चश्मे से मुक्ति के लिए अधिकांश भारतीय लैंस पर व्यय करने के लिए तैयार

नई दिल्ली। भारत में लोग बढ़ती उम्र में दृष्टि को याददाश्‍त और मोबिलिटी से भी अधिक अहमियत देते हैं क्योंकि 50 वर्ष से अधिक आयु के करीब 92 प्रतिशत लोग चश्मे से पीछा छुड़ाने के लिए लैंस पर भी व्यय करने के लिए तैयार है।

आंखों की देखभाल के क्षेत्र में ग्‍लोबल लीडर एल्‍कॉन ने अपने महत्‍वपूर्ण एल्‍कॉन आइ ऑन कैटरेक्‍ट सर्वे के नतीजों का खुलासा किया। यह सर्वे मार्च-अप्रैल 2023 के दौरान भारत समेत दुनिया के 10 देशों में 50 से अधिक उम्र के लोगों के बीच, विज़न और कैटरेक्‍ट संबंधी जानकारी के उद्देश्‍य से कराया गया था।

इस सर्वे में उन लोगों को शामिल किया गया था जिनमें पिछले पांच वर्षों में, मोतियाबिंद (कैटरेक्‍ट) की पुष्टि हुई थी और जो मोतियाबिंद सर्जरी का इंतज़ार कर रहे थे अथवा करवा चुके थे। इसमें 50 वर्ष से ऊपर के ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्‍हें कैटरेक्‍ट की शिकायत नहीं थी। इस सर्वे से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि जो मरीज़ कैटरेक्‍ट सर्जरी करवा चुके हैं उनकी आंखों में और जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार हुआ है।

इसमें कहा गया है कि ज्‍यादातर भारतीय (90 प्रतिशत) स्‍पष्‍ट दृष्टि के लिए कैटरेक्‍ट सर्जरी में खर्च करने के इच्‍छुक हैं। इस सर्वे से एक और दिलचस्‍प पहलू यह भी सामने आया कि करीब 54 प्रतिशत भारतीय चश्‍मा लगाने की वजह से खुद को बूढ़ा समझते हैं जबकि 50 वर्ष से अधिक उम्र के 92 प्रतिशत भारतीय चश्‍मे से पीछा छुड़वाने के लिए लैंस पर खर्च करने के लिए तैयार हैं।

जहां तक कैटरेक्‍ट सर्जरी के बारे में जानकारी का सवाल है, 59 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे किसी आई केयर प्रोफेशनल से परामर्श लेंगे, जबकि 39 प्रतिशत और 37 प्रतिशत ने क्रमश: परिवार और दोस्‍तों से यह सलाह लेने की तथा 36 प्रतिशत ने स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी वेबसाइटों से जानकारी हासिल करने की बात स्‍वीकार की।