दिन हुए छोटे, वैज्ञानिक हैरान

कैलिफ़ोर्निया। इस साल गर्मी के मौसम में पृथ्वी की गति तेज़ होने के कारण दिन थोड़े छोटे हो गए हैं, जिसने वैज्ञानिकों को समय की गणना पर खासा ध्‍यान देना पड़ा है।

इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एडं रेफरेंस सिस्‍टम्‍स सर्विस और अमरीकी नौसेना वेधशाला के आंकड़ों से पता चला है कि गत 10 जुलाई अब तक का सबसे छोटा दिन था, जो 24 घंटे से 1.36 मिलीसेकंड कम दर्ज किया गया। एक चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि 22 जुलाई को दिन 24 घंटे से 1.34 मिलीसेकंड छोटा रहा। यही नहीं अनुमान है कि आगामी पांच अगस्‍त का दिन भी 24 घंटे से 1.25 मिलीसेकंड कम हो सकता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार एक दिन की लंबाई वह समय है जो धरती अपनी धुरी पर एक पूरा चक्कर काटने में लेती है। यह औसतन 24 घंटे या 86,400 सेकंड होता है, लेकिन वास्तव में, चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल, धरती पर मौसमी बदलाव और पृथ्वी के आंतरिक कोर के असर जैसी चीजों के चलते धरती का घूमना थोड़ा आगे पीछे हो जाता है। इसका असर यह पड़ता है कि एक पूरा चक्‍कर आमतौर पर 86,400 सेकंड से थोड़ा कम या अधिक समय लगता है – यह अंतर केवल मिलीसेकंड का है जिसका रोजमर्रा के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

ये अंतर लंबे समय में कंप्यूटर, उपग्रह और दूरसंचार पर असर डाल सकते हैं, यही कारण है कि 1955 में शुरू की गई परमाणु घड़ियों का उपयोग कर समय के सबसे छोटे बदलाव को भी दर्ज कर लिया जाता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे वाई2के समस्या जैसी बात सामने आ सकती है, जिससे कभी कम्‍प्‍यूटर प्रणाली को ही ठप कर देने का खतरा पैदा कर दिया था।

परमाणु घड़ियां एक निर्वात कक्ष में रखे परमाणुओं के दोलनों की गणना करके 24 घंटों की गणना अत्यंत सटीकता से करती हैं। ये समय-निर्धारण के लिए वैश्विक मानक है, साथ ही यह वह समय भी है जिस पर हमारे सभी फ़ोन और कंप्यूटर सेट होते हैं।

पिछले साल, 5 जुलाई को पृथ्वी ने अब तक का सबसे छोटा दिन देखा, जो 24 घंटे से 1.66 मिली सेकंड कम था। स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ़ ओशनोग्राफी में भूभौतिकी के एमेरिटस प्रोफ़ेसर और कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो में एक शोध भूभौतिकीविद् डंकन एग्न्यू ने कहा कि 1972 से हम थोड़े तेज़ दिनों की ओर बढ़ रहे हैं।

पिछले 50 वर्षों से, पृथ्वी का तरल कोर भी धीमा हो रहा है, जबकि उसके चारों ओर ठोस पृथ्वी की गति बढ़ रही है। इन प्रभावों के संयोजन को देखकर, वैज्ञानिक यह अनुमान लगा रहे हैं कि क्या आने वाले दिन विशेष रूप से छोटे हो सकते हैं।