोलो-हे बलि! मैं तुम्हारी दानवीरता से प्रसन्न हूं, जो भी वर मांगों में तुम्हें प्रदान करूंगा। तब राजा बलि ने प्रार्थना की कि हे भगवान! अपने तीन ही दिनों में मेरा सम्पूर्ण राज्य छीन लिया मुझे ख़ूब यातनाएं दी तथा मेरी लक्ष्मी भी छीन ली। मैं आपसे यही मांगता हूं कि इन तीनों में जो भी प्राणी मृत्यु के देवता यमराज के उद्देश्य से दीपदान करेगा, भगवती लक्ष्मी का पूजन करेगा उसे यम की यातन न भोगनी पड़े और उसका घर लक्ष्मी से कभी विहीन न हो। राजा बलि की ये बात सुन श्री विष्णु भगवान ने बलि को वरदान दे दिया और तभी से दीपावली पर्व, दीपोत्सव मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई।

सनत्कुमार संहिता की यह कथा निश्चित रूप से दीपदान व दीवाली उत्सव मनाने की एक आधार भूत कथा है। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी से कार्तिक अमावस्या तक वामनरूपी विष्णु ने समस्त देवी-देवताओं और लक्ष्मी को बलि के राज से मुक्त किया। इस कारण दीवाली के दिन लक्ष्मी जी जाग जाती है और उनके साथ सभी देवताओं की पूजा पाठ की जाती है। लक्ष्मी जी के जागने के बारहवें दिन भगवान विष्णु जागते हैं जिस देव उठानी, देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जानते हैं। इस कथा के अतिरिक्त और भी कई विचार धारा और मान्यताएं दीपोत्सव मनाने की है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव मान्यताएं और विश्वास जो भी हो लेकिन जमीनी स्तर पर यह मास भूमि पर उपज फल फूल वनस्पति ओर तरह तरह की ओषधियों के स्वत ही पककर फल देने का काल है और भूमि के अन्नदाता की प्रसन्नता का काल है। अन्नदाता का यही श्रम जगत के उ़द्योग धंधों को बढाता है और लक्षमी सर्वत्र भ्रमण करने लग जाती है। आम व्यक्ति भी वर्षा काल के बाद घरों की साफ-सफाई और रंग पुताई आदि करता है। इस माह काम धंधे भी बढ जाते हैं और आम आदमी की आमदनी भी बढ जाती है। इस कारण खुश होकर वह खुशियों के दीपदान करता है।

इसलिए हे मानव प्रकृति और जीवों के सम्मान की इस महत्वपूर्ण ऋतु का आनंद ले तथा घर परिवार और समाज में प्रेम सामंजस्य सहयोग स्थापित कर। नई आशा के नये दीपों को प्रज्ज्वलित कर। मन के अंधेरों को भगा।कोरोना काल मे अब खुद को ही बुंलद कर तथा जहाज बन कर सकटो के भव सागर से तर और अपने बडे होने का औचित्य सिद्ध कर। भले ही शेर की तरह भूखे रह जा लेकिन घास मत खा। कश्तियों के सहारे अपने को बचाने पर केवल कश्तियों का ही महत्व होता है जो भारी भरकम जहाज के जान माल को किनारे ले जाकर बचा लेती है।

ज्योतिषाचार्य : भंवरलाल
जोगणियाधाम पुष्कर