प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश में कहा है कि इस्लाम में बहु-विवाह की अनुमति शर्तों के साथ दी गई है, लेकिन कुछ मुस्लिम स्वार्थ व सेक्स की पूर्ति के लिए शादी कर इस्लामी कानून का दुरूपयोग कर रहे हैं।
कोर्ट ने मौलवियों से कहा है कि वह देखें कि इस्लामिक कानून का दुरूपयोग न होने पाए। कोर्ट ने कहा शरियत कानून के तहत मुस्लिम चार शादी कर सकता है बशर्ते सभी के साथ समान व्यवहार करें। शरियत में प्रतिबंधित शादी करने पर बातिल (शून्य) घोषित करने का प्रावधान है,ऐसी अर्जी की शरियत कानून के तहत परिवार अदालतों को सुनवाई कर तय करने का क्षेत्राधिकार है, जो बिना अधिकार मौलवियों द्वारा किया जा रहा है ।
कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक कानून के अलावा अन्य कानूनों में शादी करने वाला यदि धर्म बदलकर इस्लाम अपनाकर दूसरी शादी करता है तो यह द्विविवाह का अपराध माना जाएगा। झूठ बोलकर सेक्स संबंध कायम कर दूसरी शादी करने वाले फुरकान के खिलाफ दुष्कर्म, षड्यंत्र व दूसरी शादी के आरोप में दर्ज आपराधिक केस की वैधता की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरूण कुमार सिंह देशवाल ने कहा क्योंकि इस्लाम चार शादी की अनुमति देता है, इसलिए दूसरी शादी अपराध नहीं है।
कोर्ट ने विपक्षी बीबी को नोटिस जारी की और 26 मई तक जवाब मांगा है,तब तक याचीगण के खिलाफ उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि शुरुआती इस्लामिक समय में संघर्ष के चलते भारी संख्या में महिलाएं विधवा होती थी। इन विधवाओं को सामाजिक शोषण बचाने के लिए कुरान ने एक से अधिक शादी की अनुमति दी थी। किंतु इस छूट का स्वार्थ व सेक्स की चाहत के लिए नाजायज इस्तेमाल किया जा रहा है।
याची का कहना था कि दोनों मुस्लिम है, इस्लाम चार शादी की इजाजत देता है। इसलिए धारा 494 भारतीय दंड संहिता का द्विविवाह का अपराध नहीं बनता। इसलिए आपराधिक केस रद्द किया जाए। कोर्ट ने मामला विचारणीय माना कि क्या इस्लाम चार स्वार्थ व सेक्स पूर्ति के लिए दूसरी शादी की अनुमति देता है।