नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि आपरेशन सिंदूर के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी और पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने का अमरीका के साथ व्यापार से कोई संबंध नहीं था।
जयशंकर ने लोकसभा में आपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान कहा कि मोदी और ट्रंप के बीच 22 अप्रैल से 17 जून के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। दोनों नेताओं की बातचीत प्रधानमंत्री की कनाडा यात्रा के दौरान फोन पर हुई थी। श्री मोदी जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने कनाडा गए थे और अमरीकी राष्ट्रपति ने उन्हें फोन करके अमरीका आने का निमंत्रण दिया था।
विदेश मंत्री ने कहा कि आपरेशन सिंदूर के दौरान कुछ देशों ने कहा था कि पाकिस्तान युद्ध विराम चाहता है तो भारत की ओर से कहा गया कि यह आग्रह पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) की ओर से आना चाहिए। पाकिस्तान की ओर से डीजीएमओ की फोन कॉल आने के बाद ही सैन्य कार्रवाई रोकने पर विचार किया गया और इस पर सहमति बनी।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से सिर्फ तीन देशों ने ही ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया था। यह भारत की सफल कूटनीति का ही परिणाम है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद विभिन्न देशों में गए भारतीय प्रतिनिधिमंडलों की बातों पर जिस तरह ध्यान दिया गया, उसे भी कूटनीति की उपलब्धियों में शुमार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में विभिन्न मोर्चों पर भारत की कूटनीति सफल रही है और इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को अमेरिका ने वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित किया है।
जयशंकर ने कहा कि मुम्बई आतंकवादी हमले में संलिप्त कुख्यात आतंकवादी तहव्वुर राणा को अमरीका से भारत लाने में सफलता मिली है,यह भी देश की कूटनीति की सफलता का एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि क्वाड और ब्रिक्स देशाें ने भी भारत पर हुए आतंकवादी हमले की निंदा की है। फ्रांस, जर्मनी तथा यूरोपीय देशों ने कहा है कि भारत को आतंकवाद से अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है।
विदेश मंत्री ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद से कुछ बातें एकदम स्पष्ट हो गई हैं, भारत को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है, भारत पाकिस्तान के मामले में किसी अन्य देश की मध्यस्थता नहीं होगी, भारत परमाणु हथियारों के हमले की धमकी के दबाव में नहीं आयेगा और आतंकवाद तथा वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। उन्होंने कहा कि जहां तक सीमा सुरक्षा का सवाल है पिछले 10 वर्षों में सीमावर्ती इलाकों में अवसरंचनाओं के विकास में चार गुना वृद्धि हुई है।
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